असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर मंगलवार को राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के बयान पर काफी हंगामा हुआ। कांग्रेस के सांसद आनंद शर्मा ने अमित शाह के बयान के उस हिस्से को रिकॉर्ड से हटाने की भी मांग की जिसमें राजीव गांधी के बाद के पीएम के साहसों पर कथित टिप्पणी की गई थी। सभापति वेंकैया नायडू ने परंपरा का आश्वासन देते हुए अमित शाह को वक्तव्य पूरा करने के लिए आमंत्रित किया लेकिन हंगामे के बीच सदन चल नहीं पाया।
शाह के बयान पर कांग्रेस के कई नेताओं ने उनको निशाने पर लिया और भाजपा पर ही कई आरोप लगा दिए। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अहमद पटेल ने कहा कि भाजपा साहस नहीं दिखा रही बल्कि सत्ता की भूख के लिए एनआरसी के मुद्दे पर देश में ध्रुवीकरण करना चाह रही है। पटेल ने कहा कि यह जानते हुए भी चुनावों में पार्टी को खामियाजा उठाना पड़ेगा, राजीव गांधी ने असम और पंजाब समझौते का समर्थन किया। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए भी कांग्रेस अपनी सरकार कुर्बान कर चुकी है। अहमद पटेल ने कहा कि कांग्रेस की परंपरा देश को पार्टी से पहले रखने की है और यही साहस है।
शाह के इस बयान पर हो रहा है हंगामा
अमित शाह ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि वह आज इस पर सवाल उठा रही है, जबकि इसकी पहल खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने की थी।
शाह ने कहा कि कांग्रेस के पास असम समझौते को लागू करने की हिम्मत नहीं थी और भाजपा सरकार ने हिम्मत दिखाकर यह काम किया है। उन्होंने कहा, "राजीव गांधी ने 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो एनआरसी के समान था। उन्हें लागू करने के लिए उनमें साहस नहीं था, हमने किया।"
शाह ने एनआरसी के विरोध को देश में रह रहे अवैध बांग्लादेशियों को बचाने का प्रयास करार दिया।
क्या है मामला?
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अंतिम मसौदा सोमवार को जारी कर दिया गया। जिसमें कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम हैं। जबकि करीब 40 लाख लोग अवैध पाए गए हैं।
एनआरसी को लेकर कांग्रेस, टीएमसी समेत कई दल इसे भाजपा की राजनीतिक चाल बता रहे हैं। जबकि भाजपा भी इस मामले में कोई नरमी दिखाने के मूड में नहीं है। इससे पहले पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष भी कह चुके हैं कि यदि उनकी सरकार आती है तो असम की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी को लागू करेंगे।