वैसे माना जा रहा है कि मोदी ने यह टिप्पणी ग्रीनपीस की कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई के मामले को ध्यान में रखकर की थी जिनका मामला पिछले दिनों खासी चर्चा में रहा था।
इस टिप्पणी को लेकर उन पर प्रहार करते हुए आप ने सोमवार को कहा कि यह अधिकारों के बारे में सोचने वाली आवाजों को दबाने की कोशिश है। साथ ही, यह अधिकारियों को इस बारे में संकेत देता है कि वे उन एनजीओ और लोगों पर सख्त कार्रवाई करें जो सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं। पार्टी ने कहा कि संप्रग जैसी शिकस्त से बचने के लिए मोदी आलोचना की ईमानदार और बेखौफ आवाजों के खिलाफ व्यवस्था के विभिन्न हाथों को अनुकूल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी ने एक बयान में कहा है, रविवार को देश के शीर्ष न्यायाधीशों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन न्यायपालिका को नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों के खिलाफ उकसा रहा है जो राष्ट्र के लिए न तो आश्चर्यजनक है ना ही नया है। बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का संबोधन और जाहिर किए गए उनके विचार केंद्र की भाजपा सरकार के उस व्यापक एजेंडे के अनुरूप है जिसका उद्देश्य मोदी शासन के तहत बढ़ते कट्टरपंथी प्रवृतियों के खिलाफ देश में अधिकारों के बारे में सोचने वाली आवाजों को बंद करना है।
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के एक संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था कि जब न्यायपालिका ताकतवर हो रही है, ऐसे में आवश्यक है कि यह लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरे। प्रधानमंत्री ने कहा था, कानून और संविधान के आधार पर फैसला देना आसान है। धारणा के आधार पर फैसले देने के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धारणा अक्सर फाइव स्टार कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित होती है।
आप के बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने सिविल सोसाइटी के सदस्यों को फाइव स्टार कार्यकर्ता जैसा विशेषण दिया, जिससे सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन अधिकारियों और लोगों को यह प्रोत्साहन मिलता है कि वे सरकार और कॉरपोरेट जगत के दिग्गजों के गैर कानूनी कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने वाले एनजीओ तथा लोगों के खिलाफ सख्ती बरतें। बयान में कहा गया है, हमारा मानना है कि अतीत की तरह न्यायपालिका अपने कर्तव्यों का पालन करने में संविधान और कानून के साथ हमेशा खड़ी रहेगी और किसी धड़े के सुझावों पर ध्यान नहीं देगी।