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महाराष्ट्र: शिंदे बनाम उद्धव की जुबानी जंग, दशहरा रैली में एक दूसरे के खिलाफ जमकर बोले दोनों नेता

महाराष्ट्र में दशहरा रैली के दौरान शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ...
महाराष्ट्र: शिंदे बनाम उद्धव की जुबानी जंग, दशहरा रैली में एक दूसरे के खिलाफ जमकर बोले दोनों नेता

महाराष्ट्र में दशहरा रैली के दौरान शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच जमकर जुबानी जंग हुई।  ठाकरे ने मुख्यमंत्री शिंदे और उनके समर्थकों पर तीखा हमला करते हुए बुधवार को कहा कि उन (शिंदे) पर लगा ‘विश्वासघाती’ का कलंक कभी नहीं मिटेगा। वहीं एकनाथ शिंदे ने दशहरा रैली में कहा कि उनकी बगावत ‘विश्वासघात’ नहीं बल्कि ‘गदर’ थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से हाथ मिलाने को लेकर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे के स्मारक पर घुटने टेकने चाहिए और माफी मांगनी चाहिए।

शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में बगावत के बाद जून में मुख्यमंत्री पद छोड़ने वाले ठाकरे ने मुंबई के शिवाजी पार्क में वार्षिक दशहरा रैली को संबोधित किया। वहीं, शिंदे नीत शिवसेना के धड़े ने बीकेसी (बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स) में दशहरा रैली आयोजित की।

शिंदे की बगावत के कारण ठाकरे के नेतृत्व वाली प्रदेश की शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन वाली महा विकास आघाडी सरकार 29 जून को गिर गई थी जिसके बाद 30 जून को शिंदे ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।

पूर्व मुख्यमंत्री ने ठाकरे ने शिंदे पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘विश्वासघाती का कलंक कभी नहीं मिटेगा। जैसे-जैसे समय बदलता है, रावण का चेहरा भी बदल जाता है। आज, ये विश्वासघाती (रावण के रूप में) हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए जब मैं अस्वस्थ था और मेरी सर्जरी हुई थी, तो मैंने वरिष्ठ मंत्री होने के नाते उन्हें (शिंदे को) जिम्मेदारी दी थी।’’

ठाकरे ने आरोप लगाया, ‘‘लेकिन उन्होंने यह सोचकर मेरे खिलाफ साजिश रची कि मैं (शायद) फिर कभी पैरों पर खड़ा नहीं हो पाऊंगा।’’

उन्होंने कहा कि आज का रावण ज्यादा सिर होने की वजह से नहीं बल्कि ‘खोखे’ (पैसे) की वजह से जाना जाता है। ऐसा कहकर उन्होंने एमवीए सरकार को गिराने में कथित रूप से धन के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आपको लगता है कि मुझे शिवसेना अध्यक्ष नहीं रहना चाहिए, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। लेकिन सत्ता लोलुप होने की एक सीमा होती है… विश्वासघात करने के बाद, वह (शिंदे) अब पार्टी का चुनाव चिह्न भी चाहते हैं और पार्टी अध्यक्ष भी कहलाना चाहते हैं।’’

उद्धव ठाकरे ने कहा कि शिंदे अब शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत को अपनाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें ‘‘अपने पिता के नाम पर’’ वोट नहीं मिलेंगे।

ठाकरे ने कहा कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वादा तोड़ने का सबक सिखाने के लिए पारंपरिक विरोधियों- कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव के बाद गठबंधन किया था।

ठाकरे ने कहा, ‘‘मैं अपने माता-पिता की कसम खाकर कहता हूं कि यह तय किया गया था कि भाजपा और शिवसेना ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद साझा करेंगे।’’

उन्होंने कहा कि एमवीए सरकार में कांग्रेस और राकांपा नेताओं के साथ मंत्री पद की शपथ लेने वाले सबसे पहले नेताओं में शिंदे शामिल थे और ‘‘उन्हें तब कोई दिक्कत नहीं थी।’’

वह शिंदे के उस दावे के संदर्भ में बात कर रहे थे कि जिसमें शिवसेना के बागी नेता ने कहा था कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने नए गठबंधन को कभी मान्यता नहीं दी।

ठाकरे ने यह भी कहा कि उन्हें भाजपा से हिंदुत्व पर सबक लेने की जरूरत नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा नेताओं ने नवाज शरीफ (पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री) के जन्मदिन पर बिना निमंत्रण के उनसे मुलाकात की और जिन्ना की कब्र के सामने नतमस्तक हुए।’’

ठाकरे ने अपनी पुराने गठबंधन सहयोगी भाजपा पर गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई से ध्यान हटाने के लिए हिंदुत्व का मुद्दा उठाने का भी आरोप लगाया।

शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद को लेकर 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद सहयोगी भाजपा से नाता तोड़ लिया था।

बढ़ती आय असमानता और बेरोजगारी की चुनौतियों के बारे में होसबाले के बयान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने भाजपा को आईना दिखाया है।’’

डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत के संदर्भ में ठाकरे ने भाजपा की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज का बयान दोहराया कि जब रुपये की कीमत गिरती है तो देश की कीमत भी कम होती है।

अपने दिवंगत पिता द्वारा स्थापित पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखने का प्रयास कर रहे ठाकरे ने दशहरा रैली में मौजूद शिवसेना के कैडर से मदद मांगी। उन्होंने कहा, ‘‘आज मेरे पास कुछ नहीं है। लेकिन आपके समर्थन से शिवसेना फिर उठ खड़ी होगी। मैं फिर से शिवसेना के एक कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बनाउंगा। हमें हर चुनाव में विश्वासघातियों को हराना होगा।’’

ठाकरे ने अंधेरी पूर्वी सीट से होने वाले विधानसभा उपचुनाव का स्पष्ट संदर्भ देते हुए उक्त बातें कहीं।

उन्होंने भाजपा नेता व केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भी निशाना साधा और सवाल किया कि शाह देश के गृह मंत्री हैं या फिर भाजपा के ‘‘आंतरिक मंत्री’’ जो सिर्फ राज्यों में सरकारें गिराते रहते हैं।

शिवसेना को जमीन दिखाने की भाजपा कार्यकर्ताओं से शाह की अपील पर पलटवार करते हुए ठाकरे ने कहा, ‘‘हम भी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की जमीन को अपने देश का हिस्सा बनते हुए देखना चाहते हैं।’’

महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार पर चुटकी लेते हुए ठाकरे ने कहा कि शिंदे नीत सरकार को सत्ता में आए करीब 100 दिन हो गए हैं लेकिन उनका ज्यादातर वक्त दिल्ली में गुजर रहा है।

उन्होंने कहा कि सभी राष्ट्रवादी भारतीयों को भाजपा से बचकर रहना चाहिए क्योंकि उसका लक्ष्य सभी राजनीतिक दलों को समाप्त करने का है।

शिवसेना प्रमुख ने कहा, ‘‘आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत हाल ही में मस्जिद गए थे। क्या उन्होंने हिन्दुत्व का साथ छोड़ दिया है?’’

गौरतलब है कि भाजपा कटाक्ष करती रही है कि राकांपा और कांग्रेस से हाथ मिलाकर उद्धव ठाकरे ने हिन्दुत्व का साथ छोड़ दिया।

दूसरी ओर दशहरे के अवसर पर बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) के एमएमआरडीए मैदान में एक महारैली को संबोधित करते हुए शिंदे ने कहा कि राज्य में मतदाताओं ने 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा को चुना था, लेकिन उद्धव ठाकरे ने महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार के गठन के लिए कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिलाकर राज्य की जनता को ‘धोखा’ दिया।

शिंदे ने करीब डेढ़ घंटे लंबे भाषण में कहा, ‘‘हमने गद्दारी नहीं की, बल्कि यह गदर था। हम गद्दार नहीं हैं, बल्कि बाला साहेब के सैनिक हैं। आपने बाला साहेब के मूल्यों को बेच दिया। कौन असली गद्दार है जिसने सत्ता के लालच में हिन्दुत्व से गद्दारी की।’’

शिवसेना का ठाकरे गुट अक्सर शिंदे नीत विद्रोहियों को ‘गद्दार’ कहकर निशाना बनाता रहा है।

मुख्यमंत्री ने जून में ठाकरे नेतृत्व के खिलाफ अपनी बगाव का बचाव करते हुए कहा, ‘‘हमने यह कदम शिवसेना को बचाने, बाला साहेब के मूल्यों के संरक्षण, हिन्दुत्व और महाराष्ट्र की बेहतरी के लिए उठाया। हमने सबके सामने ऐसा किया।’’

गौरतलब है कि शिंदे गुट की बगावत के कारण राज्य की मौजूदा महा विकास आघाड़ी (कांग्रेस- राकांपा- शिवसेना गठबंधन की) सरकार 29 जून को गिर गयी थी। इसके बाद शिंदे ने 30 जून को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।

मुख्यमंत्री ने उद्धव ठाकरे से शिवसेना के संस्थापक व उनके दिवंगत पिता बाल ठाकरे के स्मारक पर घुटने टेकने और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों-कांग्रेस तथा राकांपा से हाथ मिलाने के लिए माफी मांगने को कहा।

अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर निशाना साधते हुए शिंदे ने कहा, ‘‘क्या आपको (उद्धव ठाकरे) बाल ठाकरे के मूल्यों से समझौता करने के लिए पद (शिवसेना अध्यक्ष) पर बने रहने का अधिकार है?’’

उन्होंने कहा कि उनकी दशहरा रैली में भारी भीड़ यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि बाल ठाकरे की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी कौन हैं।

शिंदे ने कहा कि मुख्यमंत्री होने के नाते वह अपने गुट की दशहरा रैली के लिए शिवाजी पार्क बुक करने में हस्तक्षेप कर सकते थे, लेकिन कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने ऐसा नहीं किया।

उन्होंने कहा, ‘‘आपको (शिवाजी पार्क) मैदान मिलने के बावजूद हमारे पास शिवसेना प्रमुख (बाल ठाकरे) के सिद्धांत हैं।’’

ठाकरे नीत गुट को बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद दादर स्थित शिवाजी पार्क में दशहरा रैली आयोजित करने की मंजूरी मिली थी।

पार्टी के बागी धड़े के मुखिया शिंदे ने पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे की आलोचना करते हुए कहा कि शिवसेना कोई ‘प्राइवेट लिमिटेड कंपनी’ नहीं है और 56 साल पुराने संगठन को शिवसेना के आम कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से बनाया गया है।

उन्होंने कहा कि ठाकरे कभी ‘हम दो हमारे दो’ से आगे नहीं बढ़े। वह उद्धव ठाकरे के पुत्रों आदित्य और तेजस ठाकरे का हवाला दे रहे थे।

शिंदे की रैली में उद्धव ठाकरे के भाई जयदेव ठाकरे और उनसे अलग हुईं उनकी पत्नी स्मिता ठाकरे ने भाग लिया।

दिवंगत बाल ठाकरे के पोते निहार ठाकरे तथा शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के लंबे समय तक निजी सहयोगी रहे चंपा सिंह थापा ने भी रैली में हिस्सा लिया।

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