कहा जाता है कि केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता काफी हद तक उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश लम्बे समय से केंद्र की राजनीति की दशा और दिशा तय करता रहा है। इस बार भी कुछ ऐसे ही समीकरण बन रहे हैं।
शनिवार को बसपा-सपा ने भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करते हुए गठबंधन का ऐलान कर दिया है। दोनों पार्टियां 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने दो ऐसी बातें कहीं जो सपा-बसपा के रिश्तों के इतिहास से जुड़ी हुई हैं। मायावती ने कहा कि एक बार कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर भाजपा को हराया था। वहीं, दूसरी बात उन्होंने कही कि यह 1995 के गेस्ट हाउस कांड से ऊपर जनहित के लिए किया गया गठबंधन है। यहां मायावती की पहली बात को थोड़ा विस्तार देते हैं।
1991 से शुरू हुई मुलायम और कांशीराम की दोस्ती
1991 के आम चुनाव में इटावा में जबरदस्त हिंसा के बाद पूरे जिले के चुनाव को दोबारा कराया गया था। तब बसपा सुप्रीमो कांशीराम यहां मैदान में उतरे। मौके की नजाकत को समझने में माहिर मुलायम ने यहां कांशीराम की मदद की। इसके बदले में कांशीराम ने बसपा से कोई प्रत्याशी मुलायम के खिलाफ जसवंतनगर विधानसभा से नहीं उतारा।
1991 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम को 1 लाख 44 हजार 290 वोट मिले और उनके समकक्ष बीजेपी प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 1 लाख 21 हजार 824 वोट ही मिले। वहीं मुलायम सिंह की अपनी जनता पार्टी से लड़े रामसिंह शाक्य को मात्र 82,624 मत ही मिले थे। मुलायम ने रामसिंह शाक्य की कोई खास मदद नहीं की थी।
बाद में कांशीराम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यदि मुलायम सिंह से वे हाथ मिला लें तो उत्तर प्रदेश से सभी दलों का सूपड़ा साफ हो जाएगा। इसी इंटरव्यू को पढ़ने के बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिलने उनके निवास पर गए थे। कहा जाता है कि उस मुलाकात में कांशीराम ने नये समीकरण के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी और 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया।
‘मिले मुलायम-कांशीराम...’
1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और प्रदेश चुनाव की दहलीज पर खड़ा हो गया। बीजेपी को पूरा भरोसा था कि राम लहर उसे आसानी से दोबारा सत्ता में पहुंचा देगी। लेकिन प्रदेश की सियासत तेजी से करवट ले रही थी। बसपा सुप्रीमो कांशीराम और सपा के मुलायम सिंह यादव की नजदीकियां चर्चा का केंद्र बन रही थीं। दोनों पार्टियों ने पहली बार चुनावी गठबंधन किया। इस दौरान एक नारा ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम’ प्रदेश की राजनीति का केंद्र बन गया।
1993 में चुनाव हुए और बीजेपी जो 1991 में 221 सीटें जीती थी, वह 177 सीटों तक ही पहुंच सकी। वहीं सपा ने इस चुनाव में 109 और बसपा ने 67 सीटें हासिल कीं। मामला विधानसभा में संख्या बल की कुश्ती तक खिंचा तो यहां सपा और बसपा ने बीजेपी को हर तरफ से मात देते हुए जोड़तोड़ कर सरकार बना ली। मुलायम सिंह यादव दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सपा बसपा गठबंधन ने 4 दिसंबर 1993 को सत्ता की बागडोर संभाल ली।
लेकिन...
आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कर लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस वजह से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आकर गिर गई। इसके बाद 3 जून, 1995 को मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता की बागडोर संभाली। 2 जून 1995 यूपी की राजनीति में एक काले दिन की तरह पहचान रखता है। प्रदेश की राजनीति में उसे गेस्टहाउस कांड कहा जाता है। मायावती खुद कई बार कह चुकी हैं कि उस कांड को कभी वह नहीं भूल सकतीं हालांकि आज उन्होंने सपा-बसपा गठबंधन का ऐलान करते हुए कहा कि जनहित के लिए वह इसे किनारे रखने को तैयार हैं। इसी का नाम राजनीति है। मायावती-अखिलेश की बसपा-सपा कांशीराम और मुलायम की बसपा-सपा से अलग है। ऐसे में मायावती और अखिलेश के सामने 1993 के उस दौर को दोहराने की भी चुनौती होगी।
1996 में हुआ था कांग्रेस-बसपा गठबंधन
इसके बाद बसपा का दूसरा चुनाव पूर्व गठबंधन 1996 के लोकसभा चुनाव में हुआ। यूपी में कांग्रेस को 33 और बसपा को 11 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई। देश भर में कांग्रेस को 140 सीटें मिलीं। इस चुनाव में आरएलडी का विलय कांग्रेस में हो गया था। हालांकि, कांग्रेस और बीजेपी दोनों इस गठबंधन को सफल नहीं मानते। दोनों एक-दूसरे पर वोट ट्रांसफर न होने का आरोप लगाते हैं। यही वजह है कि इस बार गठबंधन से भी दोनों पार्टियां हिचकती रहीं।
 
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    