कांग्रेस ने देश में बेरोजगारी की ‘गंभीर समस्या’ को लेकर केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने युवाओं के सपनों को कुचल दिया है जिसके कारण युवाओं में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि सरकार की विनाशकारी आर्थिक नीतियों और बिना किसी योजना के लगाए गए लॉकडाउन ने वास्तव में शिक्षित युवाओं के लिए औपचारिक रोज़गार के अवसरों को कम कर दिया है।
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘भारत में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। छिपी बेरोज़गारी की स्थिति भी चिंताजनक है। दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल पर अपनी बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने देखा कि बड़ी संख्या में शिक्षित युवा, जिनमें इंजीनियरिंग की डिग्री वाले भी शामिल हैं, संगठित क्षेत्र में रोज़गार पाने में असमर्थ हैं। वे मजबूरी में कुली जैसा अनिश्चित और अनौपचारिक रोज़गार कर रहे हैं।’’
रमेश ने आरोप लगाया कि संगठित क्षेत्र में पर्याप्त रोज़गार उपलब्ध कराने में मोदी सरकार की घोर विफलता के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है।
उनके मुताबिक, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के 2021-22 के आंकड़ों से पता चलता है कि औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार 2019-20 की तुलना में 5.3 प्रतिशत कम हुए हैं। इसके अलावा 2019-20 से 2021-22 तक औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार देने वालों की संख्या में भी 10.5 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है।
उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार रोज़गार संकट से निपटने के बजाय आंकड़ों को छिपाने, तोड़-मरोड़ कर पेश करने और तरह-तरह की ‘नौटंकी’ करने में व्यस्त है।
रमेश ने आरोप लगाया, ‘‘मोदी सरकार ने भारत के युवाओं के सपनों और आकांक्षाओं को इस हद तक कुचल दिया है कि उनके पास नौकरी तो है ही नहीं, उन्होंने भविष्य में भी इसकी उम्मीद छोड़ दी है। वे इस हद तक हताश हैं कि शिक्षा या प्रशिक्षण में निवेश करना ही नहीं चाहते। इसका दुखद परिणाम यह है कि युवा आत्महत्या दर (30 वर्ष से कम आयु) 2016 के बाद से तेज़ी से बढ़ रही है।’’
उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय लाभांश के जनसांख्यिकीय आपदा में बदलने के संकट से निपटने के बजाय यदि मोदी सरकार अगला कदम युवाओं में आत्महत्या दर को छिपाने के लिए 2022 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में हेरफेर करने का उठाए तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।