मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का बुधवार को निधन हो गया। गौर को उमा भारती के इस्तीफा देने के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी। दरअसल, मध्य प्रदेश में 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उमा भारती की अगुआई में बड़ी जीत हासिल की। उमा मुख्यमंत्री बनीं और एक साल तक तो सबकुछ ठीक चला लेकिन फिर अचानक एक दिन 10 साल पुराने एक मामले ने ऐसे हालात पैदा किए कि उमा भारती को सीएम पद की कुर्सी छोड़नी पड़ी और बाबूलाल गौर के रूप में राज्य को नया मुख्यमंत्री मिला।
1994 में कर्नाटक के हुबली शहर में सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप में उमा भारती के खिलाफ मुकदमा दायर हुआ था। इसी मामले में उनके खिलाफ 2004 में अरेस्ट वॉरंट जारी हुआ। गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए बीजेपी आलाकमान ने उमा से पद छोड़ने को कहा और उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। उमा के इस्तीफे के बाद 74 साल की उम्र में बाबूलाल गौर मध्य प्रदेश के सीएम बने। वह 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक राज्य के सीएम रहे।
ट्रेड यूनियन पॉलिटिक्स से जुड़े गौर
बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। उन्होंने भोपाल की पुट्ठा मिल में मजदूरी करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। भेल में नौकरी करने के दौरान वह कई श्रमिक आंदोलनों से जुड़े और यहीं से उन्होंने ट्रेड यूनियन पॉलिटिक्स में अपनी जड़ें जमाईं। वह भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य भी रहे। स्कूली दिनों से ही बाबूलाल गौर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा जाया करते थे।
भोपाल से निर्दलीय चुनाव जीते थे बाबूलाल
1974 में वह भोपाल से निर्दलीय चुनाव जीते और यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। 1974 के बाद से वह लगातार यहां से चुनाव जीतते रहे। वह मार्च 1990 से 1992 तक मध्य प्रदेश के स्थानीय शासन, विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसंपर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री रहे।
इस वजह से 2016 में गौर को छोड़ना पड़ा मंत्री पद
जून 2016 में बाबूलाल गौर को पार्टी ने उम्र का हवाला देते हुए मंत्री पद छोड़ने को कहा। बीजेपी ने 70 पार उम्र वाले नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी न देने का फॉर्मूला तय किया था। इसके बाद गौर को मंत्री पद छोड़ना पड़ा। तत्कालीन शिवराज सरकार के खिलाफ कई बार उनके बागी तेवर भी देखने को मिले।
गोविंदपुरा सीट पर अड़े थे बाबूलाल
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले गोविंदपुरा सीट को लेकर वह अड़े हुए थे। 10 बार जीतने के बाद वह 11वीं बार भी इस सीट से टिकट चाहते थे। हालांकि अंतिम क्षणों में बीजेपी ने उनकी बहू कृष्णा गौर को टिकट दिया और चुनाव में जीत हासिल करते हुए बहू ने अपने ससुर की सियासी विरासत को संभाल लिया।