रांची। पश्चिम बंगाल के चुनाव में टीएमसी सुप्रीमो ममता और भाजपा के बीच जारी जंग के बीच झारखण्ड की क्षेत्रीय पार्टियां वृहद झारखण्ड का पत्ता खेल रही हैं। झारखण्ड में सत्ता धारी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और भाजपा की सहयोगी आजसू का यह बड़ा मुद्दा है। झारखण्ड की सीमा से लगने वाले जिले हों या भीतर के आदिवासियों की बहुलता वाले इलाके। पसंगा वोट की हैसियत से कई सीटों को प्रभावित करने का माद्दा रखती हैं। इन्हीं वोटों पर मुख्य रूप से दोनों पार्टियों की नजर है। हालांकि भाजपा और कांग्रेस की नजर भी इन्हीं वोटों पर है। यहां के नेताओं का फोकस सीमा के करीब के आसनसोल, बांकुड़ा झारग्राम, मलदा, वीरभूम, पश्चिम वर्धमान, पुरुलिया, मुर्शिदाबाद जैसे इलाकों पर है।
पश्चिम बंगाल में करीब आते विधानसभा चुनाव के साथ झारखण्ड के राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई है। अलग झारखण्ड की लंबी लड़ाई लड़ने वाले शिबू सोरेन की पार्टी झामुमो ने 28 जनवरी को झारग्राम से अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। शिबू सोरेन के पुत्र और झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन झारग्राम में 28 जनवरी पहली चुनावी सभा कर शंखनाद कर आये हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष करना होगा। केंद्र सरकार की आलोचना करने के साथ कहा कि बंगाल के आदिवासियों को हक दिलाने के लिए उनकी पार्टी आंदोलन करेगी। अलग झारखण्ड बनने के समय साजिश के तहत आदिवासियों को ताकतवर नहीं बनने दिया गया। हमारी सीमा से सटे प.बंगाल, ओडिशा और बिहार के आदिवासी बहुल इलाकों को शामिल नहीं किया गया। यह वृहद झारखण्ड के हिस्सा हैं। इस सपने को साकार किया जायेगा। उस आंदोलन को फिर से जिंदा करेंगे। झामुमो की दलील है कि वृहद अलग झारखण्ड की मांग को लेकर 1973 में पार्टी बनाई गई थी। प.बंगाल का आसनसोल, बांकुड़ा, पुरुलिया सहित कोई सात-आठ जिले झारखण्ड के प्रस्तावित नक्शे में थे। झामुमो यहां 25-30 सीटों पर लड़ने की तैयारी में है मगर हेमन्त सोरेन ने 40 सीटों पर लड़ने की घोषणा की है।
दूसरी तरफ झारखण्ड में भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू लगातार बंगाल के चुनाव को लेकर सक्रिय है। पूर्व उपमुख्यमंत्री आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो का नारा है हर हाल में वृहद झारखण्ड लेकर रहेंगे। प.बंगाल का जंगल महल इलाका आजादी के बाद से वहां का सबसे उपेक्षित क्षेत्र रहा है। इस इलाके के विकास के लिए वे स्वायत परिषद के गठन की वकालत करते रहे हैं। उनका कहना है कि आजसू अलग राज्य की लड़ाई लड़ती रही है। कहते हैं कि हमारा मकसद सिर्फ चुनाव लड़ना नहीं बल्कि इस क्षेत्र की जनता को अपना हक और अधिकार दिलाना है। आजसू के नेता बीते कोई एक माह से प.बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में दौरा, सभाएं कर रहे हैं। हेमन्त और सुदेश वहां के आदिवासियों को कितना पटा पाते हैं समय बतायेगा।
कांग्रेस ने झारखण्ड में पार्टी विधायक दल के नेता सह ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम को वरिष्ठ नेताओं की तीन सदस्यीय कमेटी में शामिल करते हुए सीनियर आब्जर्वर भी जनवरी के प्रारंभ में नियुक्त कर दिया है। उसके बाद आलमगीर दौरा भी कर चुके हैं। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व भी यहां के आदिवासी नेताओं को टास्क सौंप चुका है। विधायक दल के नेता सह झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष सह राज्यसभा सदस्य समीर उरांव भी वहां दौरा कर चुके हैं तो केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा अभी पश्चिम बंगाल के दौरे पर हैं। भाजपा के दूसरे अनेक नेताओं की टीम भी वहां दौरे पर गई है, जाने वाली है।
छोटी पार्टियां बड़ा संकट
भाजपा के बढ़ते आक्रमण के बीच ममता अकेली पड़ रही हैं। कांग्रेस वहां वाम मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में कांग्रेस और वाम मोर्चा के बीच 193 सीटों पर समझौता भी हो गया है। ऐसे में त्रिपक्षीय लड़ाई में छोटी पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू अलग ताल ठोंक रहा है। बिहार और झारखण्ड में राजद का कांग्रेस के साथ गठबंधन मगर लालू प्रसाद की ममता बनर्जी से निकटता रही है। ममता पसंद है या कांग्रेस, राजद ने अपना पत्ता नहीं खोला है। झारखण्ड में कांग्रेस के साथ झामुमो का गठबंधन है। कांग्रेस सरकार में शामिल है मगर बंगाल चुनाव पर झामुमो ने भी अभी चुप्पी साध रखी है। हालांकि हेमन्त की ममता से मधुर संबंध रहे हैं। झामुमो की बंगाल में चुनावी सभा से ममता बनर्जी नाराज हैं। उन्होंने कह दिया कि बंगाल आकर हेमन्त राजनीति कर रहे हैं। चुनाव के समय आकर वोट मांगेंगे तो हम कहां जायेंगे। यह ठीक नहीं हैं। मैं उनके शपथ ग्रहण में भी गई थी। लेकिन वे यहां आकर चुनावी सभा कर रहे हैं। बंगाली झारखण्ड में भी हैं मगर मैं तो वहां नहीं जाती। इससे जाहिर है कि जंग में अकेली पड़ रहीं ममता बनर्जी को लग रहा है कि हेमन्त का दौरा उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। झारखण्ड में भाजपा की सहयोगी आजसू भी अलग चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इस तरह कांटे की लड़ाई में छोटी पार्टियां अनेक सीटों पर चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकती हैं।