देहरादून। सभी के जेहन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि हाईकमान की नाक के बाल त्रिवेंद्र से इस्तीफा ले लिया है। अगर जमीनी हकीकत पर नजर डालें तो इसके लिए त्रिवेंद्र की किचन कैबिनेट ही जिम्मेदार है। इस कैबिनेट ने सीएम की नहीं, अपनी छवि निखारने की दिशा में काम किया। इसके चंगुल में फंसे सीएम भी आम लोगों से कट से गए थे। हालात ये बन गए थे कि एक जूनियर अफसर खुद को आईएएस अफसरों से भी ऊपर समझने लगा था। इस अफसर के विभाग में दो सौ करोड़ के घोटाले का जिक्र कैग ने अपनी रिपोर्ट में भी किया है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि त्रिवेंद्र खुद में गलत नहीं थे। लेकिन उन्होंने जो किचन कैबिनेट बनाई, उसमें शामिल लोगों ने ही उन्हें गर्त में डाल दिया। त्रिवेंद्र या तो समझ नहीं पाए या फिर उन्होंने इन लोगों पर अंध विश्वास किया। नतीजा यह रहा कि विधायक ही नहीं आम कार्यकर्ताओं से भी उनकी दूरी बढ़ती गई। ये किचन कैबिनेट त्रिवेंद्र को हसीन सपने दिखाकर मौज करती रही।
इसका ब्यूरोक्रेसी ने भी पूरा फायदा उठाया। विधायकों की शिकायतों को अफसर नजर अंदाज करते रहे और सीएम किचन कैबिनेट की बातों पर भरोसा करते रहे। चार साल के इस कार्यकाल में चंद अफसर मौज करते रहे और जो चाहा सीएम से आदेश करवा लिया। हालात ये बने कि इस किचन कैबिनेट में शामिल अफसर और कई निजी लोग सीएम से मनमाने फैसले करवाते रहे। एक बेहद जूनियर अफसर ने अपने ताल्लुकातों का फायदा उठाते हुए दो अहम विभागों में बड़े पद हथिया लिए। एक पद के जरिए तो उसने कई आईएएस अफसरों के आदेशों के साथ ही खुद मुखिया के लिखित आदेशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। तो दूसरे विभाग में सरकार को करोड़ों का चूना लगवा दिया।
कहा जाता है कि निंदक नियरे राखिए, लेकिन इस किचन कैबिनेट में शामिल लोगों ने निंदकों को सीएम की नजरों में खलनायक बनाया और खुद चांदी काटते रहे। सीएम समझ ही नहीं पाए कि ये किचन कैबिनेट ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है। अब देखना होगा कि नए सीएम अपनी किचन कैबिनेट में किसे शामिल करते हैं और वो सीएम को आम लोगों और जनप्रतिनिधियों से किस तरह कनेक्ट करती है।