झारखण्ड कांग्रेस में विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं। सरकार बनते ही जब विभागों में तबादले पर कांग्रेसी मंत्रियों की चल रही नहीं थी तो वे असंतुष्ट थे। अब विधायकों, जिलाध्यक्षों व कार्यकर्ताओं का यही हाल है। उनकी नाराजगी अपने ही नेतृत्व से है कि सरकार बने डेढ़ साल गुजर जाने के बावजूद उन्हें एहसास नहीं हो रहा कि उनकी पार्टी सरकार में शामिल है। अधिकारी उनकी सुन नहीं रहे।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि थानेदार, बीडीओ, सीओ जैसे अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे। ऐसे में ज्यादातार विधायकों और कार्यकर्ताओं को एहसास हो रहा है कि वे विपक्ष में हैं। गठबंधन की सरकार बने इतने दिन हो गये मगर सरकार चलाने के लिए न तो न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय हुआ न समन्वय समिति बनी। बीस सूत्री और निगरानी समितियों का भी गठन नहीं हो सका। बोर्ड, निगमों और आयोगों में भी पद खाली पड़े हैं। कैबिनेट में कांग्रेस ने महिलाओं को स्थान भी नहीं दिया। कुछ सक्रिय महिला विधायकों का अपने इलाके के अधिकारियों से पंगा चल रहा है। ट्रकों को छोड़ना हो या ट्रक्टरों को थाने से जबरन ले जाने के विवाद ने तूल पकड़ लिया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव और छत्तीसगढ़ की सह प्रभारी महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह, झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, रामगढ़ विधायक ममत देवी और बड़कागांव विधायक अंबा प्रसाद गोलबंद होकर लगाकार विधायक दल नेता और प्रदेश नेतृत्व से अपनी नाराजगी जाहिर कर रही हैं।
जानकार बताते हैं कि इनका काम नहीं होने पर ये चुनाव घोषण पत्र के सैद्धांतिक बातों को लेकर दबाव बना रही हैं। हालांकि विधायकों की नजर मलाईदार बोर्ड, निगम की कुर्सी पर है। मंगलवार को इनमें तीन विधायकों ने विधायक दल के नेता आलमगीर आलम से मिलकर बात की तो आश्वासन मिला कि मुख्यमंत्री से उनके मसले पर बात होगी। वैसे दीपिका पांडेय कह चुकी हैं कि बोर्ड निगमों में विधायक से इतर ऐसे लोगों को जगह वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जगह मिलनी चाहिए।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि कई टर्म सांसद रहे एक वरिष्ठ नेता ने अपने मित्र की वाजिब जमीन के म्यूटेशन के लिए रांची के ही एक सीओ से काम कराने के लिए एसडीओ को फोन मिलाया। हड़काया भी। मगर सीओ साहब ने होने वाले काम को भी खराब कर दिया। दरअसल अधिकारी एक ''पैमाने'' के तहत पसंदीदा स्थानों पर जाते हैं ऐसे में वे ''टास्क'' पूरा करने में लगे रहते हैं। ऐसे में दूसरे नेताओं को जरा सा महत्व तक नहीं देते। इसकी पीड़ा कांग्रेसजनों को है। महिला विधायकों की बैठक के एक दिन बाद, बुधवार को प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने जिलाध्यक्षों के साथ बैठक की तो जिलाध्यक्षों को नेतृत्व के प्रति गुबार से फूट पड़ा। आउटरीच कार्यक्रम के बारे में विमर्श के दौरान कई जिलाध्यक्ष फट पड़े। प्रदेश अध्यक्ष पर ही गुटबाजी का आरोप जड़ दिया। कहा हमें बंधुआ मजदूर न समझा जाये। इस कार्यक्रम के दौरान जिलाध्यक्षों को प्रदेश नेतृत्व की अनुमति के बिना जिला नहीं छोड़ने का पार्टी ने निर्देश दिया था। अधिकारियों द्वारा उनकी न सुनने की पीड़ा भी बताई।
अंतत: प्रदेश अध्यक्ष ने यह कह कर मामला संभाला कि बीस सूत्री और निगरानी समितियों के गठन में जिलाध्यक्षों के सुझाव का ध्यान रखा जायेगा। जल्द निर्णय होगा। अधिकारियों को निर्देश दिया जायेगा कि कांग्रेस के लोग जन समस्याओं को लेकर जायें तो उनकी बातों को गंभीरता से लेते हुए उन पर विचार किया जाये। बीस सूत्री और निगराी समितियों के गठन से जिला और अनुमंडल स्तर पर सरकारी काम-काज पर निगरानी के सहारे अधिकारियों पर भी एक हद तक नीचे के कार्यकर्ताओं का कंट्रोल हो सकेगा।
प्रदेश नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस लोग टुकड़े-टुकड़े में लगातार पार्टी के केंद्रीय अधिकारियों से भी मिल रहे हैं। जानकार बताते हैं कि असंतोष की असली वजह सत्ता के प्रसाद को लेकर है जिससे कांग्रेस के विधायक और कार्यकर्ता खुद को वंचित महसूस कर रहे हैं।