यही नहीं अब पीके राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी सीधे नहीं मिल पाएंगे। कांग्रेस से जुड़े विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इन दोनों से मिलने के लिए पीके को अब गुलाम नबी आजाद से सलाह और अनुमति लेनी होगी।
दरअसल पिछले दिनों जिस प्रकार उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रियंका लाने और उससे भी पहले वरुण गांधी को कांग्रेस में लाकर उन्हें सी.एम. प्रोजेक्ट करने की चर्चाएं तेजी से फैली उससे पूरा गांधी परिवार बेहद खफा है। इसके लिए सीधे-सीधे पीके को ही दोषी माना जा रहा है। ऐसे में सोनिया ने सीधे पीके से बात करने का फैसला किया और उन्हें बुलाकर यह निर्देश दिया गया कि आगे से यूपी में आजाद ही को पूरी रिपोर्ट दिया करें जो उसे कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचाएंगे।
गौरतलब है कि इससे पहले पार्टी आगे से किसी भी कयासबाजी पर लगाम कसने के लिए राजबब्बर को राज्स पार्टी अध्यक्ष और शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुकी थी। यही नहीं राज्य में प्रियंका की किसी भी सक्रिय भूमिका पर भी पार्टी ने चुप्पी साध ली। यह पीके के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि यूपी और पंजाब के चुनावों में कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से खुली छूट मांगी थी। राहुल ने शुरु में इसका वादा भी किया था मगर पंजाब में अमरिंदर सिंह ने पीके की खुली छूट की मांग की हवा निकाल दी जबकि यूपी में भी उनके मनमाने रवैये और प्रियंका और वरुण कार्ड से पार्टी खफा हो गई। ऐसे में उनका पर कतरा जाना तय माना जा रहा था।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को केंद्र में जीत दिलाने का श्रेय बटोरने में पीके सबसे आगे रहे थे। चुनाव के बाद जब मोदी और शाह की जोड़ी ने उन्हें भाव नहीं दिया तब वे नीतीश के पाले में चले गए। नीतीश के नेतृत्व में बिहार में जदयू-राजद-कांग्रेस गठजोड़ की भारी जीत के बाद अचानक से प्रशांत किशोर बड़े चुनावी रणनीतिकार माने जाने लगे। इसे देखते हुए राहुल गांधी ने नीतीश के कहने पर उन्हें यूपी, पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस से जोड़ लिया मगर पीके की महत्वाकांक्षाएं इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने अपने लिए फ्री हैंड की मांग की। पार्टी शुरू में तो मान गई मगर जब दशकों से पार्टी के लिए समर्पित नेताओं-कार्यकर्ताओं ने विरोध जताना शुरू किया तब पार्टी को गलती को अहसास हुआ और अब इस गलती को सुधारा जा रहा है।