“पाकिस्तान से तनाव तो घटा लेकिन आम चुनावों के मद्देनजर राष्ट्रवाद पर नई जंग हुई शुरू”
एक जंग वह, जो हुई नहीं या जिसे लगभग दोनों तरफ से “गैर-फौजी एहतियातन कार्रवाई” कहकर इंतिहा कर लिया गया या फिलहाल ऐसा आभास दिया गया। लेकिन एक दूसरी जंग बदस्तूर जारी हो गई और दिनोंदिन उफान लेती जा रही है। इसके स्ट्राइक निशाने भी खैबर पख्तूनख्वा जैसे कोई छुपे ठिकाने नहीं, बल्कि इसके सूरमाओं के बयानों पर ही गौर करें तो एकदम साफ हैं। इस जंग में राष्ट्रवाद एक नई परिभाषा के साथ नमूदार हो रहा है, जिसके तहत सरकार पर किसी तरह का सवाल उठाने वाले उसके विरोधी हैं। इसमें सिर्फ सरकार और सत्ताधारी पार्टी ही नहीं, बल्कि मीडिया का एक बड़ा तबका भी मशगूल है। लेकिन विपक्ष भी अपने सवालों की धार उसी तरह सान पर चढ़ा रहा है। यह तो अलग है कि इस फिजा का आखिरी रंग आम चुनावों में किस कदर दिखेगा मगर कोशिश भरपूर है।
इसका रंग तो 14 फरवरी को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले पर फिदायीन हमले के बाद ही चढ़ने लगा था, लेकिन यह सुर्खरू हुई 26 फरवरी को भारतीय वायु सेना के 12 मिराज-2000 विमानों के पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के कथित आतंकी ठिकाने के एक मदरसे पर गुपचुप हवाई हमले के बाद। इस दौरान बयानों पर ही गौर कर लें तो बहुत कुछ साफ हो जाता है।
पुलवामा हमले के अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झांसी की रैली में कहा, “इसका बदला लिया जाएगा और सेना को पूरी छूट दे दी गई है। जवाबी कार्रवाई का समय और स्थान सेना खुद तय करेगी।” हालांकि पहले विपक्ष ने कुछ संयम बरता। केंद्रीय गृह मंत्री ने सर्वदलीय बैठक की अगुआई की। विपक्ष ने अपने सभी कार्यक्रम दो-तीन दिनों के लिए रद्द कर दिए। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अपने बयान के लिए रैलियों का ही सहारा लेते रहे और कई राज्यों में शिलान्यासों और उद्घाटनों का सिलसिला जारी रखा। उधर, टीवी चैनलों और अधिकतर अखबारों में बदले और युद्ध के उन्मादी स्वर हावी होने लगे। लेकिन पुलवामा हमले की जिम्मेदार खुफिया और दूसरी खामियों पर सवाल नहीं पूछे जा रहे थे। आखिर विपक्षी दलों ने भी पुलवामा हमले से उठ रहे सवालों पर सरकार को घेरना शुरू किया। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह देश भर की रैलियों में पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने का उद्घोष करते रहे।
यह उद्घोष 26 फरवरी के हमले के बाद चरम पर पहुंचा, जब प्रधानमंत्री ने राजस्थान के चुरू में कहा, “मैं देश नहीं झुकने दूंगा, देश नहीं मिटने दूंगा....देश मजबूत हाथों में है।” प्रधानमंत्री के पीछे मंच पर पुलवामा के शहीदों की तस्वीरें लगी थीं। लेकिन 27 फरवरी को पाकिस्तानी विमानों के कश्मीर के नौशेरा क्षेत्र में एयर स्ट्राइक से थोड़ा ठहराव आया, जब हमारे मिग-21 के गिरने और विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के पकड़े जाने की खबरें आईं।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबावों और जंग के हालात से शायद पीछे हटने के लिए 28 फरवरी को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अभिनंदन को अगले दिन रिहा करने का ऐलान कर दिया। एक मार्च को अभिनंदन के वापस आने के बाद एक बार फिर से सत्ता पक्ष और विपक्ष की जंग अपने मोर्चे पर आ डटी।
न तो सरकार ने और न ही सेना ने यह दावा किया कि बालाकोट में हताहतों की संख्या कितनी थी, लेकिन भाजपा के नेता और टीवी चैनल दावा कर रहे थे कि 300 या 350 आतंकवादी मारे गए। इसी के साथ विपक्ष ने संसद में 1 मार्च को बैठक करके “सैनिकों की शहादत और सैन्य कार्रवाई का राजनैतिक इस्तेमाल करने के लिए” सरकार पर दोषारोपण किया। अचानक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया कि “हवाई हमले में 250 आतंकी मारे गए।” इसके पहले केंद्रीय राज्यमंत्री एस.एस. अहलूवालिया कह चुके थे, “हमले का उद्देश्य चेतावनी भर था, नुकसान करना नहीं।” अगले दिन वायु सेना प्रमुख बीरेंदर सिंह धनोवा ने कहा, “हमारा काम निशाने को ध्वस्त करना है, हताहतों की संख्या गिनना नहीं, यह सरकार का काम है।” इसी बीच, कर्नाटक में भाजपा नेता बी.एस. येदियुरप्पा यह दावा कर बैठे कि “हवाई हमले के बाद भाजपा राज्य में कुल 28 में से 22 सीटें जीत जाएगी।”
इसके साथ ही विपक्ष ने शायद भांप लिया कि भाजपा चुनावों में इस सैन्य कार्रवाई का लाभ लेने की रणनीति बना रही है तो सवालों का सिलसिला शुरू हो गया। पहला बयान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से आया। उन्होंने पूछा, “हवाई हमले के बाद पीएम ने किसी भी पार्टी के नेता से मुलाकात नहीं की। हम ऑपरेशन का ब्योरा जानना चाहते हैं। जहां बम गिराया गया है वहां कितने लोग मारे गए। विदेशी मीडिया में बताया जा रहा है कि वहां किसी की मृत्यु नहीं हुई।” फिर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने कहा, “प्रधानमंत्री जी, आपकी सरकार के कुछ मंत्री कहते हैं कि 300 आतंकी मारे गए, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि 250 मारे हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं 400 मारे गए और एक अन्य मंत्री एस.एस. अहलूवालिया कहते हैं एक भी नहीं मारा गया। आप इस विषय में मौन हैं। देश जानना चाहता है कि इनमें झूठा कौन है।” फिर क्या था, प्रधानमंत्री ने अपनी अगली सभाओं कहा, “मैं आतंकियों का सफाया करना चाहता हूं और विपक्ष मुझे हटाने में जुटा है।” एक दूसरी सभा में उन्होंने कहा, “चाहे मुझे झूठा कहो मगर सेना को बदनाम तो न करो।”
बेशक, देश में इससे उभरे राष्ट्रवाद के नए ज्वार का इस्तेमाल भाजपा चुनाव में करने की योजना बना रही है, इसकी मिसालें प्रधानमंत्री और भाजपा के दूसरे नेताओं के बयानों में भी दिख रही हैं। यही नहीं, इसके जरिए सभी सवालों को ढंकने की कोशिश की जा रही है, यह भी स्पष्ट है। प्रधानमंत्री ने हाल में कहा, “अगर राफेल विमान होते तो शायद नतीजे और बेहतर होते।” जाहिर है, इसके जरिए राफेल विमान सौदे पर उठ रहे सवालों को भी दबाने की कोशिश चलेगी। भाजपा अब इसे चुनावों में अपनी वापसी की संजीवनी की तरह इस्तेमाल करने की योजनाएं बना रही है। लेकिन दुनिया शायद इसलिए चिंतित थी कि जब सीरिया, अफगानिस्तान, यहां तक कि अमेरिका और उत्तर कोरिया में संघर्ष की स्थितियां उतार पर हैं तो युद्ध का कोई और मोर्चा न खुले। यकीनन, भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के हालात बेहद खतरनाक इसलिए भी थे कि दोनों ही परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। इसलिए दुनिया के ताकतवर देश फौरन हरकत में आए। अमेरिका ही नहीं, चीन, रूस और सऊदी अरब ने भी तनाव घटाने की पहल की।
हालांकि, हालात जंग की ओर तो नहीं गए लेकिन दोनों देशों में तनाव और भावनाओं का ज्वार उफान लेने लगा। कूटनीतिक जंग भी जारी है और सियासत में भी उसके रंग दिख रहे हैं। भारत को पहली बार संयुक्त अरब अमीरात में इस्लामिक देशों के संगठन (ओआइसी) की बैठक में आमंत्रित किया गया तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री उसमें नहीं पहुंचे। फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फ्रांस जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकियों की सूची में डालने का प्रस्ताव ले आया है। इसे भारत की कूटनीतिक विजय माना गया है, जो एक मायने में है भी, वजहें चाहे जो हों। पाकिस्तान भी इससे खुश होगा कि उसके प्रधानमंत्री इमरान खान ने जंग के बदले बातचीत की पहल कर और भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को अगले ही दिन बिना शर्त रिहा कर दुनिया में काफी वाहवाही लूटी है।
पुलवामा हमले के बाद भारत में जब युद्ध के लिए माहौल बनने लगा था तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बयान जारी किया, “भारत अगर एक्शनेबल जानकारियां मुहैया कराए तो हम कार्रवाई करेंगे। हम भी दहशतगर्दी के शिकार हैं। लेकिन अगर भारत जंग छेड़ेगा तो जवाबी कार्रवाई के लिए पाकिस्तान सोचेगा नहीं, कर देगा।” फिर 24 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का बयान आता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है और कभी भी कुछ भी हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी 25 फरवरी को दिल्ली में युद्ध स्मारक के उद्घाटन के अवसर पर फिर कहते हैं कि बदला तो लिया जाएगा। 26 फरवरी को तड़के तीन बजे पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में बालाकोट के पास जाबा पहाड़ी की एक चोटी पर कथित तौर पर एक मदरसे पर बम गिराया गया। इस मदरसे का जिक्र 2011 में विकीलीक्स द्वारा लीक किए 2004 के अमेरिकी विदेश विभाग के दस्तावेजों में था कि यह जैश-ए-मोहम्मद का ट्रेनिंग कैंप है। 12 विमानों ने उड़ान भरी, जिसमें 1,000 किलो के स्पाइश-2,000 प्रेसिजन गाइडेड बम निशाने पर गिराए। इसकी ब्रीफिंग भी वायु सेना या रक्षा मंत्रालय ने नहीं, बल्कि विदेश सचिव विजय गोखले ने की, जिसके अपने मायने गोखले की बात से ही जाहिर होते हैं। उन्होंने इसे “असैन्य एहतियातन कार्रवाई” बताया, क्योंकि पुख्ता खुफिया सूचना थी कि वहां जैश-ए-मोहम्मद दूसरे हमलों के लिए फिदायीन तैयार कर रहा है। गोखले के बयान पर गौर करेंगे तो साफ संदेश था कि यह न युद्ध अभियान था, न इसका मकसद पाकिस्तानी सीमा में घुसपैठ करना था।
अगले दिन 27 फरवरी को अचानक पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने दिन के 10-11 बजे के बीच जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में तीन निशानों पर बम गिराकर हैरान कर दिया। ये तीनों निशाने हमारे सैन्य ठिकानों के करीब थे, लेकिन निर्जन स्थान पर बम गिरने से जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन पाकिस्तानी विमानों को खदेड़ते हुए हमारा एक मिग विमान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में गिर गया और विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान पाकिस्तानी फौज के कब्जे में आ गए। हमारी ओर से यह भी कहा गया कि पाकिस्तान का एक एफ-16 विमान भी मार गिराया गया। हालांकि, हमारे विमान का मलबा तो दिखा, लेकिन पाकिस्तानी विमान के मलबे का पता नहीं चल पाया। पाकिस्तान ने इससे भी इनकार किया कि एफ-16 का इस्तेमाल किया गया था। इसे जायज ठहराने के लिए एक दिन बाद हमारी सेना की ब्रीफिंग में घटनास्थल से मिले एक मिसाइल के टुकड़े को दिखाया गया, जिसे कथित तौर पर सिर्फ एफ-16 विमान से ही दागा जा सकता है। इस तरह शायद यह बताने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान ने हमले के लिए एफ-16 का इस्तेमाल करके अमेरिका से करार का उल्लंघन किया है, ताकि पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके।
अगले दिन यानी 28 फरवरी को दोपहर में हनोई में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि भारत और पाकिस्तान से अच्छी खबरें आ रही हैं। शाम तक इमरान खान ने अपनी नेशनल एसेंबली के विशेष सत्र में ऐलान किया कि हम कल भारत के विंग कमांडर अभिनंदन को बिना शर्त रिहा कर देंगे। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मीडिया को बालाकोट में भी ले गया और वहां पता चला कि एक गांववाले को थोड़ी चोट लगी थी। बाकी जंगल में पेड़ और पक्षियों को नुकसान पहुंचा था। मदरसे के बारे में पहली बार एक लड़के के रिश्तेदार के जरिए यह खबर आई कि बम धमाकों से नींद टूटी तो सब डर गए, लेकिन जब और धमाके नहीं हुए तो फिर लोग सो गए। सुबह पाकिस्तानी फौज लड़कों को वहां से किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई और दो दिन बाद उनके घर भेज दिया गया। वैसे भी कहा जाता है कि 2005 में उस इलाके में भूकंप आया तो जैश का कैंप वहां से हटा दिया गया था।
बहरहाल, सच्चाई यह भी है कि करगिल युद्ध के बाद हुए चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत घट गया था। लेकिन विपक्षी दलों को भी अपनी रणनीति इस हालात में बदलनी पड़ सकती है। राष्ट्रवाद का नया ज्वार पैदा करने में मीडिया की भी भूमिका बड़ी है इसलिए इस पर आगे आप पढ़ेंगे। जो भी हो, नतीजे क्या होते हैं, इसका अंदाजा तो मई में ही मिलेगा।
भाजपा का वोटर स्ट्राइक
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद उत्साह उफान पर है। उसके नेताओं की मानें तो विपक्ष अब चाहे जैसी भी रणनीति बना ले, उनकी राह आसान हो गई है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने तो आउटलुक से यह तक कह दिया कि “अब तो लाहौर से चुनाव लड़ा लो, वहां से भी जीत मिलेगी।” उनका कहना है कि एयर स्ट्राइक और अभिनंदन की वापसी से पार्टी को चुनावों में बहुत फायदा मिलेगा। इसी रणनीति के तहत अब पार्टी राफेल से लेकर बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दों को राष्ट्रवाद के मुलम्मे के तहत ढंक लेने की राह पर चल पड़ी है। चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हो या पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की, सभी में पाकिस्तान को दिए गए जवाब की याद दिलाई जा रही है। यही नहीं, सोशल मीडिया में भी पार्टी ने बड़ी चतुराई से ऐसे कैंपेन शुरू कर दिए हैं जिससे एयर स्ट्राइक को भुनाया जा सके। पार्टी ने अपने हर बूथ पर पांच कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया कैंपेन की जिम्मेदारी सौंपी है। उनका काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित वरिष्ठ नेताओं के बयान को लोगों तक पहुंचाना है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक सांसद का कहना है कि अब चुनाव राष्ट्रवाद के नाम पर ही लड़ा जाएगा। सपा-बसपा गठबंधन के बाद जो एक आशंका बनी थी वह अब खत्म हो गई है। हर चुनावी रैली में एयर स्ट्राइक की याद आई, इसीलिए पार्टी ने 2019 का नया नारा ‘मोदी है तो मुमकिन है’ लॉन्च कर दिया है। एक अन्य नेता के अनुसार यह नारा साफ तौर पर संदेश देता है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री रहेंगे तो कुछ भी करना संभव है। अब देखना है कि यह नारा चुनावों में कमाल दिखा पाएगा या नहीं...