पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ ने हैरान किया। 15 सालों तक सूबे में सत्ता संभाल रही भाजपा को जनता ने सिर्फ 15 सीटों पर समेट दिया। आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि चाउंर वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध डॉ रमन सिंह के हाथों से प्रदेश की कमान छुट गई। आइए जानते हैं कि वो कारण क्या हैं, जिसकी वजह से रमन सिंह चूक गए...
भाजपा के खिलाफ एंटी इन्केंबंसी
यों तो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ छत्तीसगढ़ की जनता 2013 में भी नाराज थी लेकिन कांटे की टक्कर में भाजपा बहुमत पाने में कामयाब रही। लेकिन भाजपा को इस बार राज्य में एंटी इन्केंबंसी का सामना करना पड़ा। चुनाव से पहले ही रमन सिंह के खिलाफ माहौल दिख रहा था। एग्जिट पोल में भी रमन की सत्ता फिसलती दिखाई दी। लेकिन भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में रमन सिंह का इस तरह सूपड़ा साफ होगा इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।
गठबंधन ने कांग्रेस को नहीं भाजपा को पहुंचाया नुकसान
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई और इस चुनाव में सूबे के समीकरण को काफी हद तक प्रभावित किया। शुरुआत में माना जा रहा था कि जोगी की पार्टी कांग्रेस के ही वोट को प्रभावित करेगी लेकिन इसने पूरे परिणाम को ही उलट दिया।
राज्य में मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा और), अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के गठबंधन को लेकर भाजपा के रणनीतिकारों का अनुमान था कि माया, जोगी और सीपीआई के गठबंधन को यदि आठ फीसदी तक वोट मिलते हैं तो भाजपा फिर से सत्ता हासिल कर लेगी। लेकिन नतीजे इसके विपरीत रहे। गौरतलब है कि राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव की तरह ही करीब 76 फीसदी मत पड़े। लेकिन, पिछले तीन चुनाव से उलट इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रह चुके अजीत जोगी की नई पार्टी, बसपा और भाकपा के गठबंधन ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया।
माना जा रहा है कि गठबंधन को आठ फीसदी तक वोट मिलने का अर्थ है कि अजित जोगी कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं सतनामी, आदिवासी, इसाई, मुस्लिम बिरादरी को साधने में कामयाब रहे हैं। इसके उलट यदि गठबंधन का मत प्रतिशत बढ़ता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि इसने भाजपा के परंपरागत मतदाताओं में भी सेंध लगाई है।
किसानों का गुस्सा और कांग्रेस की कर्जमाफी
भाजपा सूबे में किसानों के गुस्से के भी शिकार रही। जबकि कांग्रेस इस गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में सफल रही। रमन सिंह भले ही राज्य में चावल वाले बाबा के नाम से मशहूर हों, लेकिन किसानों की नाराजगी रमन सिंह सरकार के खिलाफ वोटों में निकल कर आई।
इधर, राज्य में इसका फायदा कांग्रेस ने पूरी तरह उठाया। कांग्रेस के घोषणापत्र में किया गया किसानों की कर्जमाफी के वायदे ने मास्टरस्ट्रोक की तरह काम किया। यही कारण रहा है कि पूरे राज्य में रमन के खिलाफ नाराजगी और कांग्रेस लहर दिखी।
आदिवासी क्षेत्र में भारी मतदान
छत्तीसगढ़ में कुल 31.8 फीसदी मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं और 11.6 फीसदी वोटर दलित हैं, यानी राज्य की सत्ता की चाबी उनके पास ही है। लेकिन पहले चरण में बस्तर क्षेत्र में भारी मतदान को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म रहा। नतीजा ये रहा कि दलित-आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी को बुरी तरह हार झेलनी पड़ी।
शराबबंदी आंदोलन से लेकर पुलिस परिवार आंदोलन तक ने बिगाड़ा भाजपा का खेल
पिछले दो वर्षों में राज्य में शराबबंदी के लिए महिलाओं का आंदोलन, शिक्षाकर्मियों का आंदोलन, सरकारी कर्मचारी और अधिकारी फेडरेशन के आंदोलन हुए। हद तो तब हो गई जब राज्य के पुलिस भी सरकार के खिलाफ खड़े दिखाई दिए। शिक्षाकर्मियों के आंदोलन को छोड़ दें तो सूबे की सरकार ने बाकी आंदोलनों को कूचलने का भरसक प्रयास किया। नतीजा ये रहा कि राज्य में एक बड़ा तबका रमन सरकार के खिलाफ लामबंद हो गया।