उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच "शिवसेना का उत्तराधिकारी" बनने की महत्वाकांक्षा को लेकर चल रहा विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने आज बुधवार को इस मामले को सुना। कोर्ट में उद्धव ठाकरे की तरफ से वरिष्ठ वकील और नेता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा। जबकि एकनाथ शिंदे गुट की ओर से वकील हरीश साल्वे ने मामले की पैरवी की।
सुप्रीम कोर्ट बेंच के सामने उद्धव ठाकरे की तरफ से पक्ष रखते हुए कपिल सिब्बल ने कहा " एकनाथ शिंदे और उनके बागी विधायक किसी भी तरह से शिवसेना पार्टी पर दावा नहीं कर सकते। क्योंकि एक तो एक तिहाई विधायक अभी भी शिवसेना पार्टी के साथ हैं। और दूसरी बात यह कि एकनाथ शिंदे की सरकार का गठन भी गलत तरीके से हुआ है। इसलिए गठन के बाद से सरकार द्वारा लिए गए सभी फैसले अवैध हैं। इस स्थिति में बागी विधायकों पर दल बदल कानून के तहत कारवाई बनती है। यानी किसी भी कीमत पर एकनाथ शिंदे गुट का शिवसेना पर दावा नहीं बनता। यह ज़रूर है कि एकनाथ शिंदे अपने बागी विधायकों के साथ नया दल बना सकते हैं या फिर वह अपने गुट के साथ किसी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। शिवसेना पार्टी का मालिकाना हक तो दूर दूर तक एकनाथ शिंदे गुट को नहीं दिया जा सकता।"
कपिल सिब्बल की तीखी टिप्पणी का जवाब देते हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा " एकनाथ शिंदे और उनके साथ आए विधायकों ने शिवसेना पार्टी नहीं छोड़ी है। इसलिए आप उन्हें दल बदल कानून का भय नहीं दिखा सकते। एकनाथ शिंदे आज भी शिवसेना की विचारधारा के साथ हैं। अगर नाराज़गी है तो केवल पार्टी के नेतृत्व से है, जिसे बहुमत के बल पर बागी विधायक बदलना चाहते हैं। हम मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलना चाहते थे लेकिन उद्धव जी ने मिलने से मना कर दिया। इस कारण फिर विधायकों ने भी पार्टी मीटिंग्स में जाना छोड़ दिया। इस तरह विधायक बागी ज़रूर हुए लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़ी नहीं है। सुधार के लिए उठाए गए क़दम, दल बदल कानून के तहत नहीं देखे जा सकते। हमारी पहचान अभी भी शिवसेना है।"
चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने उद्धव ठाकरे पक्ष और एकनाथ शिंदे गुट की बात सुनने के बाद सुनवाई गुरुवार तक के लिए टाल दी है।