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छत्तीसगढ़: बघेल की चुनौतियां

वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में डेढ़ दशक से सत्ता पर काबिज भाजपा को बाहर...
छत्तीसगढ़: बघेल की चुनौतियां

वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में डेढ़ दशक से सत्ता पर काबिज भाजपा को बाहर का रास्ता  दिखाने में कामयाब रही थी। तब कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए दो बड़े दावेदार भूपेश बघेल और टी.एस. सिंहदेव सामने आए थे। आखिरकार, भूपेश बघेल को राज्य की कमान सौंपी  गई। उस दौरान खूब चर्चा थी कि पार्टी आलाकमान ने छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले की मंजूरी दी है, मगर खुलकर कभी भी किसी नेता ने इसका खुलासा नहीं किया। अब 2023 में लगभग पांच महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव के ठीक पहले पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस के दोनों ताकतवर नेताओं को फिर से मैदान में उतार दिया है। सिंहदेव को उप-मुख्यमंत्री पद देकर साफ कर दिया गया है कि इस बार का विधानसभा चुनाव भी दोनों नेताओं की जुगलबंदी में ही लड़ा जाना है। पार्टी के इस दांव से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने कई चुनौतियों के दरवाजे खुल गए हैं।

जाहिर है, बघेल और सिंहदेव फिर चुनावी रथ की कमान संभालने जा रहे हैं। आने वाले समय में बघेल और सिंहदेव दोनों को ही अपने-अपने कार्यक्रम सावधानीपूर्वक तैयार करने होंगे। अपने साथ आने वाले नेताओं की पहचान करनी होगी, उन मुद्दों पर भी निर्णय लेने होंगे जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में संबोधित किया जाना है। स्वाभाविक है पार्टी का यह निर्णय बघेल के लिए चुनौती से कम नहीं है।

दरअसल हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रायपुर में कांग्रेस महाधिवेशन के सफल आयोजन से बघेल का कद पार्टी में लगातार बढ़ा है। वे आज सोनिया, प्रियंका, और राहुल गांधी के खास माने जाते हैं। केंद्रीय नेतृत्व में बघेल की आज अलग छवि है। फिर भी सिंहदेव को उप-मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय से कई नेताओं के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। ऐसे में बघेल के सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की है।

आज बघेल नरम हिंदू विचारों के बड़े नेता माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राम की शरण में हैं तो बघेल भी माता कौशल्या का आंचल थामे हुए हैं। वे माता कौशल्या का मंदिर बनाने पर जोर दे रहे हैं। इस चुनाव में बघेल भाजपा के धर्म का रखवाला होने की भूमिका और भ्रम को भेदने जा रहे हैं। इसे भी एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

भाजपा के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के बड़े-छोटे नेता कांग्रेस की जमीन भेदने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाले हैं। भाजपा के पास नेताओं और प्रचारकों की पूरी फौज है जो विभिन्न अभियानों में एक साथ हिस्सा लेती है और राज्य में कई जगह सभाओं को संबोधित कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के इस आक्रमण और घेराबंदी से जूझने में अब बघेल को अकेले ही ज्यादातर समय लगाना पड़ सकता है।

केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) राज्य में लगभग एक वर्ष से भ्रष्टाचार संबंधी जांच कर रही है। इन कार्रवाइयों में ज्यादातर कांग्रेसियों पर ही फंदा कसा जा रहा है। ईडी की जांच की आंच बघेल के लिए चुनौतियों से भरी दिख रही है।

बघेल सरकार के ‘मोर छत्तीसगढ़ मोर माटी’, ‘मोर महापौर मोर द्वार’, ‘मोर सरपंच मोर द्वार’, ‘मोर विधायक मोर द्वार’ जैसे कार्यक्रमों से लोगों को जोड़े रखने में काफी हद तक कामयाबी मिली है। कई मायनों में ऐसे कई कार्यक्रम यहां के लोगों को छत्तीसगढ़िया होने का एहसास भी करा रहे हैं। भाजपा हर हाल में चुनाव के दौरान इस चक्रव्यूह को भेदने की कोशिश में है। वह कांग्रेस के इस छत्तीसगढ़िया गौरव के एहसास को तोड़कर लोगों को भ्रष्‍टाचार-मुक्त, गुंडागर्दी-मुक्त, भय-मुक्त नया छत्तीसगढ़ देने की बात कर रही है। बघेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ‘मोर छत्तीसगढ़ मोर माटी’ को बचाने की है।

ऐसा लगता है कि इस बार के चुनाव में छत्तीसगढ़ की जनता या तो ‘मोर छत्तीसगढ़ मोर माटी’ पर मोहर लगाएगी या फिर उन नेताओं को सबक सिखाने जा रही है जो बाहर से कुछ और, भीतर से कुछ और नजर आते हैं।

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