असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के फाइनल ड्राफ्ट पर मचे सियासी घमासान के बीच शुक्रवार को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में जवाब देते हुए कहा कि एनआरसी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है। इस मामले में जो लोग छूट गए हैं, उनके खिलाफ अभी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।उन्होंने कहा कि मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि यह अंतिम मसौदा है, अंतिम सूची नहीं है। सभी लोगों को अपील करने का मौका मिलेगा।
गृहमंत्री ने कहा कि ड्राफ्ट से छूट गए 40 लाख परिवार नहीं हैं, बल्कि ये व्यक्तियों की संख्या हैं। उन्होंने साफ किया कि एनआरसी में कोई भेदभाव ना तो हुआ है और ना ही किया जाएगा, जिसे एनआरसी में नाम जुड़वाना है उसे सर्टिफिकेट पेश करना होगा। एनआरसी को लेकर हम शांति और सौहार्द बनाकर रखेंगे। 1971 से पहले के दस्तावेज दिखाने पर एनआरसी में नाम आ जाएगा। मामले में अनावश्यक डर फैलाने की कोरिश की गई है।
उन्होंने कहा कि एनआरसी की प्रक्रिया 1985 में असम समझौते के जरिये तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में शुरू हुई थी। इसको अपडेट करने का फैसला 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लिया था। पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में पूरी की गई है।
सभापति एम वेंकैया नायडू ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछा कि वह इस मुद्दे पर कुछ बोलना चाहेंगे क्योंकि गृह मंत्री ने अपने बयान में उनका नाम लिया है। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने इंकार कर दिया।
गुरुवार को टीएमसी के छह नेताओं का दल असम पहुंचा जहां उन्हें सिलचर एयरपोर्ट पर रोक दिया गया। नेताओं को हिरासत में लिए जाने और उन्हें जनसभा करने की इजाजत न दिए जाने के खिलाफ संसद में तृणमूल नेताओं ने विरोध जताया है। शुक्रवार को लोकसभा में तृणमूल के सांसदों ने इस मुद्दे पर काफी हो-हंगामा किया। जिसके चलके लोकसभा को स्थगित कर दिया गया।
लोकसभा में राजनाथ सिंह ने जवाब देते हुए कहा कि असम में इंटेलिजेंस की सूचना के आधार पर प्रशासन ने सांसदों को हिरासत में लिया। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने नेताओं से हाथ जोड़ कर विनती की कि एयरपोर्ट से बाहर जाना उनके लिए उचित नहीं होगा। इस दौरान एयरपोर्ट पर हल्का हंगामा भी हुआ. नेताओं ने सुरक्षा अधिकारियों से बहस शुरू कर दी जिसके बाद उन्हें सीआरपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया गया। नेताओं को शुक्रवार को सुबह सात बजे के बाद दिल्ली और कोलकाता भेज दिया गया।
कांग्रेस के रिपुन बोरा ने असम में बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों को हो रही परेशानी का जिक्र करते हुए मांग की कि एनआरसी से जुड़े दिशा निर्देशों में संशोधन किया जाना चाहिए। उन्होंने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर भी सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की भी मांग की। कांग्रेस के ही भुवनेश्वर कलिता ने सवाल किया कि क्या इस मुद्दे पर सरकार ने बांग्लादेश के साथ कोई चर्चा की है।
राजद के मनोज कुमार झा ने कहा कि जिन लोगों के नाम मसौदा एनआरसी में नहीं शामिल हो पाए हैं, उन्हें घुसपैठिए नहीं कहा जाए। वहीं भाकपा के डी राजा ने सवाल किया कि इस मामले में तय की गयी समयसीमा को क्या बढाया जाएगा।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि यह सिर्फ असम का नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दा है और यह मानवाधिकार का विषय भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और पार्टी दोनों अलग अलग बातें कर रही हैं।
विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सुरक्षा, संप्रभुता आदि के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सका। एनआरसी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सेना और वायुसेना में लंबे समय तक काम कर चुके लोगों के भी नाम मसौदे में शामिल नहीं हुए हैं। प्रक्रिया में गड़बड़ी हो सकती है। सरकार और पार्टी की बातों में अंतर है और दोनों को एक ही भाषा में बात करनी चाहिए।
राकांपा के माजिद मेमन, सपा के जावेद अली खान, माकपा के टीके रंगराजन, अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यानंद, मनोनीत स्वप्न दासगुप्ता, कांग्रेस के आनंद शर्मा आदि सदस्यों ने भी इस बारे में सरकार से सवाल किए।