आप के गठन के बाद जिस तरह पार्टी से कई कद्दावर नेता जुड़े थे तब लगा था कि दिल्ली में आप लंबे समय तक टिकेगी और दिल्ली में करिश्माई काम करके दिखाएगी लेकिन दिल्ली सरकार के गठन के बाद से पार्टी में दरार पैदा होना शुरू हो गई और कई दिग्गज नेता पार्टी से या तो चले गए या फिर उऩको किनारे कर दिया गया।
पंजाव व गोवा की हार के बाद पार्टी की साख को लेकर सारा दारोमदार दिल्ली निगम चुनावों पर आकर टिक गया लेकिन विपरीत नतीजों से पार्टी नेताओं की सारी उम्मीदें धरी रह गई।
बस फिर क्या था सभी नेताओं ने तरकश से तीर निकालकर केजरीवाल पर साधने शुरू कर दिए। चारों तरफ से घिरता देख केजरीवाल ने मौके की नजाकत को भांपते हुए माफी मांगने में भलाई समझी। इसी बीच कुमार विश्वास के विरोध से मामला बढ़ गया और पार्टी नेता सकते में आ गए। बड़ी चतुराई से विश्वास को शांत कर लिया लेकिन केजरीवाल समर्थकों में टीस जरूर बनी रही।
सवाल यह है कि अमानतुल्लाह के निलंबन के बाद जब जांच के लिए समिति गठित कर दी गई थी तो मनीष सिसौदिया अमानतुल्लाह से मिलने क्यों गए और यही से पार्टी नेताओँ की नीयत पर सवाल खड़ होने शुरू हो गए। अब विधानसभा की समितियों में अमानतुल्लाह का कद बढ़ाना और विश्वास समर्थकों का कद घटाना यही बताता है कि पार्टी नेताओं के बीच पड़ी दरार कम होने के बजाय बढ़ेगी। पार्टी संगठन में भी जल्द ही बड़े स्तर पर बदलाव के भी संकेत हैं और विरोधी खेमे को इसमें साइड किया जाना तय माना जा रहा है।