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एक देश एक चुनाव: राजग सरकार के लिए संसद की मंजूरी हासिल करना टेढ़ी खीर

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के लिए वर्तमान...
एक देश एक चुनाव: राजग सरकार के लिए संसद की मंजूरी हासिल करना टेढ़ी खीर

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के लिए वर्तमान परिदृश्य में ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा को वास्तविकता बनाने के लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधनों को पारित कराना कठिन कार्य हो सकता है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा को लागू करने के लिए सरकार को संविधान में 18 संशोधन करने पड़ सकते हैं। राजग को 543 सदस्यीय लोकसभा में 293 सांसदों और 245 सदस्यीय राज्यसभा में 119 सांसदों का समर्थन हासिल है।

संसद में किसी संवैधानिक संशोधन को पारित करने के लिए प्रस्ताव को लोकसभा में साधारण बहुमत के साथ-साथ सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है।

यदि किसी संवैधानिक संशोधन पर मतदान के दिन लोकसभा के सभी 543 सदस्य उपस्थित हों, तो इसे 362 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी। लोकसभा में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटर इंक्लूसिव अलायंस) के 234 सदस्य हैं।

राज्यसभा में राजग के पास 113 सांसद हैं और उसे छह मनोनीत सदस्यों का समर्थन प्राप्त है, जबकि ‘इंडिया’ के पास 85 सदस्य हैं। यदि मतदान के दिन राज्यसभा के सभी सदस्य उपस्थित हों तो दो-तिहाई सदस्य यानी 164 सदस्य होंगे। कुछ संवैधानिक संशोधनों को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किए जाने की भी आवश्यकता होती है।

छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में से दो-भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) एक साथ चुनाव के समर्थन में हैं, जबकि चार-कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) इसके विरोध में हैं।

हाल के लोकसभा चुनावों के बाद, कोविंद समिति के समक्ष एक साथ चुनाव का समर्थन करने वाली पार्टियों के लोकसभा में 271 सदस्य हैं। कोविंद समिति के समक्ष एक साथ चुनाव का विरोध करने वाली 15 पार्टियों की संसद में कुल सदस्य संख्या 205 है।

राजग के नेताओं ने विश्वास जताया कि वे संसद में प्रमुख विधायी सुधारों के लिए समर्थन सुनिश्चित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक और नागरिकता (संशोधन) विधेयक संसद द्वारा तब पारित किए गए थे, जब सत्तारूढ़ गठबंधन के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में एक साथ चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी की संभावनाओं के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में कहा, “हम अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे। हमारी सरकार उन मुद्दों पर आम सहमति बनाने में विश्वास करती है, जो लंबे समय में लोकतंत्र और राष्ट्र को प्रभावित करते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जो हमारे राष्ट्र को मजबूत करेगा।”

 

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