महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दलों की सरकार बनाने में असमर्थता के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। महाराष्ट्र में यह तीसरी बार है जब राष्ट्रपति शासन का कदम उठाया गया है। महाराष्ट्र 1 मई 1960 को अस्तित्व में आया था।
इससे पहले महाराष्ट्र में पहली बार फरवरी 1980 को लागू हुआ था। उस समय शरद पवार मुख्यमंत्री थे। उनके पास बहुमत था लेकिन राजनीतिक हालात बिगड़ने पर विधानसभा भंग कर दी गई थी। दूसरी बार, इसी तरह 28 सितंबर 2014 को भी महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उस समय राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस थी। कांग्रेस अपने सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सहित अन्य दलों के साथ अलग हो गई थी और विधानसभा भंग कर दी गई थी लेकिन इस दफे 12 नवंबर 2019 को राजनीतिक दलों की सरकार बनाने में असमर्थता के कारण राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। राज्य में ऐसा पहली बार हुआ है कि पार्टियां चुनाव के तुरंत बाद सरकार बनाने में असमर्थ रही हों और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया हो।
क्यों बना गतिरोध
राज्य विधानसभा के 21 अक्टूबर के घोषित किए गए थे और 24 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए गए थे। इसमें भाजपा 105 सीटों के साथ अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, उसके बाद शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं। चुनाव पूर्व सहयोगी भाजपा और शिवसेना ने मिलकर 288 सदस्यीय सदन में 161 सीटें जीती थीं। उन्हें स्पष्ट बहुमत गया था लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर टकराव ने भाजपा और शिवसेना दरार पैदा कर दी और सरकार गठन को लेकर गतिरोध बना रहा।
शिवसेना नहीं दे पाई समर्थन पत्र
पिछले सप्ताह भाजपा ने राज्यपाल बी एस कोश्यारी को संख्या की कमी का हवाला देते हुए सरकार बनाने में असमर्थता जताई। इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना से सरकार बनाने के लिए पूछा गया। इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से भी सरकार बनाने की संभावना तलाशी, लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिली। सोमवार को शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार बनाने की इच्छा जताई लेकिन अपेक्षित समर्थन पत्र पेश नहीं कर पाई।