लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद सियासी गलियारों में चर्चा है कि अब कांग्रेस और एनसीपी का विलय हो जाना चाहिए। विलय को लेकर तर्क दिया जा रहा है कि सोनिया गांधी के जिस विदेशी मूल के कारण कांग्रेस से निकलकर एनसीपी बनी थी, अब यह मुद्दा भी बेमानी हो गया है तो एनसीपी में भी इस समय शरद पवार जैसे कद का नेता नहीं है जो आगे चलकर पार्टी को संभाल सके। अगर दोनों ही पार्टियों का विलय होता है तो इससे संसद के दोनों सदनों में दोनों दलों की स्थिति को भी मजबूती मिल सकेगी।
गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शरद पवार के आवास पर उनके साथ मुलाकात की। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने पहली बार अपने सहयोगी दल के किसी नेता के साथ मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद से ही एनसीपी के कांग्रेस में विलय की चर्चा जोरों पर होने लगी। हालांकि एनसीपी ने दोनों पार्टियों के विलय की खबर को खारिज कर दिया है। बावजूद इसके विलय की संभावनाओं को बल जरूर मिला है।
एनपीसी में नहीं कदवाला नेता
शरद पवार की बढ़ती उम्र के चलते भविष्य में एनसीपी के पास राष्ट्रीय स्तर का कोई चेहरा फिलहाल नहीं है। उनके भतीजे अजीत पवार राज्य की राजनीति से बाहर नहीं निकले और न निकलना चाहते हैं तो बेटी सुप्रिया सुले भी केंद्र की राजनीति में पवार जैसा कद नहीं बना पाई हैं।
बताया जाता है कि पार्टी के नेताओं ने अंदरखाने प्रस्ताव भी तैयार किया है। लोकसभा में एनसीपी के 5 सांसदों के विलय से कांग्रेस सदस्यों की संख्या बढ़कर 57 हो जाएगी और उसको विपक्ष के नेता का पद भी मिल जाएगा, जिस पर राहुल खुद काबिज होकर मोदी सरकार से मुकाबला कर सकते हैं और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद देने की बात कही जा रही है।
विदेशी मूल का मुद्दा भी खत्म
पहले दोनों दल महाराष्ट्र में बराबर की ताकत रखते थे, तब विलय संभव नहीं था। दोनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं की लंबी फेहरिस्त को एक दल में लाना मुश्किल था, लेकिन अब दोनों ही दल कमजोर हैं। वहीं, सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा भी खत्म हो गया है। चुनावों में लगातार हार और कई कद्दावर नेताओं के भाजपा या शिवसेना में जाने के बाद से महाराष्ट्र कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी एनसीपी में हलचल मची हुई है। ऐसे में एनसीपी के कांग्रेस में विलय की बातें जोर पकड़ रही हैं।
कांग्रेस से अलग होकर पवार ने बनाई थी अपनी पार्टी
शरद पवार ने 1983 में कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस सोशलिस्ट बनाई थी लेकिन 1986 में औरंगाबाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में उन्होंने इसका कांग्रेस में विलय कर दिया। 1999 में पवार फिर से कांग्रेस से अलग हो गए और एनसीपी का गठन किया।