केंद्र सरकार ने तमिलनाडू की सांड़ को नाथने वाले खेल जल्लिकट्टू को हरी झंडी दे दी है। इस हरी झंडी का तमिलनाडु की सरकार ने जहां जोरदार स्वागत किया है वहीं पर्यावरणविदों-मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने गहरी चिंता जाहिर की है। इस खेल को फिर से रोकने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को संबोधित करते हुए एक ऑन लाइन पीटिशन (याचिका) शुरू की गई है, जिसमें यह कहा गया है कि यह एक बहुत बर्बर प्रथा है और इसे तुरंत रोकना चाहिए। इस खेल में सांड के साथ बहुत क्रूरता होती है और यह ठीक नहीं है। साथ ही, जानवरों को बचाने के अभियान में लगी संस्था पेटा ने कहा है कि अगर केंद्र ने इस मंजूरी को वापस नहीं लिया, तो वह अदालत जाएगी।
केंद्र सरकार द्वारा जल्लिकट्टू पर लगाई गई रोक को हटाने को तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। तमिलनाडु में पोंगल त्यौहार के समय इस खेल को खेला जाता है। इसके समर्थन में तमिलनाडु का एक बड़ा तबका है। इसीलिए राज्य मंत्री सड़क परिवहन, राजमार्ग और पोत परिवहन पोन्. राधाकृष्णन ने सबसे पहले इस खबर का ऐलान किया। तमिलनाडु की राजनीति में इसे राज्य के महत्वपूर्ण उत्सव पोंगल पर केंद्र के तोहफे के तौर पर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर रोक लगा दी थी और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस रोक को जायज ठहराया था। इसके बाद केंद्र सरकार का अचानक इस खेल को मंजूरी देना, तमिलनाडु सरकार की लंबित मांग पर अचानक सुनवाई करने जैसा है। केंद्रीय मंत्री राधाकृष्णन ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद भी दिया है। केंद्र के इस कदम का राज्य कांग्रेस, एमडीएमके के नेता वाइको, पीएमके नेता एस रामदौस सबने स्वागत जरूर किया है लेकिन अधिसूचना के कानूनी रूप से टिकाऊ होने का भी सवाल उठाया।
उधर इसके विरोध में भी स्वर तेज होने लगे हैं। यह आशंका जताई जा रही है कि केंद्र की इस मंजूरी से महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और गोवा में होने वाली सांड़ों-बैलों की लड़ाई को वैधानिकता मिल जाएगी। इन तमाम खेलों के लिए बैलों और सांड़ों के साथ क्रूरता की जाती है। इस क्रूरता को राजनीतिक समर्थन नहीं देने की मांग उठ रही है।