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माकपा नेता अच्युतानंदन का विद्रोह

माकपा की केरल इकाई को और अधिक परेशानी में डालते हुए माकपा के संस्थापक नेता वी एस अच्युतानंदन ने पार्टी के सम्मेलन के अंतिम सत्र में शिरकत करने के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश का पालन नहीं किया। प्रदेश नेतृत्व से गहरे मतभेदों के चलते अच्युतानंदन सम्मेलन के बीच से चले गए थे।
माकपा नेता अच्युतानंदन का विद्रोह

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) माकपा में नेतृत्व की टकराहट बढ़ती जा रही है। केरल के 92 साल के वरिष्ठ माकपा नेता वी.एस. अच्युतानंदन ने पॉलित ब्यूरो के आदेश की अवहेलना करते हुए राज्य सम्मेलन का बहिष्कार किया। इसे एक तरह से उनके विद्रोह के तौर पर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि केरल राज्य इकाई का तीन दिवसीय सम्मेलन का अच्युतानंदन ने पहले दिन ही बहिष्कार कर दिया था।   

पश्चिम बंगाल में गंभीर संकट में फंसी और तेजी से आधार खो रही माकपा की आस केरल पर ही टिकी है। वरिष्ठ नेताओं का भी मानना है कि अगर केरल में जल्द सांगठनिक अंतरविरोध को नहीं नियंत्रित किया गया तो पार्टी का खड़ा हो पाना मुश्किल है। केंद्रीय नेतृत्व में केरल के मसले को जल्द से जल्द हल करने के लिए अलग से टीम बनाने पर भी विचार चल रहा है।

पश्चिम बंगाल के उलट केरल में माकपा का सांगठनिक आधार अभी मजबूत है। राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार है और भाजपा तथा संघ का आधार भी लगातार बढ़ रहा है। इससे वामंपथी कतारों में बेतरह बैचेनी है। इस संवाददाता को पालाकाड में कई वामपंथी समर्थकों से मुलाकात हुई और उन्होंने खुलकर बताया कि भाजपा तथा संघ की नफरत की राजनीति से मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील-वामपंथी ताकतों को एकजुट होना होगा।

केरल के ऑल्पुजा में हुए माकपा के राज्य सम्मेलन में जिस तरह से पार्टी के वरिष्ठ नेता वी.एस.अच्युतानंदन को निशाने पर लिया गया, उसने माकपा में गहराते संकट को एक बाद फिर सतह पर ला दिया है।

पश्चिम बंगाल में माकपा संगठन की हालत खराब है और केंद्रीय नेतृत्व को केरल से ही सारी उम्मीदे हैं। वहां राज्य अध्यक्ष पिनाराई विजयनन और पार्टी के वरिष्ठ नेता अच्युतानंदन के बीच टकराव पुराना है, लेकिन राज्य सम्मेलन में ही विवाद का इतना बढ़ना, यह संकेत है कि आने वाले दिन माकपा के लिए अच्छे नहीं रहने वाले हैं।

केरल सम्मेलन के दौरान अच्युतानंदन इतने नाराज हो गए कि वह सम्मेलन का बहिष्कार करके बाहर आ गए। उनके समर्थकों ने समूह बनाकर बाहर धरना दिया और नेताओं से माफी मांगने को कहा।

सारा विवाद माकपा केरल इकाई के सचिव पिनाराई विजयन द्वारा सांगठनिक रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद शुरू हुआ। इसमें राज्य में केरल में पार्टी की खराब स्थिति के लिए अच्युतानंदन को जिम्मेदार ठहराया गया था। इस रिपोर्ट पर बोलने वाले प्रतिनिधियों ने भी अच्यूतानंदन की खूब खिंचाई की, जो अच्युतानंदन को बेहद नागवार गुजरा। अपने ऊपर हो रहे तीखे हमले से परेशान हो कर अच्युतानंदन ने माकपा महासचिव प्रकाश करात से कहा कि अब बहुत हुआ, वह अब और नहीं झेल सकते। यह कहते हुए वह सम्मेलन से बाहर आ गए।

बाद में मामले को शांत करने के लिए केंद्रीय पॉलित ब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने अच्युतानंदन से बात की। येचुरी ने उनसे यह कहा कि अभी अंदरूनी कलह को पार्टी के भीतर ही रखने और हल करने की जरूरत है। पार्टी की खराब हालात का हवाला देते हुए उन्होंने अच्युतानंदन से पार्टी को मजबूत करने में मदद करने को कहा।

गौरतलब है कि केरल में माकपा प्रमुख विपक्षी दल है। अंदरुनी कलह और गुटबाटी की वजह से उसके लिए खोया हुआ आधार हासिल करना मुश्किल हो रहा है। इसके साथ ही केरल में पैर जमाने के लिए भाजपा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने अपनी खासी ऊर्जा लगा रखी है। तमिलनाडु से जुड़े इलाकों-जैसे पालाकाड आदि में भाजपा ने भारतीय मजदूर संघ जैसे संगठनों के जरिए अच्छी पैठ बनाई है। पालाकाड से माकपा के सांसद राजेश का कहना है कि केरल में बहुत तगड़ा संघर्ष है। वामपंथी कतारों में तो भरोसा है कि हिंदुत्ववादी ताकतों से मुकाबला वामपंथ ही कर सकता है, बस अपना घर ठीक करना जरूरी है।

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