महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को कहा था कि राज्य लोकायुक्त से अनुरोध किया जाएगा कि वह मुंबई के विशेष अधिकार क्षेत्र के साथ एक नए उप-लोकायुक्त को नियुक्त करें।
उन्होंने यह भी कहा था कि राज्य सरकार पूर्व नौकरशाहों की एक समिति गठित करेगी, जो सभी नगर निगमों में पारदर्शिता लाने के तरीकों के बारे में सिफारिशें देगी। शिवसेना के पार्टी मुखपत्र सामना में सोमवार को छपे संपादकीय में आरोप लगाया गया कि मुख्यमंत्री का प्रस्ताव एक नया दांव और सत्ता का दुरूपयोग है।
संपादकीय में कहा गया, हमें इसका डर नहीं है। लेकिन यह सीधे तौर पर आपके अपने :बीएमसी: आयुक्त में अविश्वास है। क्या यह कथित भ्रष्टाचार सिर्फ बीएमसी में ही है? सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार तो नागपुर नगर निगम में हुआ है। वहां क्यों नहीं उप-लोकायुक्त नियुक्त किया जाता?
शिवसेना ने तंज कसते हुए कहा, मुख्यमंत्री के आवास वर्षा पर और मंत्रिमंडल की सभी बैठकों में भी एक अलग उप-लोकायुक्त नियुक्त किया जाना चाहिए। शिवसेना ने कहा कि यदि बृहन्मुंबई नगर निगम के कामकाज की जांच के लिए उप लोकायुक्त नियुक्त किया जाता है तो ऐसा एक अधिकारी सभी नगर परिषदों, जिला परिषदों और पंचायत समितियों के कामकाज की निगरानी के लिए भी नियुक्त किया जाना चाहिए।
शनिवार को फडणवीस ने कहा था कि भाजपा महापौर और उप महापौर पद के लिए अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि पार्टी के 82 पार्षद निकाय प्रशासन में पारदर्शिता के प्रहरी बनकर काम करेंगे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना के संपादकीय में कहा गया, फडणवीस का यह कहना एक गप्प है कि भाजपा के 82 पार्षद प्रहरियों के रूप में काम करेंगे।
राज्य सरकार में गठबंधन के कनिष्ठ सहयोगी शिवसेना ने यह भी दावा किया कि यदि चुनाव होता तो वह महापौर का पद जीत गई होती।
संपादकीय में कहा गया, सत्ता और धन की ताकत के बावजूद शिवसेना के खिलाफ जीतना मुश्किल है। अंत में आखिर उन्होंने महापौर और उप महापौर पद के लिए उम्मीदवार न उतारने का विकल्प क्यों चुना? इसमें कहा गया, यदि चुनाव होता तो शिवसेना महापौर पद का चुनाव जीत जाती। भाषा