राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन आयोग हमेशा से मोदी सरकार के हाथों की ‘‘कठपुतली’’ रहा है। उन्होंने दावा किया कि बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण एक ‘‘असंवैधानिक’’ कदम है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बहुसंख्यकवादी सरकारें सत्ता में बनी रहें।
पीटीआई वीडियो को दिए एक साक्षात्कार में, सिब्बल ने ये भी आरोप लगाया कि प्रत्येक चुनाव आयुक्त “इस सरकार के साथ गठबंधन” में पिछले चुनाव आयुक्त से आगे निकल जाता है।
बिहार में मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर निशाना साधते हुए, पूर्व कानून मंत्री ने कहा कि चुनाव आयोग (ईसी) के पास नागरिकता के मुद्दों पर फैसला लेने का अधिकार नहीं है।ईसी हमेशा से कहता रहा है कि 22 साल बाद हो रहा यह पुनरीक्षण मतदाता सूची से अपात्र लोगों और डुप्लिकेट प्रविष्टियों को हटा देगा और कानून के अनुसार मतदान के पात्र लोगों को भी इसमें शामिल करेगा।
एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग पर विपक्ष के हमले के बारे में पूछे जाने पर, सिब्बल ने कहा, “जब से ये सरकार सत्ता में आई है, तब से ये लंबे समय से सरकार के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के आचरण के बारे में जितना कम कहा जाए, उतना ही अच्छा है।सिब्बल ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि उन्हें चुनाव आयोग की स्वतंत्रता में बिल्कुल भी विश्वास नहीं है क्योंकि इस संस्था ने वो स्वतंत्रता नहीं दिखाई है जिसकी उससे अपेक्षा की जाती थी।
उन्होंने कहा, “उम्मीद है कि अदालत ने जो भी कहा है, चुनाव आयोग उस पर खुद विचार करेगा। ताकि ये विवाद आगे न बढ़े।”ये देखते हुए कि संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है, सिब्बल ने कहा कि एसआईआर का मुद्दा आज चर्चा में आए किसी भी अन्य मुद्दे से शायद ज़्यादा अहम है।उन्होंने ये भी कहा कि महाराष्ट्र का मुद्दा भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि “चुनाव आयोग अभी तक ये स्पष्ट नहीं कर पाया है कि केवल उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में अचानक वृद्धि कैसे हुई जहां बीजेपी जीती है।”