मध्यप्रदेश में भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने समाप्त कर दी है। भोपाल की एक अदालत में बलवे के मामले में प्रहलाद लोधी को दो साल की सजा के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने यह फैसला शनिवार को देर शाम लिया। प्रहलाद लोधी पन्ना जिले के पवई सीट से बीजेपी विधायक हैं। लोधी की सदस्यता जाने से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। झाबुआ उपचुनाव भाजपा पहले ही हार चुकी है। लोधी की सदस्यता जाने से अब भाजपा के 106 विधायक रह गए हैं।
बता दें, बीजेपी विधायक प्रहलाद लोधी को कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई है। दरअसल, विधायक प्रह्लाद लोधी सहित 12 लोगों को भोपाल की एक विशेष अदालत ने दो साल की जेल की सजा सुनाई है। अदालत ने सभी को साढ़े तीन हजार रुपये जुर्माने की भी सजा सुनाई है। हालांकि, सजा मिलने के बाद बीजेपी विधायक को जमानत भी मिल गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, एमपी-एमएलए की स्पेशल कोर्ट के जज सुरेश सिंह ने यह सजा सुनाई है। बता दें कि प्रह्लाद लोधी पर आरोप था कि उन्होंने रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई कर रहे तहसीलदार के साथ मारपीट और गाली-गलौज की थी।
2014 में पन्ना जिले की रैपुरा तहसील में नोनीलाल लोधी अवैध रेत खनन में लिप्त पाए गए थे। अवैध खनन को रोकने के लिए वहां तहसीलदार पहुंचे थे। इस दौरान वहां बीजेपी विधायक प्रह्लाद लोधी अपने समर्थकों के साथ पहुंच गए। कार्रवाई का विरोध करते हुए प्रह्लाद लोधी और उनके समर्थकों ने तहसीलदार के साथ मारपीट की और अभद्र व्यवहार किया था।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के तहत किसी भी सासंद या विधायक को निचली अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। कोर्ट के फैसले के तहत दो साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बरकरार नहीं रह सकती है।
विधि मंत्री ने कहा- सदस्यता खत्म करने का प्रवधान
विधि मंत्री पीसी शर्मा ने कहा है कि कानून के तहत दो साल की सजा पर सदस्यता खत्म करने का प्रावधान है। विधानसभा सचिवालय ने पवई विधायक के मामले में कोर्ट के फैसले की कॉपी का परीक्षण के बाद पवई विधानसभा सीट रिक्त घोषित कर दिया है। इसकी सूचना निर्वाचन आयोग को भी दे दी है।
भाजपा निर्णय के खिलाफ कोर्ट जाएगी
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने पवई विधायक प्रहलाद लोधी के मामले में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लिए गए निर्णय को अलोकतांत्रिक और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध बताया है। उन्होंने कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष सदन के अभिभावक होते हैं, उनकी गरिमा होती है और इस होने के नाते दलीय राजनीति से ऊपर उठकर समानता के आधार पर विचार करते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने विधानसभा अध्यक्ष की तरह व्यवहार न करते हुए राजनीतिक विद्वेषवश कांग्रेस के नेता की तरह निर्णय करते हुए पवई विधानसभा सीट को रिक्त घोषित किया है। पवई विधायक को न्याय के लिए उच्च न्यायालय में जाने का अधिकार है और हम जाएंगे भी। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के इस निर्णय ने सदन में भविष्य के लिए ऐसी परंपरा को विकसित कर दिया है जो किसी भी कोण से उचित नहीं कही जा सकती।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का विधानसभा अध्यक्ष पर लगाया गया आरोप गैर जिम्मेदाराना: कांग्रेस
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने बताया कि पन्ना जिले की पवई विधानसभा सीट से भाजपा विधायक प्रह्लाद लोधी पर रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई करने गए रैपुरा तहसीलदार के साथ अभद्रता को लेकर 2014 में दर्ज एक प्रकरण में विशेष न्यायालय ने 31 अक्टूबर 2019 को उन्हें 2 वर्ष की सजा सुनाई है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय के अनुसार यदि किसी सांसद या विधायक को न्यायालय द्वारा 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता फैसले वाले दिन से ही समाप्त मानी जाएगी। पवई विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्ति का फैसला न्यायालय के इस निर्णय के पालन को लेकर लिया गया है ,यह फैसला न्यायालय के निर्णय के आधार पर लिया गया है।
सलूजा ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष की कोई राजनीतिक द्वेष भावना के आधार पर यह निर्णय नहीं लिया गया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को इस तरह के आरोप लगाने के पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले का पहले अध्ययन करना चाहिए, जिसमें इस तरह के मामलों में कार्रवाई के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। विधायक प्रहलाद लोधी को सजा का फैसला 31 अक्टूबर को हुआ था लेकिन चूंकि उसकी प्रमाणित प्रति विधानसभा सचिवालय को आज मिली है इसलिए आज उस फैसले के आधार पर यह निर्णय लिया गया है। इसको लेकर कोई जल्दबाज़ी नहीं की गयी है। पता नहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किस प्रकार से इस कार्रवाई को अलोकतांत्रिक और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध बता रहे हैं और इसे राजनीति से प्रेरित कार्रवाई बता रहे हैं। उन्हें तो न्यायालय के फैसले का सम्मान करना चाहिए।