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झारखंड में अपनी खोई हुई जमीन तलाश रहा है जदयू, गौतम सागर राणा के आने से मिली राहत

रांची। पड़ोसी राज्‍य बिहार में भाजपा से किनारा कर राजद से हाथ मिलाकर सत्‍ता संभालने वाले बिहार के...
झारखंड में अपनी खोई हुई जमीन तलाश रहा है जदयू, गौतम सागर राणा के आने से मिली राहत

रांची। पड़ोसी राज्‍य बिहार में भाजपा से किनारा कर राजद से हाथ मिलाकर सत्‍ता संभालने वाले बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार झारखंड में पांव फैला रहे हैं, पैठ बनाना चाहते हैं। पार्टी की खोई हुई जमीन तलाश रहे हैं। झारखंड जब बिहार से अलग हुआ था तब बाबूलाल मरांडी की सरकार नीतीश के विधायकों के सहयोग से ही बनी थी। करीब आधा दर्जन विधायक थे। मगर पिछले दो विधानसभा चुनाव से जदयू का झारखंड में खाता तक नहीं खुला है। नीतीश झारखंड में वापसी चाहते हैं कम से कम पसंगा वोट की हैसियत ताकि उनके विधायक जीत न सकें तो कम से कम त्रिकोणीय खेल में किसी को हराने की औकात में रहें। लंबे समय से वे इस पर नजर गड़ाये हुए थे। बिहार के कोटे से झारखंड में पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष खीरू महतो को राज्‍यसभा सदस्‍य बनाया कर इसका संकेत दे दिया था। अब पार्टी की नजर 2024 के चुनाव पर है। नजर विभिन्‍न पार्टियों के उपेक्षित नेताओं पर भी है।

राज्‍यसभा की सदस्‍यता के प्रसाद मिलने के बाद से खीरू महतो सक्रिय हो गये। जिलों में भ्रमण कर पार्टी को सक्रिय करने में जुट गये। इधर 16 अक्‍टूबर को रांची में जदयू के राज्‍य सम्‍मेलन में झारखंड के पुराने नेता गौतम सागर राणा ने नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में आस्‍था जाहिर करते हुए अपने झारखंड जनता दल का जदयू में विलय कर दिया। इससे हाशिये पर खड़े राणा को राहत संभावना दिखी तो जदयू के लिए भी राहत की बात है। राणा झारखंड के पुराने नेता हैं। संयुक्‍त बिहार में 1991 वे राजद के प्रदेश अध्‍यक्ष बने थे। गिरिडीह के बगोदर से 1977 और 1985 में विधायक चुने गये थे। झारखंड में वे तीन राउंड लालू प्रसाद की पार्टी राजद के प्रदेश अध्‍यक्ष रहे। अलग राज्‍य बनने के बाद इन्‍हें जदयू ने भी प्रदेश अध्‍यक्ष की बागडोर सौंपी थी। 2019 के संसदीय चुनाव में पार्टी की करारी हार और लालू प्रसाद द्वारा खुद की उपेक्षा से आहत हो राजद से बगावत कर अलग राष्‍ट्रीय जनता दल लोकतांत्रिक का एलान किया और खुद पार्टी के अध्‍यक्ष बन गये।

राणा जमीनी नेता रहे हैं ऐसे में पार्टी की सक्रियता बढ़ाने में खीरू के मददगार साबित हो सकते हैं। राज्‍य सम्‍मेलन में जदयू के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि झारखंड में जदयू अपनी पुरानी प्रतिष्‍ठा हासिल करे इसी मकसद से प्रदेश अध्‍यक्ष खीरू महतो को राज्‍यसभा भेजा गया। ललन सिंह ने कहा कि सभी जिलों में पार्टी के सम्‍मेलन के बाद रांची में बड़ी रैली की जायेगी जिसे नीतीश कुमार संबोधित करेंगे। बहरहाल झारखंड के शहरी इलाकों में बड़ी संख्‍या में बिहार के लोग हैं जिनपर नीतीश कुमार का प्रभाव है। नीतीश कुमार कुर्मी समाज से आते हैं। अपनी जाति पर उनका अच्‍छी पकड़ है। झारखंड में कुड़मियों की अच्‍छी आबादी है, करीब 22 प्रतिशत। कुड़मी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को लेकर झारखंड और सीमावर्ती दूसरे प्रदेशों में आक्रामक आंदोलन शुरू हो गया है। हेमन्‍त सोरेन की कैबिनेट ने 1932 के खतियानी को स्‍थानीय मानने की मंजूरी दे दी है। जबकि 1931 में ही कुड़मी को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किया गया था। ऐसे में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के लिए अपनी जमीन तैयार करने का नया अवसर मिल गया है।

देखना यह है कि खीरू महतो के नेतृत्‍व में पार्टी इसमें कितना कारगर साबित होती है। बता दें कि प्रकारांतर से अलग राज्‍य बनने के बाद जदयू के समर्थन से ही झारखंड में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्‍व में भाजपा की सरकार बनी थी। उस समय शरद यादव वाले जनता दल के तीन और समता पार्टी के पांच विधायक थे। 2003 में समता पार्टी, शरद यादव वाले जनता दल यू का विलय कर जनता दल यू का विधिवत गठन किया गया था। अलग राज्‍य बनने के बाद 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जदयू को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई तो 2009 में मात्र दो सीटों पर जीत मिली थी। पिछले दो विधानसभा चुनाव यानी 2014 और 2019 में खाता तक नहीं खुला।

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