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मोदी कश्मीरियों को गले लगाने में विश्वास रखते हैं, तो मुझे वहां जाने से क्यों रोका गयाः यशवंत सिन्हा

अटल सरकार में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा पिछले दिनों कश्मीर जाना चाह रहे थे लेकिन उन्हें श्रीनगर...
मोदी कश्मीरियों को गले लगाने में विश्वास रखते हैं, तो मुझे वहां जाने से क्यों रोका गयाः यशवंत सिन्हा

अटल सरकार में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा पिछले दिनों कश्मीर जाना चाह रहे थे लेकिन उन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से ही वापस दिल्ली लौटा दिया गया। वहां जाने से रोकने पर सिन्हा ने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर वहां के हालात सामान्य हैं तो फिर एक जनप्रतिनिधि को वहां जाने से क्यों रोका गया? सिन्हा ने ‘आउटलुक’ से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री के गले लगाने और स्वर्ग के वादे से कश्मीरी प्रभावित नहीं होंगे। बता दें कि वैसे सिन्हा की नाराजगी कश्मीर मसले तक ही सीमित नहीं है। वह मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर भी तीखी आलोचना करते रहे हैं। आउटलुक से यशवंत सिन्हा की बातचीत के कुछ खास अंश-

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में कहा कि ‘हमें प्रत्येक कश्मीरी को गले लगाना चाहिए और घाटी में एक नया स्वर्ग बनाना चाहिए’। क्या आप ऐसा मानते हैं? 

तीन साल पहले, मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि कश्मीरियों पर आरोप मत लगाओ, उन्हें गले लगाओ। अब गुरुवार को नासिक में एक चुनावी रैली के दौरान पीएम ने फिर दोहराया कि हमें 'कश्मीरियों को गले लगाना' चाहिए। लेकिन जब मैंने ऐसा करना चाहा यानी वहां जाकर उन्हें गले लगाने की कोशिश की, तो मुझे रोक दिया गया। आप एक ऐसे व्यक्ति को क्या कह सकते हैं, जो ऐसी बातें कह रहा है जिसमें वह खुद ही विश्वास नहीं करता? आप दिल्ली या महाराष्ट्र में कह सकते हैं कि हम कश्मीर को स्वर्ग में बदल देंगे, लेकिन इन बातों से कश्मीरी प्रभावित होने वाले नहीं हैं।

आपको श्रीनगर से दिल्ली वापस भेज दिया गया। क्या आप हमें बता सकते हैं कि हवाई अड्डे पर कैसे ये घटना हुई?

मैंने जम्मू-कश्मीर जाने का फैसला तब किया, जब सरकार ने 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि घाटी में पांच-छह पुलिस स्टेशनों को छोड़कर राज्य में सब कुछ सामान्य है और वहां कोई प्रतिबंध नहीं है। मेरे साथ श्रीनगर जाने वालों में चिंतित नागरिक समूह के सदस्य- भारत भूषण और कपिल काक भी थे। जब हम हवाई अड्डे पर पहुंचे, तो मुझे बडगाम जिले के उपायुक्त ने आगे बढ़ने से रोक दिया। हालांकि, उन्होंने कहा कि अन्य जा सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं शांति मिशन पर कई सालों से कश्मीर आ रहा हूं लेकिन उन्होंने इस पर भरोसा नहीं किया। इसलिए मैंने लिखित में आदेश देने की मांग की। दो घंटे के बाद, वह एक आदेश के साथ वापस आए, जिसमें कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 144 के तहत विभिन्न स्रोतों से विश्वसनीय इनपुट हैं कि मेरी यात्रा से कानून और व्यवस्था की स्थिति में बाधा आएगी।

आपने यह भी कहा कि प्रशासन ने आपको दिल्ली लौटने के लिए मजबूर किया?

पुलिस मुझे दिल्ली लौटने के लिए बोल रही थी। लेकिन मैं अपनी जगह से हिला नहीं और मैंने डीएम से कहा कि उन्हें एक और लिखित आदेश दिखाना होगा। शाम 5 बजे, एसपी एक अन्य आदेश के साथ वापस आए, जिसमें कहा गया था कि मैं हवाई अड्डे पर नहीं रह सकता क्योंकि यह एक डिफेंस एयरपोर्ट है। फिर मैंने उनसे कहा कि मैं इस आदेश को संवैधानिक, नैतिक या कानूनी नहीं मानता और मांग करता हूं कि वे मुझे गिरफ्तार करें और मुझे मजिस्ट्रेट के पास ले जाएं। लगभग 5:30 बजे, वे व्हीलचेयर के साथ लाउंज में आए और मुझसे कहा कि वे मुझे बाहर निकाल देंगे। लेकिन, वे मुझे बोर्डिंग गेट की जगह ले गए। मैंने विरोध किया और थोड़ा हंगामा भी हुआ। जब मैंने उठने की कोशिश की तो पुलिस ने मुझे नीचे गिरा दिया। उन्होंने मुझे जबरन दिल्ली की फ्लाइट में बिठाया, जो शाम 5:45 बजे निकल रही थी। समूह के बाकी सदस्यों को आरक्षित लाउंज में बंद कर दिया गया था ताकि वे यह सब न देख सकें। उन्होंने सभी को वीडियो नहीं लेने की चेतावनी दी।

कश्मीर में नजरबंदी का 46वां दिन है। क्या आपको लगता है कि वहां की स्थिति सामान्य है, जैसा कि सरकार दावा कर रही है?

अगर वाकई स्थिति सामान्य है, जैसा कि सरकार दावा कर रही है तो कम से कम हवाई अड्डे के सरकारी कार्यालयों में कामकाज होना चाहिए। लेकिन वहां कोई नहीं था। मैं जम्मू-कश्मीर के पर्यटन विभाग गया था, जहां कोई भी नजर नहीं आया। छोटे भोजनालय को छोड़कर, सभी कार्यालय बंद थे। एयरपोर्ट पर भी बहुत कम यात्री दिखाई दे रहे थे।

आपकी नजर में हाल ही में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत पूर्व जम्मू-कश्मीर के सीएम फारूक अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के क्या मायने होंगे?

मैं फारूक को राष्ट्रवादी मानता हूं और वह वर्तमान में संसद के सदस्य भी हैं। वह एक बूढ़े व्यक्ति हैं और उनका स्वास्थ्य भी चिंता का विषय है। इस तरह का कदम उठाकर सरकार ने घाटी में भारत समर्थक भावनाओं को छोड़ दिया है और उन्होंने भारत का समर्थन करने वालों को भी नष्ट कर दिया है।

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कश्मीर की यात्रा की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया है। क्या आप भी ऐसा करेंगे?

मैं दो कारणों से सुप्रीम कोर्ट नहीं जाऊंगा। हाल ही में, व्यक्तिगत स्वतंत्रता याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य के अधिकारों को सर्वोपरि रखा है, न कि देश के नागरिक के मौलिक अधिकार को। उन्होंने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए कि एक व्यक्ति या उसके मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण नहीं हैं।दूसरा कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट कश्मीर की यात्रा के लिए वीजा जारी करने वाला प्राधिकरण नहीं है। इसलिए, मैं इस बात के खिलाफ हूं कि कश्मीर जाने के लिए कोई कोर्ट की मंजूरी ले।

येचुरी के कारण अलग थे क्योंकि वह इलाज के लिए सीपीएम नेता यूसुफ तरीगामी को दिल्ली लाना चाहते थे। और गुलाम नबी आजाद को इस शर्त पर चार जिलों का दौरा करने की अनुमति दी गई थी कि वे किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। हमें कोर्ट से इस तरह के प्रतिबंध को क्यों स्वीकार करना चाहिए? एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक को देश के किसी भी हिस्से की यात्रा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए?

घाटी में बच्चों को हिरासत में रखने और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप हैं। आप वहां से क्या सुन रहे हैं?

भारतीय मीडिया द्वारा बताई गई स्थिति से बहुत अलग है घाटी की स्थिति। वहां हो रही ज्यादतियों पर आंखें मूंदने के लिए मीडिया जिम्मेदार है। एक राष्ट्र के रूप में, हमें उठना चाहिए और विरोध करना चाहिए। पिछले 46 दिनों से 70-80 लाख से अधिक लोग वहां कैद हैं और हम इसे सामान्य मानते हैं। अगर देश के किसी अन्य हिस्से में ऐसा होता, तो क्या हम इसे बर्दाश्त करते? लेकिन ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से अधिकांश लोग अपनी आवाज उठाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।

क्या आप दोबारा कश्मीर जाएंगे?

मैंने अपनी टीम के सदस्यों से सलाह ली है जो अभी-अभी घाटी से लौटे हैं। वे जल्द ही एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। मैं कश्मीर की एक और यात्रा की संभावना से इनकार नहीं कर रहा हूं।

 

 

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