इसी बीच प्रदेश में कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों के तो चेहरे उतर ही गए हैं और अब जिला अध्यक्षों की तरफ से बगावती संकेत आना शुरू हो चुके हैं। तकरीबन 40 जिला अध्यक्षों ने प्रदेश कांग्रेस प्रशासन से मौखिक तौर पर अपनी नाराजगी जता दी है और महागठबंधन की स्थिति में इस्तीफा देने तक की बात कह दी है। बुधवार को प्रदेश कांग्रेस संगठन ने बड़े नेताओं को इसकी जानकारी भी दे दी है, जिसके बाद भी गठबंधन पर स्थिति अभी साफ नहीं की गई है।
इस साल की शुरुआत से ही कांग्रेस यह कहती रही है कि चुनाव में अकेले जाएंगे। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के आने के बाद सभी संभावित उम्मीदवारों को लगातार मैदान में दौड़ाया गया और तमाम दूसरे तरह के आयोजन उनकी तरफ से कराए गए। संगठन को भी मैदान में उतारा गया और अब की परिस्थितियां महागठबंधन की तरफ बढ़ रही हैं। यह चर्चा न तो कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों को पसंद आ रही हैं और न ही जिला अध्यक्षों को। उनका कहना है कि अगर गठबंधन ही करना था तो फिर लगातार उनसे काम ही क्यों लिया गया। क्यों उनका इतना पैसा खर्च कराया गया जबकि उन्हें चुनाव ही नहीं लड़ना है।
यह विरोध करने वाले ज्यादातर वह जिले हैं जहां कांग्रेस पूरी तरह साफ है और वर्तमान विधायक सपा के हैं। ऐसे में कांग्रेस जिला अध्यक्ष और उन सीटों पर संभावित उम्मीदवारों का साफ मानना है कि सपा अपने मौजूदा विधायकों का टिकट काटकर कांग्रेस को सीट नहीं देगी।