कोरोना संकट के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार एक्टिव हैं और सरकार के कदमों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इसी के साथ राहुल गांधी की ओर से अर्थव्यवस्था पर चर्चा के लिए एक सीरीज की शुरुआत की गई है, जिसमें वह एक्सपर्ट से चर्चा कर रहे हैं। आज इसी कड़ी में राहुल गांधी ने दो एक्सपर्ट से बात की और स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर चर्चा की। बुधवार को राहुल गांधी ने हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशीष झा और स्वीडन के प्रोफेसर जोहान से बात की। ये बातचीत राहुल गांधी की कोरोना संकट श्रृंखला की तीसरी कड़ी का आधार है।
राहुल गांधी ने डॉ आशीष झा से कोरोना वायरस लॉकडाउन पर क्या विचार, इससे मनोविज्ञान पर क्या फर्क पड़ता है और ये लोगों के लिए कितना मुश्किल है जैसे सवाल किए।
इन सवालों के जवाब में हार्वर्ड में स्वास्थ्य विशेषज्ञ आशीष झा ने कहा कि लॉकडाउन के बाद अब जब अर्थव्यवस्था खुल गई है, आपको भरोसा पैदा करना होगा। उन्होंने कहा कि कोविड-19 12 से 18 महीने की समस्या है, इससे 2021 से पहले छुटकारा नहीं मिलने वाला। आशीष झा ने राहुल गांधी से कहा कि अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में बहुत तेजी से जांच करने की रणनीति की आवश्यकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ झा ने कहा कि हम बड़ी वैश्विक महामारियों के दौर में प्रवेश कर रहे हैं, हम जो वैश्विक महामारी देख रहे हैं, वह आखिरी नहीं है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने राहुल गांधी से कहा कि कोविड-19 के बाद जीवन बदल जाएगा। जैसे 9/11 एक नया अध्याय था, उसी तरह यह भी एक नया अध्याय होगा।
इस दौरान राहुल ने पूछा कि ' ये भईया बताइए कि वैक्सीन कब आएगी?' इसके जवाब में झा ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि अगले साल तक वैक्सीन आ जाएगी। बातचीत के दौरान राहुल ने कहा कि मैंने कुछ नौकरशाहों से पूछा है कि टेस्टिंग की संख्या कम क्यों है? उनका कहना है कि यदि आप टेस्टिंग के नंबर्स
राहुल गांधी ने डॉक्टर आशीष झा से लॉकडाउन पर उनके विचार पूछे और यह भी पूछा कि क्या इससे इससे मनोविज्ञान पर फर्क पड़ता है, ये लोगों के लिए कितना मुश्किल है?
जवाब में आशीष झा ने कहा कि लॉकडाउन से आप वायरस को धीमा कर सकते हैं। सिर्फ पीड़ित को समाज से अलग कर सकते हैं, उसके लिए टेस्टिंग जरूरी है। यह आपकी क्षमता को बढ़ाने का वक्त देता है। अगर लॉकडाउन का इस्तेमाल क्षमता बढ़ाने के लिए नहीं किया गया तो इससे काफी नुकसान हो सकता है।
राहुल गांधी ने डॉक्टर झा से मजदूरों को लेकर भी बात की, उन्होंने सवाल किया कि वायरस की वजह से मजदूरों को पता नहीं कब दोबारा काम मिलेगा?
इसके जवाब में झा ने कहा कि कोरोना वायरस एक-दो महीने में नहीं जाएगा, ये 2021 तक रहने वाला है। कितना नुकसान होने वाला है ये किसी को पता नहीं, लेकिन रोज कमाने-रोज खाने वाले मजदूरों तक मदद पहुंचने की जरूरत है।
‘इस वायरस का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी है’
‘हारवर्ड ग्लोब्ल हेल्थ इंस्टीट्यूट’ के निदेशक झा ने कहा, ‘‘इस वायरस का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी है। लॉकडाउन के जरिए आप अपने लोगों को एक तरह का संदेश देते है कि स्थिति गंभीर है। ऐसे में जब आप आर्थिक गतिविधियां खोलते हैं तो आपको लोगों में विश्वास पैदा करना होता है।’’ उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव के साथ ही इसका मनोवैज्ञानिक असर भी है और सरकारों को इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है।
सरकारों को रणनीति बनाने की जरूरत
लॉकडाउन से जुड़े राहुल गांधी के एक सवाल के जवाब में झा ने कहा कि सरकारों को रणनीति बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए अच्छी बात यह है कि उसके पास बड़ी संख्या में नौजवान आबादी है जिसके लिए कोरोना घातक नहीं होगा। बुजुर्गों और अस्पतालों में भर्ती लोगों का ख्याल रखना होगा।
इससे पहले रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी से चर्चा कर चुके हैं राहुल
इस बातचीत की जानकारी देते हुए कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि बातचीत का प्रसारण कांग्रेस के सोशल मीडिया चैनल पर आज (बुधवार) सुबह किया जाएगा। पिछली श्रृंखला में राहुल गांधी ने दुनिया के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी से बातचीत की थी।
नहीं थम रहा है कोरोना का कहर
बता दें कि कोरोना वायरस दुनियाभर में अपने पैर पसार चुका है। दुनिया के 213 देशों में पिछले 24 घंटे में 91,940 नए कोरोना के मामले सामने आए और मरने वाले लोगों की संख्या में 4,055 का इजाफा हो गया जबकि इससे एक दिन पहले 3,096 लोगों की मौत हुई थी।
वर्ल्डोमीटर के मुताबिक, दुनियाभर में अब तक 56 से ज्यादा लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से 3 लाख 51 हजार 668 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 24 लाख 26 हजार 560 लोग संक्रमण मुक्त भी हुए हैं। दुनिया के करीब 74 फीसदी कोरोना के मामले सिर्फ 12 देशों से आए हैं। इन देशों में कोरोना पीड़ितों की संख्या 42 लाख है।