यूपी के राजनीति में छोटी पार्टियों का बड़ा महत्व अरविंद केजरीवाल दिल्ली मॉडल के मोहल्ला फार्मूले के साथ आ रहे हैं ,तो ओवैसी मुस्लिम वोट बैंक के साथ-साथ छोटी पार्टियों को ध्यान में रखकर के यूपी की राजनीति में चुनाव में एंट्री करना चाहते हैं। कॉन्ग्रेस के जानकार भी कह रहे हैं कि महाराष्ट्र का फार्मूला ऐसा है जो एक जिताऊ फार्मूला हो सकता है ।उसमें भी छोटी पार्टियों की ही झलक नजर आ रही है ।इधर उत्तर प्रदेश सरकार योगी की सरकार अपने कामकाज को लेकर के पहले से कहीं ज्यादा तेज दिखाई पड़ रही है।
जहां एक तरफ रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ नियुक्ति पत्र हाथों में थमा करके सरकारी नौकरियों के विपक्ष के दावे को फेल कर रही है और योगी सरकार फिर एक बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियों का दरवाजा खोल रही है ,दूसरी तरफ योगी सरकार पिछड़ा वर्ग अति पिछड़ा वर्ग और दलित ऐसे वोट पर ज्यादा ध्यान देकर के 2017 की तरह 2022 में भी जीत को सुनिश्चित करना चाह रही है ।
लेकिन अगर बात समाजवादी पार्टी की कहे जो दो नंबर की पार्टी है, बीजेपी के बाद वह भी कह रही है कि छोटी पार्टियों के साथ तालमेल करेगी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने यह बात कही है ।भासपा अध्यक्ष राजभर पहले से ही छोटी पार्टियों की गोलबंदी में लगे हुए हैं उनका प्रयास है कि सारी छोटी पार्टियों को एक कर के बाद में किसी के साथ गठबंधन करें और बीजेपी को कड़ी टक्कर दे। अगर 2022 के नजरिए से उत्तर प्रदेश को देखें तो बीजेपी को विपक्ष की टक्कर तो मिलेगी ही पर उनकी रणनीति में जरूर शामिल होगा कि छोटी पार्टियां अगर किसी दल में जाती हैं ,किसी घटक का रूप लेती हैं तो बीजेपी उनके और उनके वोट बैंक को कैसे मुकाबला करते हुए जीत में तब्दील करें चुनवती होगी?