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मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के अचानक इस्तीफे से हलचल तेज, जानें- कैसे तय किया पार्षद से लेकर सीएम की कुर्सी तक का सफर

गुजरात में अगले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले ही भाजपा लगातार उलटफेर कर रही है।...
मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के अचानक इस्तीफे से हलचल तेज, जानें- कैसे तय किया पार्षद से लेकर सीएम की कुर्सी तक का सफर

गुजरात में अगले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले ही भाजपा लगातार उलटफेर कर रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने शनिवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने 7 अगस्त 2016 को गुजरात की कमान सौंपी गई थी। आइए जानते हैं रूपाणी के मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुंचने का सफर-

विजय रूपाणी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य के तौर पर की थी। वह भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी सदस्य रह चुके हैं। साल 1971 में रूपाणी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की इसकी राजनीतिक शाखा जनसंघ से भी जुड़ गए। इंदिरा सरकार में लगे इमरजेंसी के दौरान वो वर्ष 1976 में 11 महीने तक भुज और भावनगर की जेलों में भी बंद रहे। रूपाणी ने 1978 से 1981 तक राष्ट्रीय सेवक संघ के प्रचारक के रूप में भी काम किया।

पार्षद से सीएम तक की यात्रा

विजय रूपाणी ने काफी निचले स्तर से अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी। एक राजनेता के तौर पर उन्होंने सीएम के सफर तक राजनीति के कई पड़ाव देखे। साल1987 में विजय रूपाणी राजकोट नगर निगम के पार्षद चुने गए थे। 1988 से 1986 तक वे राजकोट नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन रहे थे। 1995 में वह दोबारा राजकोट नगर निगम के पार्षद चुने गए। 1996 से 1997 तब विजय रूपाणी राजकोट नगर निगम के मेयर भी रह चुके हैं।

जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब रूपाणी ने गुजरात वित्त बोर्ड के अध्यक्ष और भाजपा के महासचिव के रूप में भी काम किया। आनंदीबेन पटेल की सरकार में विजय रूपाणी परिवहन, जल आपूर्ति, श्रम औऱ रोजगार विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे। 7 अगस्त 2016 को उन्हें गुजरात की कमान सौंपी गई थी।

भाजपा के महासचिव रह चुके रूपाणी युवाओं में भी काफी लोकप्रिय हैं। केशुभाई पटेल के जमाने में पार्टी ने उन्हें चुनावी घोषणापत्र समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने वर्ष 2007 तथा वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सौराष्ट्र इलाके में काफी अच्छा चुनावी प्रबंधन किया था, जिस वजह से भाजपा की भारी जीत हुई थी।

 

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