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मध्य प्रदेश: भ्रष्टाचार के पन्ने

  “मध्य प्रदेश में इन दिनों एक के बाद एक नौकरशाहों का भ्रष्टाचार खुल कर सामने आ रहा है” मध्य प्रदेश...
मध्य प्रदेश: भ्रष्टाचार के पन्ने

 

“मध्य प्रदेश में इन दिनों एक के बाद एक नौकरशाहों का भ्रष्टाचार खुल कर सामने आ रहा है”

मध्य प्रदेश में पहली बार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के तीन अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज हुई है। संयोग से तीनों अधिकारी घोटाले के एक ही मामले से जुड़े हुए हैं। इन अधिकारियों ने जबलपुर के कुंडम इलाके में कुछ आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति दी थी। इस मामले में  कलेक्टर से शिकायत के बाद जांच मौजूदा एडीएम शेर सिंह मीणा को सौंपी गई थी। 

तहकीकात में पता चला कि तीन आइएएस अधिकारियों- वर्तमान ग्वालियर संभायुक्त दीपक सिंह, आबकारी आयुक्त ओपी श्रीवास्तव और अपर सचिव बसंत कुर्रे ने 2007 से 2012 तक जबलपुर में बतौर एडीएम अपनी तैनाती के दौरान कुंडम क्षेत्र में नियम के खिलाफ आदिवासियों को जमीन बेचने की अनुमति प्रदान की थी यानी आदिवासी जमीन गैर-आदिवासियों को सुनियोजित तरीके से बेच दी।  नियम यह है कि भू-राजस्व संहिता में आदिवासियों की जमीन किसी सामान्य वर्ग के खरीदार को बेचने की अनुमति सिर्फ कलेक्टर दे सकता है। 

कैसे हुआ यह? नाम न छापने की शर्त पर एक आला अधिकारी ने बताया कि खेल बहुत सिंपल था। पहले गरीब आदिवासियों की जमीन खुद कोई आदिवासी खरीदता था। लगभग एक-डेढ़ साल बाद खरीददार आर्थिक तंगी की आड़ में और जमीन के एक हिस्से को बंजर बताकर दूसरे हिस्से को उपजाऊ बनाने के उद्देश्य से पैसे का आवेदन करता था। अधिकारी आवेदन को स्वीकार कर लेता था और जमीन बेचने की मंजूरी का आवेदन अपर कलेक्टर के यहां पेश कर देता था। इस तरीके से आदिवासियों के जमीन का हस्तांतरण बड़ी आसानी से गैर-आदिवासी के नाम हो जाता था। बताया जाता है कि इस खेल में लगभग 500 करोड़ रुपये की जमीन गैर-आदिवासियों को बेची गई है। 

एआरटीओ संतोष और क्लर्क पत्नी रेखा पाल के यहां छापा

एआरटीओ संतोष और क्लर्क पत्नी रेखा पाल के यहां छापा

सूबे में भ्रष्टाचार का यह रोग आदिवासियों से लेकर भगवानों तक सबको अपनी चपेट में ले चुका है। उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर के लोकार्पण के छह महीने बाद मई में एक रोज आई तेज आंधी के चलते कॉरिडोर में स्थापित कई मूर्तियां गिर कर टूट गईं। इनमें से कई मूर्तियां जमीन पर गिर गईं तो कई मूर्तियों के हाथ और सिर टूट गए। राहत की बात यह रही कि इतने नुकसान के बाद भी तेज आंधी के दौरान किसी श्रद्धालु को चोट नहीं आई। कॉरिडोर में 10 से 25 फुट ऊंची लाल पत्थर और फायबर री-एनफोर्स्ड प्लास्टिक से स्थापित इन मूर्तियों में सबसे ज्यादा नुकसान सप्तऋषियों की मूर्तियों को हुआ। मूर्तियों के गिरने का सबसे ज्यादा नुकसान उज्जैन के कलेक्टर सहित 15 अफसरों को हुआ। कांग्रेस के विधायक महेश परमार ने इस मामले पर शिकायत दर्ज की है। उनका आरोप है कि उज्जैन स्मार्ट सिटी के सीईओ अंशुल गुप्ता ने पद का दुरुपयोग कर ठेकेदार एमपी बावरिया को नियम विरुद्ध लोहे की जीआइ शीट के आइटम को पॉलीकार्बोनेट शीट से बदल कर एक करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया। अब परमार की इस शिकायत के आधार पर लोकायुक्त संगठन ने जांच शुरू कर उज्जैन कलेक्टर सहित 15 अफसरों को नोटिस भेज कर जवाब मांगा है। लोकायुक्त संगठन द्वारा परीक्षण के बाद दोषियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की जाएगी। 

उज्जैन में भव्य महाकाल लोक कॉरिडोर का लोकार्पण अक्टूबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया था। कॉरिडोर की अनुमानित लगत 856 करोड़ रुपये है। पहले चरण में 351 करोड़ रुपये की मदद से कॉरिडोर को स्थापित किया गया है।

मध्य प्रदेश में एक के बाद एक उजागर हो रहे भ्रष्टचार के मामलों में सबसे ज्यादा अचंभित करने वाला मामला लोकायुक्त टीम के हाथ उस वक्त लगा जब एमपी पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन (संविदा) में पदस्थ सब-इंजीनियर हेमा मीणा के ठिकानों पर छापेमारी की गई। हेमा मीणा 13 साल से नौकरी कर रही हैं और उनकी हर महीने की तनख्वाह मात्र 30 हजार रुपये है, पर जब जबलपुर लोकायुक्त की टीम ने उनके घर पर छापेमारी की तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उनके घर की दीवार में 30 लाख रुपये का एक टीवी सेट लगा मिला, आलीशान फार्महाउस का ठिकाना मिला, फार्महाउस में 70 से 80 गायों का पता चला, कुछ लग्जरी गाड़ियां मिलीं।  जांच के दौरान जब यह बात सामने आई कि हेमा मीणा मध्यप्रदेश पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के इंजीनियर जनार्दन सिंह के अधीन काम करती थीं, तो छापेमारी के बाद सरकार ने मीणा और जनार्दन सिंह दोनों को निलंबित कर दिया।

ठीक ऐसे ही एक आर्थिक अपराध शाखा ने एआरटीओ संतोष पाल और उनकी क्लर्क पत्नी रेखा पाल के घर में छापेमारी की कारवाई की थी। इस कारवाई में ईओडब्‍ल्यू की टीम को उनके घर में लिफ्ट, महंगी शराब रखने का वुडेन केस, स्विमिंग पूल, 16 लाख रुपये नकद और लाखों रुपये के सोने-चांदी के जेवर मिले थे। जांच में इस दंपती के पास से जितनी संपत्ति निकलकर सामने आई है, वह उनकी आय से 650 प्रतिशत अधिक है। 

लगातार उजागर हो रहे भ्रष्टाचार के मामलों से यह तो साफ हो रहा है कि जितना सामने आया है उससे कहीं ज्यादा अभी छुपा हुआ है। चुनावी वर्ष में सत्ताधारी भाजपा के लिए ऐसे मामलों को से निपटना एक सिरदर्द बन चुका है।

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