पदोन्नति में आरक्षण को मौलिक अधिकार नहीं मानने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो ने बयान जारी किया है। सीपीएम ने कहा है कि एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण अनिवार्य है। पार्टी ने संविधान की इस व्याख्या को दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी और ओबीसी विरोधी करार दिया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक प्रमुख फैसले में कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी अदालत राज्य सरकार को एससी/एसटी को आरक्षण देने का आदेश नहीं दे सकती।
पार्टी ने बयान जारी कर कहा, “सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने व्याख्या की है कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-ए) व्यक्ति को पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का मौलिक अधिकार नहीं देता है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया जिसमें राज्य सरकार को आरक्षण देने का निर्देश दिया गया था। हालांकि आरक्षण और पदोन्नति के लिए यह प्रावधान मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है, ये संवैधानिक प्रावधान हैं जो भारत में सार्वभौमिक रूप से लागू होने के लिए अनिवार्य हैं।”
‘यह दलित-आदिवासी और ओबीसी विरोधी’
सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो ने संविधान की इस व्याख्या को दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी और ओबीसी विरोधी करार दिया है। पार्टी ने आगे कहा कहा कि यह केंद्र सरकार से संसद के दोनों सदनों में विधायी संकल्पों के माध्यम से इस तरह की व्याख्या को सुधारने का आह्वान करता है। इस तरह की व्याख्या की समीक्षा करने के लिए सभी संभावित कानूनी उपायों का पता लगाया जाना चाहिए।
‘आरक्षण और पदोन्नति के प्रावधान सभी राज्यों में अनिवार्य’
बयान में कहा गया, “माकपा का पोलित ब्यूरो आरक्षण और पदोन्नति के प्रावधानों को भारत के संघ के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अनिवार्य होने के रूप में मानता है।”