हाल के चुनावों में अप्रत्याशित हार के बाद अब कांग्रेस विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर उलझी हुई है। 8 नवंबर से 15वीं विधानसभा के पहले सत्र में क्या कांग्रेस विधायक दल सदन में बगैर नेता के हाजिर होगा? नेता प्रतिपक्ष को लेकर कांग्रेस आलाकमान पशोपेश में क्यों हैं? कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष पर पेंच क्यों फंसा है? क्या नेता प्रतिपक्ष का चुनाव मुख्यमंत्री चुनने से भी कठिन है? ऐसे तमाम सवाल हरियाणा कांग्रेस ही नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ भाजपा के नेता भी सार्वजनिक रूप से कर रहे हैं।
हरियाणा विधानसभा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि स्पष्ट चुनाव नतीजे के महीना भर बाद भी प्रमुख विपक्षी दल अपने विधायक दल का नेता तय न कर पाया हो। विधानसभा के पूर्व स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने आउटलुक से कहा, “हरियाणा की जनता द्वारा लगातार तीसरी बार नकारे जाने की वजह से सदमे में कांग्रेस आलाकमान फैसला लेने की स्थिति में नहीं है। हार से सबक लेने के बजाय गुटबाजी से घिरी हरियाणा कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष के लिए भी मारामारी है।”
दरअसल 18 अक्टूबर को चंडीगढ़ में केंद्रीय पर्यवेक्षकों अशोक गहलोत, अजय माकन, प्रताप सिंह बाजवा और छत्तीसगढ़ के पूर्व उप-मुख्यमंत्री टीके सिंहदेव की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में शामिल सभी 37 विधायकों से राय लेने के बाद नेता प्रतिपक्ष पद का फैसला आलाकमान पर छोड़ा गया। उससे पहले 16 अक्टूबर को दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के निवास पर 30 से अधिक विधायकों की हाजिरी से हुड्डा गुट ने अपनी ताकत का संकेत दिया।
हालिया विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 90 सीटों में कांग्रेस के 37 विधायकों में 33 हुड्डा के समर्थक हैं। ऐसे में कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और बीरेंद्र सिंह तिकड़ी के भारी विरोध के बावजूद हुड्डा को नजरअंदाज करना कांग्रेस आलाकमान के लिए आसान नहीं है। हालांकि महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र के बदले हरियाणा से रणदीप सुरजेवाला को शामिल किया गया है। मजे की बात यह है कि चुनाव आयोग को भेजी गई इस सूची में संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की बजाय महासचिव सैलजा के दस्तखत हैं।
साढ़े नौ साल मुख्यमंत्री, चार बार के सांसद और पांच बार के विधायक रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस पर सीधे प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं पर उनका विरोधी गुट कह रहा है कि “हुड्डा पिता-पुत्र का हरियाणा कांग्रेस में खेल अब खत्म है।”
महज साढ़े चार महीने पहले भाजपा में शामिल होकर खुद राज्यसभा सांसद और बेटी श्रुति चौधरी को नायब सिंह सैनी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनवाने में सफल रही किरण चौधरी ने कांग्रेस के ताजा हालात पर आटलुक से बातचीत में कहा, “कांग्रेस के बंटाधार के लिए जिम्मेदार पिता-पुत्र की जोड़ी ही है।’’
नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में हालांकि खुद हुड्डा आगे हैं लेकिन चेहरा बदले जाने पर हुड्डा गुट के अशोक अरोड़ा, गीता भुक्कल के मुकाबले सैलजा, रणदीप और बीरेंद्र की तिकड़ी चंद्रमोहन बिश्नोई को आगे कर रही है। हुड्डा गुट के विधायक बीबी बत्रा या आफताब अहमद को मुख्य सचेतक बनाया जा सकता है।
हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पर इस्तीफे के लिए दबाव बना हुआ है। कांग्रेस आलाकमान की ओर से हार की समीक्षा को लेकर बुलाई गई पहली बैठक में उदयभान और भूपेंद्र सिंह हुड्डा हाजिर नहीं हुए थे। कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक बीते करीब दो दशक से जाट केंद्रित राजनीति से हटकर कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी दलित चेहरे और प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी ओबीसी पर दाव लगा सकती है।
लगातार छह बार कांग्रेस के विधायक और ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कैप्टन अजय यादव का विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस की चार दशक की सियासत से किनारा करना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। संकेत हैं कि रेवाड़ी से बेटे चिरंजीव की हार से खिन्न यादव भी अपनी मित्र किरण चौधरी की तर्ज पर भाजपा का दामन थामेंगे। यादव ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। आलाकमान उनकी नाराजगी दूर कर पार्टी में वापसी कराने के संकेत हैं। ऐसा होने की सूरत में कैप्टन अजय यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
48 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार तीन निर्दलीयों के समर्थन से संख्या में 51 में हो गई है। इंडियन नेशनल लोकदल के मात्र दो नवोदित विधायकों करण चौटाला और आदित्य देवी लाल चौटाला के अपने हलके के मुद्दों तक सीमित रहने के आसार हैं। भाजपा ने विधानसभा स्पीकर के तौर पर घरोंडा से तीन बार के विधायक नए युवा चेहरे हरविंदर कल्याण को आगे किया है। ऐसे में विधानसभा में सरकार को घरने के लिए 37 विधायक वाली मजबूत विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष के रूप में अनुभवी और मजबूत चेहरे की दरकार है।