केंद्रीय मंत्री और लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता रामविलास पासवान ने कहा कि एससी/एसटी ऐक्ट (अत्याचार निवारण) में गिरफ्तारी के नियमों में बदलाव के फैसले से अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोग नाराज हैं। उन्होंने आज कहा कि केंद्र सरकार को इस आदेश खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए। पासवान ने कहा कि हमारी पार्टी सरकार इस तरह की याचिका दाखिल करने की मांग करती है। उऩ्होंने कहा कि इस फैसले से एससी/एसटी वर्ग के राजग के कई सांसद भी नाखुश हैं।
पासवान ने कहा कि उन्होंने इस बारे में केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत से मुलाकात की है और अनुरोध किया है कि जितनी जल्दी हो सके पुनर्विचार याचिका दाखिल की जानी चाहिए। पत्रकारों से बातचीत के दौरान पासवान के बेटे और पार्टी की पार्लियामेंट्री बोर्ड के चेयरमैन तथा सांसद चिराग पासवान भी मौजूद थे। चिराग ने कहा कि उनकी पार्टी अपनी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ एक सप्ताह में पुनर्विचार याचिका दाखिल दाखिल करने जा रही है।
पासवान ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के कार्यकाल के दौरान इस कानून को बनाया गया था और मोदी सरकार के दौरान इसमें संशोधन कर इसके प्रावधानों को और कड़ा किया गया था। इस कानून की यह विशेषता थी कि प्राथमिकी दर्ज होने के फौरन बाद अभियुक्त की गिरफ्तारी होती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है, जिससे इस समुदाय के लोगों में रोष है।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐक्ट के तहत गिरफ्तारी के नियमों में बदलाव करते हुए कहा था कि इस कानून के दुरुपयोग की शिकायतों की वजह से गिरफ्तारी के नियमों में बदलाव करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस कानून के तहत गिरफ्तारी में अंतरिम जमानत का भी प्रावधान कर दिया था, जो पहले नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी सरकारी अधिकारी पर पर केस दर्ज करने से पहले पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) स्तर का पुलिस अधिकारी प्रारंभिक जांच करेगा। किसी सरकारी अफसर की गिरफ्तारी से पहले उसके उच्चाधिकारी से अनुमति जरूरी होगी।