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राजस्थान: भाजपा को अब वसुंधरा की नहीं है जरूरत?, पोस्टर से लेकर बैठक- मिल रहे कई सबूत!

राजस्थान में करीब दो साल बाद यानी 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन, बीते कई महीनों से इसके...
राजस्थान: भाजपा को अब वसुंधरा की नहीं है जरूरत?, पोस्टर से लेकर बैठक- मिल रहे कई सबूत!

राजस्थान में करीब दो साल बाद यानी 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन, बीते कई महीनों से इसके सियासी बुलबुले निकलने शुरू हैं। सत्तारूढ़ दल  कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा, दोनों में कलह दिखाई दे रहे हैं। ताजा वाकया फिर से राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर है। दरअसल, पार्टी मुख्यालय में लगाए गए नए पोस्टर से राजे को किनारे कर दिया गया है। नए होर्डिंग में पीएम मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गुलाब चंद कटारिया और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां की तस्वीरें हैं। लेकिन, वसुंधरा को जगह नहीं दी गई है, जिसके बाद अब राजनीतिक गलियारों में ये सुर और तेज हो गए हैं कि क्या भाजपा को अब वसुंधरा राजे की जरूरत नहीं है। हालांकि, राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि भाजपा ऐसा सोच रही है तो ये उसकी बड़ी गलती होगी। आउटलुक से वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीकांत पंत कहते हैं, “वसुंधरा के बिना भाजपा अभी राज्य की राजनीति से कोसो दूर है। उपचुनाव में तीन में से सिर्फ एक सीट पर मिली जीत ने इसे साबित कर दिया है।“

पार्टी भले हीं “ऑल इज वेल” कहने में लगी हुई है। लेकिन, कई घटनाक्रम कुछ महीनों में सामने आए हैं जिससे सीधे तौर पर ऐसा लग रहा है कि पार्टी अब नए नेताओं को जगह देने और राजे को किनारे लगाने में जुटी हुई है। जनवरी के महीने में राजे समर्थकों ने एक “वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान मंच” बनाया था। समर्थकों की मांग है कि राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा अभी हीं घोषित किया जाए। जबकि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि इस बात का फैसला पार्टी करेगी। आउटलुक से भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व विधायक अभिषेक मटोरिया कहते हैं, “ये पार्टी का अंदुरूनी मामला है। इसे चुनाव और राजे के दरकिनार करने की बात से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। वो पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। किसे क्या मिलेगा ये पार्टी तय करेगी, कोई व्यक्तिगत फैसला नहीं ले सकता है।“

दरअसल, उपचुनाव में भाजपा को बड़ी जीत नहीं मिली है। एक सीट से हीं संतोष करना पड़ा है। ये चुनाव पूनिया के नेतृत्व में लड़ा गया था। वहीं, चुनाव प्रचार के दौरान जब जयपुर में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आए थे तो उन्होंने एक मंच से वसुंधरा राजे और दूसरी तरफ सतीश पूनिया का हाथ पकड़ खड़ा किया था और ये कहा था कि “एकला मत चलो”। पार्टी लगातार एकजुटता का दावा कर रही है वहीं वसुंधरा राजे भाजपा को “जमीन” पर लाने में लगी हुईं हैं।

इससे पहले भी कलह के संकेत बैठक में वसुंधरा राजे को न बुलाए जाने के बाद दिखे थे। इसी साल की 8 जनवरी को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और राजेंद्र राठौर सरीखे अन्य नेताओं के साथ आने वाले उपचुनाव को लेकर लंबी बैठक की थी। लेकिन, बैठक में वसुंधरा राजे को आमंत्रित नहीं किया गया था। 

इस सवाल के जवाब में आउटलुक से सतीश पूनिया ने कहा था, “राज्य में जिस तरह वोटरों का जेनेरेशन बदलता है, उसी तरह नेतृत्व भी बदलना चाहिए। वसुंधरा राजे पार्टी की कद्दावर नेता हैं और उन्होंने दो बार राज्य की सत्ता संभाली है। हमारे पास बतौर सीएम कई अन्य वरिष्ठ नेता हैं। यह पार्टी की मजबूती है।”

पूनिया के बयान और चल रहे घटनाक्रम से संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी अब नए चेहरे पर विचार करने की दिशा में काम कर रही है। लेकिन, फिर वही सवाल है कि क्या वसुंधरा राजे के बिना भाजपा चुनाव लड़ने और सत्ता तक पहुंचने की स्थिति में आ गई है?

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