आलोक कुमार
वैसे तो यूपी के 7 सीट का उपचुनाव पर बीजेपी की साख दाव पर है। पर ये वो शतरंज की वो बिसात होगी जहा योगी सरकार को उसके काम का ट्रेलर भी दिखेगा और बसपा ,सपा और कांग्रेस मे ये भी तय होगा की सत्ता का विकल्प का दावा कौन कर सकता है ।यही सब करण है की बिहार की सत्ता के साथ यूपी का ये चुनाव का परिणाम के साथ असर कम नही है। तीन नवंबर को होने वाले उपचुनाव को जातीय जोड़तोड़ के समीकरणों ने उलझा दिया है। डबल इंजन वाली सरकार की उपलब्धियों और संगठन की सक्रियता के दम पर भारतीय जनता पार्टी एकतरफा जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए है। तो विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस में भी आगे निकलने की होड़ है।
मिशन 2022 के फाइनल का ये सेमीफाइनल माने जाने वाले उपचुनावों के नतीजों से प्रदेश में राजनीतिक दिशा तय होगी। यही करण है की इसमे जातीय जोड़तोड़ में उलझा यूपी का उपचुनाव है और बीजेपी क्लीन स्विप के लिए भाजपा ने ताकत झोंकी है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा के अलावा संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने लॉकडाउन अवधि में ही वर्चुअल संवाद व संपर्क के जरिए तैयारी आरंभ कर दी थी। भाजपा ने जीत सुनिश्चित करने के लिए त्रिस्तरीय व्यूह रचना के आधार पर प्रचार अभियान छेड़ा हुआ है।
उपचुनाव और उनकी सीटो का आंकलन
आम विधानसभा चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश की सात सीटों पर, सरकार के कामकाज का आकलन और प्रमुख दलों की संगठनात्मक क्षमता की भी परख भी होगी।
जिन सात विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे हैं उनमें जौनपुर की मल्हनी को छोड़कर अन्य छह सीटें देवरिया, बुलंदशहर, टूंडला, बांगरमऊ, नौगवां सादात व घाटमपुर भाजपा के कब्जे में थीं। विपक्ष में बिखराव को देखते हुए भाजपा सातों क्षेत्रों में भगवा फहराने को दिन-रात एक किए है। ।सीटवार चर्चा करें तो भाजपा पांंच सीटों पर विजय पताका फहरना तय मान रही है। केवल मल्हनी और बांगरमऊ में चुनाव को कांटे का बताया जा रहा है। इसमें बांगरमऊ को भाजपा की परंपरागत सीट नहीं माना जाता है। पिछले चुनाव में जीते कुलदीप सेंगर की सदस्यता माखी कांड में रद हो जाने के बाद भाजपा ने पिछड़ा कार्ड चलते हुए श्रीकांत कटियार को मैदान में उतारा है। इस सीट पर कांग्रेस भी बेहतर स्थिति में है।
गैरभाजपा वोटों में बिखराव चुनाव को प्रभावित करेगा। मल्हनी में निर्दल उम्मीदवार बाहुबली धनंजय सिंह के आने से मुकाबला अधिक रोचक बना है। सपा, बसपा भी मजबूती से मैदान में हैं।देवरिया चुनाव में भाजपा के बागी व पूर्व विधायक स्व.जन्मेजय सिंह के पुत्र अजय प्रताप सैंथवार बिरादरी को लामंबद करने में जुटे हैं। यहां भाजपा समेत सभी प्रमुख दलों ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे हैं। ब्राह्मण बहुल क्षेत्र में मतों का बिखराव तय है। सभी जातियों में सेंध लगाने वाले का पलड़ा भारी रहेगा।करीब 35 प्रतिशत मुस्लिम वोटों वाली नौगावां सादात सीट पर मुसलमान वोट पाने की सपा-बसपा में होड़ है। बसपा के फुरकान 20 फीसद दलित वोटों के सहारे खुद को सपा के जावेद आब्दी से मजबूत स्थिति में मानते हैं। भाजपा की संगीता चौहान को सहानुभूति वोटों के अलावा विपक्ष के बिखराव से ताकत मिलती दिख रही है बुलंदशहर सीट पर भी मुस्लिम व दलित वोटों का दबदबा है। बसपा अपने मुस्लिम उम्मीदवार को मजबूत मान रही है। समाजवादी पार्टी ने गठबंधन में यह सीट राष्ट्रीय लोकदल को सौंप दी है। रालोद, भाजपा व कांग्रेस ने जाट उम्मीदवारों पर दांव लगाया है लेकिन भाजपाइयों को सीधे मुकाबले में वोटों का धुव्रीकरण का लाभ मिलता दिख रहा है। घाटमपुर व टूंडला आरक्षित क्षेत्र हैं। ऐसे में यहां अन्य जातियों का रुझान ही नतीजों को तय करेगा। भाजपा के कब्जे वाली दोनों सीटों पर विपक्ष हाथरस कांड को गर्माकर लाभ लेने की रणनीति अपनाए हुए है।