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लोकपाल बिल पर प्रशांत भूषण की केजरीवाल को खुली चुनौती

जन लोकपाल बिल को लेकर स्‍वराज अभियान के नेता प्रशांत भूषण ने अरविंद केजरीवाल की दिल्‍ली सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। प्रशांत भूषण ने दावा किया है कि दिल्‍ली सरकार की ओर से लाया जा रहा जन लोकपाल विधेयक वर्ष 2014 के उस विधेयक से पूरी तरह अलग है, जिसके लिए केजरीवाल ने सत्‍ता छोड़ने की बात कही थी।
लोकपाल बिल पर प्रशांत भूषण की केजरीवाल को खुली चुनौती

आम आदमी पार्टी ने प्रशांत भूषण पर भाजपा के लिए काम करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि मौजूदा विधेयक दिल्ली जन लोकपाल विधेयक 2014 (जो आम आदमी पार्टी की 49 दिन की सरकार के समय पेश किया गया था) के सामान है। शनिवार को एक टीवी चैनल पर चर्चा के दौरान प्रशांत भूषण और आप के प्रवक्‍ता राघव चड्ढा के बीच इस मुद्दे पर तीखी बहस भी हुई थी। जिसके बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं ने प्रशांत भूषण पर व्‍यक्तिगत हमले शुरू कर दिए हैं। प्रशांत ने कहा कि उन्हें टीवी पर बहस के दौरान राघव चड्ढा के खिलाफ तीखे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था।

रविवार को एक प्रेस कांफ्रेंस कर प्रशांत भूषण ने जन लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को खुली बहस की चुनौती दी है। प्रशांत ने चेतावनी दी कि कल यदि प्रस्तावित विधेयक पेश किया गया तो दिल्ली विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया जाएगा। उनके अनुसार, 2015 का विधेयक लोकपाल की नियुक्ति और उसे हटाने में सरकार के दखल बढ़ाता है। आम आदमी पार्टी गंभीर सवालों का जवाब देने के बजाए लोकपाल के नाम पर निर्लज्जता के साथ झूठ और कपट फैला रही है। स्‍वराज अभियान ने 2014 के दिल्ली जन लोकपाल विधेयक, उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक, केंद्र के लोकपाल कानून और टीम अन्ना के जन लोकपाल मसौदे सहित कई लोकपाल विधेयकों और कानूनों का तुलनात्मक अध्ययन पेश करते हुए कहा कि दिल्ली की वर्तमान कैबिनेट द्वारा पारित विधेयक सबसे बदतर और जोकपाल करार दिया है। 

हालांकि, दिल्ली सरकार ने अभी तक किसी भी विधेयक की प्रति आधिकारिक रूप से जारी नहीं की है। बागी आप विधायक पंकज पुष्कर ने 2015 के विधेयक को सार्वजनिक कर दिया था। उन्होंने दावा किया कि उन्हें यह दिल्ली विधानसभा की कार्य मंत्राणा समिति के एक सदस्य की हैसियत से प्राप्त हुआ है। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री एवं प्रशांत के पिता शांति भूषण ने भी केजरीवाल पर निशाना साधते हुए उनकी तुलना हिटलर के शासनकाल में कुख्यात प्रचार मंत्री रहे जोसेफ गेबल्स से कर दी। प्रशांत और शांति भूषण के आरोपों पर आप के प्रवक्ता आशुतोष ने सवाल किया कि वे और योगेंद्र यादव ने केंद्र में लोकपाल की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध क्यों नहीं किया।  

2014 और 2015 के जन लोकपाल विधेयक में अंतर 

स्‍वराज अभियान ने दिल्ली जन लोकपाल विधेयक 2014 (2014 का बिल न. 2) की एक प्रतिलिपि प्रस्तुत कर बताया है कि वर्तमान प्रस्तावित विधेयक से इससे किस तरह अलग है।  

1. जन लोकपाल का संविधान

2014 विधेयक - 1 अध्यक्ष और कम से कम 6 अन्य सदस्य जिनकी संख्या आवश्यकता के अनुसार 10 तक बढ़ाई जा सकती है। (सदस्यों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला वर्ग के सदस्य 50% कम नहीं होंगे।)

2015 विधेयक - 1 अध्यक्ष और 2 सदस्य।

 

2. चयन समिति

2014 विधेयक - 7 सदस्यीय कमिटी जिसमें से 2 राजनीतिक वर्ग से हैं। 

2015 विधेयक - 4 सदस्यीय कमिटी जिसमें से 3 सदस्य राजनीतिक वर्ग से हैं जिसका विरोध जन लोकपाल आंदोलन हमेशा से करता आया है।

 

3. जांच और अभियोजन विंग

2014 विधेयक -  आयोग द्वारा एक स्वतंत्र जांच और अभियोजन विंग के गठन का प्रावधान।

2015 विधेयक - प्रस्तावित बिल के सेक्शन 10 के अनुसार कोई भी जांच मशीनरी लोकपाल के अधीन नहीं रखी गयी है। जिसका अर्थ है कि लोकपाल को सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए अधिकारियों और मशीनरी के माध्यम से ही अपनी जांच करनी होगी। जाहिर है जांच अधिकारी स्पष्ट रूप से सरकार के नियंत्रण में होंगे।

 

4. जन लोकपाल का अधिकार क्षेत्र

2014 विधेयक - "जन लोकपाल दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने वाले भ्रष्टाचार के आरोप की पूछताछ या जांच कर सकता है।" जैसा कोई वाक्यांश नहीं।

2015 विधेयक - विधेयक की धारा 7 के अनुसार "जन लोकपाल दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने वाले भ्रष्टाचार के आरोप की पूछताछ या जांच कर सकता है।" प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में दिल्ली में किसी भी भ्रष्टाचार के अपराध की जांच होगी चाहे वो केंद्र सरकार की एजेंसी या संस्था हो। इसका मतलब यह है कि राज्य के लोकपाल को केंद्र सरकार की जांच का अधिकार भी होगा।

 

5. जन लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने के संबंध में

2014 विधेयक - अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को संबंधित के खिलाफ एक शिकायत पर जांच के बाद उच्च न्यायालय से सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाएगा।

2015 विधेयक - अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा कुल सदस्यों के बहुमत और विधानसभा में उपस्थित सदस्यों की 2/3 के बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव के बाद हटाया जा सकता है।

 

 

 

 

 

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