एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में गोविंदाचार्य ने कहा कि संविधान सभा में शामिल लोगों को उस समय के जनप्रतिनिधियों ने नहीं चुना था बल्कि इस सभा के गठन की प्रक्रिया 1935 में अंग्रेजों ने शुरू की थी। इसलिए संवैधानिक गतिविधियों की अपनी एक पृष्ठभूमि है और उस समय क्या हुआ था इसपर एक निष्पक्ष बहस जरूरी है। यही नहीं गोविंदाचार्य ने यह भी कहा कि इस मसले पर काम शुरू भी हो चुका है।
गोविंदाचार्य के अनुसार संविधान में बदलाव के लिए पहले ऐसे लोंगों को साथ आना होगा जिन्होंने संविधान का अध्ययन किया है। इसके बाद सामाजिक वास्तविकताओं को चिह्नित करना होगा और यह देखना होगा कि उन्हें कैसे संविधान में शामिल किया जा सकता है। उन्होंने एक बार फिर आरक्षण पर सवाल उठाते हुए कहा कि सिर्फ आरक्षण से ही हर चीज ठीक नहीं हो सकती। संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों को भी अनिवार्य बनाना होगा।
गोविंदाचार्य ने कहा कि हमारा संविधान दरअसल हॉब्स, लॉक और केंट के पश्चिमी दर्शन पर आधारित है और शारीरिक सुख एवं व्यक्ति केंद्रित जबकि भारतीय संस्कृति व्यक्ति से अधिक परिवार को महत्व देती है। हमारी सभ्यता 4 से 5 हजार साल पुरानी है और इसकी खास बातों को संविधान में जगह मिलनी चाहिए। गोविंदाचार्य ने यह भी कहा कि संविधान में बदलाव के लिए जरूरी प्रक्रिया अगले दो साल में पूरी हो जाएगी।