मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने बिहार में शराबबंदी को एक हद तक लागू किया है। इसी क्रम में वह भाजपा शासित छत्तीसगढ़ में नशामुक्ति का संकल्प दिलाकर सरकार की ओर से शराब बेचने के फैसले के खिलाफ आंदोलन का समर्थन किया है।
छग की भाजपा सरकार अब खुद शराब बेचने का फैसला लिया है।
नीतीश के इस संकल्प के राजनीतिक और जातिगत समीकरण के मायने भी हैं, जिसका सीधे तौर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को फायदा होता दिख रहा है। इसका दूरगामी तौर पर महागंठन के मजबूत होने से नीतीश का कद भी बढ़ सकता है।
छत्तीसगढ़ में 2018 में चुनाव होने हैं और रमन सरकार की ओर से शराब बेचे जाने का कांग्रेस विरोध कर रही है। सरकार के इस फैसले के विरोध में महिलाएं, बच्चे और सामाजिक संगठन है।
रायपुर में कुर्मी समाज के सम्मेलन में बिहार में शराबबंदी लागू करने वाले नीतीश कुमार के संकल्प से प्रदेश के 20 प्रतिशत लोग कांग्रेस के साथ दिख सकते हैं।
रविवार को धरसींवा में आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कुर्मी समाज के वरिष्ठ लोग मौजूद रहे।
नीतीश ने लोगों को अपनी नरफ से नशामुक्ति संकल्प दिलाया। इससे कांग्रेस को लाभ होने की उम्मीद है। उसके साथ ही 2019 में महागठबंधन के नेता होने के नाते नीतीश कुमार को भी लाभ होगा। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में करारी शिकस्त खाने के बाद मोदी के रथ को रोकना अब कांग्रेस के लिए मुश्किल हो गया है। सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि मोदी के खिलाफ तैयार हो रहे महागठबंधन का बड़ा चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे।
बिहार में नीतीश कुमार ने चुनावी वादा पूरा करते हुए पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी और सरकार के 5 हजार करोड़ रुपए के राजस्व को दरकिनार कर समाज के लिए एक रोल मॉडल बन गए।
वहीं छत्तीसगढ़ ढाई करोड़ की आबादी है, जहां सरकार को 3400 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर छत्तीसगढ़ सरकार नेशनल हाईवे की 411 शराब दुकानों सहित 136 बार बंद करने पड़ रहे थे, जिसपर राज्य सरकार ने खुद ही शराब बेचने का फैसला किया। माना जा रहा है कि बिहार को मॉडल बताकर छत्तीसगढ़ में सरकार के खिलाफ माहौल बनाना आसान होगा।