नेशनल हेराल्ड मामले पर बुरी तरह घिरी कांग्रेस कल यानी 19 दिसंबर को अदालत में क्या रणनीति अपनाएगी, इसे लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन इस बात पर सहमति बन रही है कि इसे कांग्रेस शक्ति प्रदर्शन के मौके के तौर पर इस्तेमाल करेगी। वजह, यह सीधे-सीधे कांग्रेस के आला नेतृत्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधने वाला मामले है। इस पर अगर कांग्रेस ने मजबूत लड़ाई नहीं लड़ी तो कांग्रेसियों का देश भर में मनोबल टूट जाएगा।
ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि कल सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के जितने भी मुख्यमंत्री हैं, वे भी समर्थन में मार्च करेंगे। कांग्रेस में इस बात की भी तैयारी चल रही है कि वह अदालत में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की पेशी को एक बड़े इवेंट के तौर पर पेश करे। साथ ही इसे केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक तीखी राजनीतिक लड़ाई में तब्दील करे। इसके लिए ही कांग्रेस आला कमान में मंथन जारी है।
क्या इसे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई में एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के एक अवसर के तौर पर देख रही है? कांग्रेस इस मामले की लड़ाई अदालत से ज्यादा देश की संसद में क्या सोचकर लड़ रही है? क्या कांग्रेस उपाध्यक्ष नेशनल हेराल्ड मामले में शहीदाना अंदाज से जेल जाकर पार्टी में एक नई जान डालने की सोच रहे हैं? क्या कांग्रेस में इस मामले में दो राय है? क्या नेशनल हेराल्ड मामले पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर शिकंजा कसने से बाकी विपक्षी दलों के समर्थन में आने और राष्ट्रीय स्तर पर एक वैकल्पिक प्लेटफॉर्म बनने की संभावना बनती है?
ये सारे सवाल इन दिनों संसद के गलियारे से लेकर कांग्रेस के दफ्तर 24 अकबर रोड में चक्कर काट रहे हैं। इनके सही-सही जवाब तो शायद कांग्रेस के आलाकमान के पास भी नहीं हैं। आगे की रणनीति को लेकर जो दुविधा बनी हुई है, उसे दूर करने और कड़ा मुकाबला करने की तैयारी अपनी कतारों को देने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी की बहू होने का दावा करते हुए यह दम ठोंका था कि वह किसी से डरती नहीं हैं। इसी सख्त रवैये को आगे बढ़ाते हुए राहुल गांधी ने इस पूरे मामले को प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा चलाया जा रहा राजनीतिक प्रतिशोध बताया।