राज्यसभा में गुरुवार को दिल्ली दंगों पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने साफ किया कि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के लिए किसी नागरिक को दस्तावेज नहीं दिखाना होगा। साथ ही किसी नागरिक को संदिग्ध की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
पिछले दिनों दिल्ली की कानून व्यवस्था की स्थिति पर राज्यसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए शाह ने यह भी आश्वासन दिया कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) में किसी से कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। इसके अलावा, किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध कोई भी जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य नहीं है। नफरत फैलाने वाले भाषणों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सीएए कानून बनने के बाद से ही अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के मन में एक भय बैठाने का प्रयास किया गया। शाह ने विपक्षी नेताओं से पूछा कि सीएए की एक भी ऐसी धारा बता दें, जिसमें नागरिकता लेने की बात कही गयी है।
सिब्बल पर किया पलटवार
शाह ने कांग्रेस नेता सिब्बल से पूछा कि वह ‘‘संशोधित नागरिकता कानून में ऐसी कोई धारा बता दें जिससे मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी। ’’सिब्बल द्वारा इसके जवाब में एनपीआर का उल्लेख करने पर शाह ने कहा कि उन्होंने विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि एनपीआर में कोई दस्तावेज नहीं मांगा गया है। उन्होंने कहा, ‘‘देश में किसी को एनपीआर की प्रक्रिया से डरने की जरूरत नहीं है।’’
‘‘डी’’ एवं एनपीआर को लेकर कोई संदेह है तो चर्चा के लिए तैयार
गृह मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘‘डी’’ एवं एनपीआर को लेकर यदि कोई संदेह है तो नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, गृह संबंधी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष आनंद शर्मा एवं जो भी सांसद चाहें, आकर उनसे चर्चा कर सकते हैं। वह उनके संदेह दूर करेंगे। उन्होंने कहा कि एनपीआर और सीएए को लेकर सारे भ्रम को दूर करने का समय आ गया है।
एनपीआर में ‘‘डी (संदिग्ध प्रविष्टि)’’ नहीं होगा?
आजाद ने गृह मंत्री से पूछा कि क्या उनकी बात का आशय यह है कि एनपीआर में ‘‘डी (संदिग्ध प्रविष्टि)’’ नहीं होगा? इस पर शाह ने सिर हिलाते हुए कहा कि उनका यही आशय है। किंतु इसी बीच विपक्षी सदस्यों ने कुछ और सवाल पूछने शुरू कर दिये जिसके कारण शाह अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाये। शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि एनपीआर में किसी से कोई अतिरिक्त जानकारी नहीं मांगी जाएगी।
क्या है एनपीआर
एनपीआर देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। एनपीआर के लिए डेटा अंतिम बार 2010 में जनगणना 2011 की हाउस-लिस्टिंग चरण के साथ एकत्र किया गया था। ऐसी आशंकाएं हैं कि जिन लोगों के पास नागरिकता के दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें बाद की तारीख में कार्रवाई के लिए एनपीआर में चिन्हित किया जा सकता है।