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अलागिरी की चेतावनी के बीच एम के स्टालिन चुने गए डीएमके के निर्विरोध अध्यक्ष

चेन्नई स्थित डीएमके मुख्यालय में डीएमके जनरल काउंसिल की बैठक में मंगलवार को एम के स्टालिन को पार्टी...
अलागिरी की चेतावनी के बीच एम के स्टालिन चुने गए डीएमके के निर्विरोध अध्यक्ष

चेन्नई स्थित डीएमके मुख्यालय में डीएमके जनरल काउंसिल की बैठक में मंगलवार को एम के स्टालिन को पार्टी का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया, जबकि, दुरई मुरुगन को डीएमके के कोषाध्यक्ष निर्वाचित किया गया। डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन ने पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया था।

बैठक में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करूणानिधि, पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी, पूर्व राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला और पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान को श्रद्धांजलि देकर दो मिनट के लिए मौन रखा गया। इसके साथ ही एक प्रस्ताव पारित करके करुणानिधि को भारत रत्न दिए जाने की मांग की गई है। 

स्टालिन के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के बाद उनके समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। स्टालिन ने अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद अपने दिवंगत पिता करुणानिधि की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किए और उन्हें श्रद्धांजलि दी।

2017 में बने थे कार्यकारी अध्यक्ष 

उनके दिवंगत पिता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री करणानिधि के बीमार रहने के कारण अधिकांश समय घर में ही बिताने पर स्टालिन को जनवरी 2017 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। करुणानिधि के इसी महीने निधन हो जाने के बाद उनकी पार्टी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति जरूरी हो गई थी।

अलगिरी ने दी थी चेतावनी

डीएमके से निष्कासित नेता एम के अलागिरी ने अपने छोटे भाई एम के स्टालिन की पार्टी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी से एक दिन पहले अपना रुख कड़ा करते हुए कहा कि वह पांच सितंबर को प्रस्तावित मार्च करेंगे और यदि उन्हें पार्टी में दोबारा शामिल नहीं किया गया तो पार्टी को नतीजे भुगतने होंगे। दक्षिणी तमिलनाडु में अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाले अलागिरी बीते सात अगस्त को अपने पिता एम करुणानिधि के निधन के बाद से ही सख्त रुख अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह कार्यकर्ताओं की इच्छा के अनुरूप चेन्नई में रैली का आयोजन करने वाले हैं। साल 2014 में करुणानिधि की ओर से पार्टी से निकाले जाने के बाद से अलागिरी राजनीतिक एकांतवास में हैं। उन्हें पार्टी से उस वक्त निकाला गया था जब पार्टी में वर्चस्व कायम करने को लेकर स्टालिन से उनकी लड़ाई चरम पर थी।

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