पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपनी किताब "बाय मैनी ए हैप्पी एक्सीटेंडः रीकलेक्शन्स ऑफ ए लाइफ’’ कई बड़े खुलासे किये हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उन्होंने आरोप लगाए हैं। उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में तय किया था कि वह कोई भी विधेयक हंगामे में पारित नहीं होने देंगे और उनके अनुसार उनके कार्यकाल के दौरान इस सिद्धांत का स्वागत करते हुए उस वक्त के सत्तारूढ़ और विपक्षी दल ने इसका अनुसरण भी किया।
पूर्व उपराष्ट्रपति के अनुसार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने ऐसी स्थिति का मुकाबला अपने प्रबंधन के गुर और विपक्षी दलों को साध कर किया वहीं पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार का रुख इससे इतर रहा। अंसारी के अनुसार एनडीए का मानना था कि लोकसभा में उसका बहुमत में होना उसे राज्यसभा की प्रक्रियात्मक अड़चनों से नैतिक रूप से ज्यादा अहम बना देता है और इसकी अभिव्यक्ति स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सामने की थी।
अंसारी का उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के तौर पर कार्यकाल 10 अगस्त 2017 को पूरा हुआ। वह 2007 से 2017 तक इस पद पर रहे। अपने पुस्तक में अंसारी ने उस रूख का भी उल्लेख किया है जिसमें उन्होंने बतौर राज्यसभा के सभापति फैसला लिया था कि वह कोई विधेयक हंगामे और शोर-शराबे में पारित नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए सराहना की थी उनके कार्यकाल में इसका पालन भी किया गया।
पुस्तक में अंसारी ने कहा कि इससे दोनों सरकारों को परेशानी हुई लेकिन यूपीए सरकार ने उनके नियम का संज्ञान लिया और इसके मद्देनजर सदन में प्रबंधन किया और विपक्ष के साथ समन्वय किया। पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, “दूसरी ओर एनडीए सरकार को लगता था कि उसके पास लोकसभा में बहुमत है तो उसे राज्यसभा में प्रक्रियात्मक बाधाओं पर हावी होने का उसे ‘नैतिक’ हक मिल गया है। मुझे यह अधिकृत रूप से बताया गया।’’
उन्होंने कहा, ” एक दिन राज्यसभा के मेरे कार्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए। सामान्यतः ऐसा नहीं होता है कि प्रधानमंत्री बिना तय कार्यक्रम के मिलने आए। मैंने… उनका रस्मी अभिवादन किया। ’’अंसारी ने कहा, ‘‘ उन्होंने (मोदी) कहा कि आपसे उच्च जिम्मेदारियों की अपेक्षा है लेकिन आप मेरी सहायता नहीं कर रहे हैं। मैंने कहा कि राज्यसभा में और बाहर मेरा काम सार्वजनिक है। उन्होंने पूछा ‘शोरगुल’ में विधेयक पारित क्यों नहीं कराए जा रहे हैं? मैंने उत्तर दिया कि सदन के नेता और उनके सहयोगी जब विपक्ष में थे तो उन्होंने इस नियम की सराहना की थी कि कोई भी विधेयक शोरगुल में पारित नहीं कराया जाएगा और स्वीकृति के लिए सामान्य कार्यवाही चलेगी। ’’
हामिद अंसारी ने कहा, ‘‘ इसके बाद उन्होंने (मोदी) ने कहा कि राज्यसभा टीवी सरकार के पक्ष में नहीं दिखा रहा है। मेरा उत्तर था कि चैनल की स्थापना में तो मेरी भूमिका थी लेकिन इसके संपादकीय कामकाज में मेरी कोई भूमिका नहीं है। राज्यसभा सदस्यों की एक समिति है, जिसमें भाजपा का भी प्रतिनिधित्व है, वह चैनल को मार्गदर्शन देती है। चैलन के कार्यक्रम और चर्चाओं की दर्शक सराहना करते हैं।’’
पूर्व उपराष्ट्रपति ने अपनी किताब में कहा कि उनके कार्यकाल के अंतिम हफ़्तों के दौरान दो घटनाओं से कुछ वर्गों में ‘‘नाराज़गी’’ पैदा हुई और समझा गया कि इनके कुछ ‘‘छिपे हुए अर्थ’’ थे। हामिद अंसारी दीक्षांत समारोह में किए संबोधन और एक टीवी साक्षात्कार का जिक्र कर रहे हैं जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों में असुरक्षा को लेकर आशंका का जिक्र किया था।