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बीएमसी की कुर्सी के लिए साथ आए शिवसेना (उबाठा) और मनसे, मराठी प्रेम सिर्फ बहाना: प्रताप सरनाईक

शिवसेना विधायक एवं महाराष्ट्र के मंत्री प्रताप सरनाईक ने कहा कि जनता समझदार है और वह जानती है कि...
बीएमसी की कुर्सी के लिए साथ आए शिवसेना (उबाठा) और मनसे, मराठी प्रेम सिर्फ बहाना: प्रताप सरनाईक

शिवसेना विधायक एवं महाराष्ट्र के मंत्री प्रताप सरनाईक ने कहा कि जनता समझदार है और वह जानती है कि शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) मराठी हित के लिए नहीं, बल्कि मुंबई नगर निकाय में सत्ता हासिल करने के लिए साथ आए हैं।

सरनाईक ने रविवार को यह भी कहा कि जो लोग मराठी सीखना चाहते हैं, उन्हें शिवसेना की शाखाओं में यह भाषा सिखाई जाएगी।

उन्होंने मराठी मानुष को न्याय दिलाने और केंद्र के साथ मिलकर मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए उपमुख्यमंत्री एवं शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे को श्रेय दिया।

शिंदे को लिखे पत्र में सरनाईक ने रविवार को कहा कि शिवसेना (अविभाजित) का 25 साल तक बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की सत्ता पर कब्जा रहा।

उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान मराठी मानुष को होटल उद्योग, रियल एस्टेट और सोने-चांदी के आभूषणों के कारोबार से बाहर कर दिया गया गया तथा मराठी भाषा पर राजनीति करने वालों ने कभी आम मराठी लोगों के बारे में नहीं सोचा।

सरनाईक ने कहा, ‘‘जनता समझती है कि वे (शिवसेना उबाठा और राज ठाकरे की मनसे) बीएमसी में सत्ता हासिल करने आए हैं। उनकी (शिवसेना उबाठा) नजरें बीएमसी के खजाने पर है। शिवसेना (उबाठा) की राजनीति स्वार्थपूर्ण, झूठी और विश्वासघाती रही है। यही कारण है कि उनके सहयोगी पार्टी छोड़ रहे हैं।’’

उनकी यह टिप्पणी शिवसेना (उबाठा) प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के लगभग 20 वर्षों के बाद मुंबई में एक ‘‘विजय’’ रैली के दौरान फिर से एक होने के एक दिन बाद आई है। इस रैली में राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में त्रिभाषा नीति के तहत जारी किए गए दो सरकारी प्रस्ताव (जीआर) को समाप्त करने का जश्न मनाया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘मनसे और शिवसेना (उबाठा) कहते रहते हैं कि वे मराठी के हित में साथ आए हैं। तो किसके हित में वे वर्षों पहले अलग हुए थे? उनमें मराठी, उसकी संस्कृति और भाषा, और मराठी मानुष के लिए कोई प्रेम नहीं है।’’

 

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