बिप्लब कुमार देब ने कल त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा दे दिया। भाजपा ने उनकी जगह उम्रदराज़ डेंटल सर्जन डॉ. माणिक साहा को नया मुख्यमंत्री बनाया है। इस कदम को जानकार रणनीतिक और पूर्वोत्तर के इस गेटवे राज्य में पार्टी द्वारा किया गया 'ब्रांड नवीनीकरण अभ्यास' के रूप में देख रहे हैं।
डॉ. माणिक साहा, एक मैक्सिलोफेशियल सर्जन हैं, जो लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से पास आउट हुए हैं। साहा, 2016 में भाजपा में शामिल होने से पहले विपक्षी कांग्रेस के सदस्य थे और देब के पद छोड़ने के बाद 2020 में भाजपा की त्रिपुरा इकाई के अध्यक्ष बने। पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी, साहा, त्रिपुरा क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।
हालाँकि, भाजपा के लिए उनका महत्व उनकी स्वच्छ छवि और उनके ट्रैक रिकॉर्ड से उपजा है। माना जाता है कि साहा के बदौलत ही भाजपा नवंबर 2021 में त्रिपुरा में हुए चुनावों में सभी तेरह नगर निकायों में जीत हासिल की थी। सूत्रों ने कहा कि यह कदम आरएसएस द्वारा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को भेजे गए विश्लेषण के बाद आया है, जिसमें संकेत दिया गया था कि पार्टी और सरकार में बदलाव की जरूरत है।
सत्तारूढ़ दल के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि यह कदम "पार्टी को तत्काल मजबूत करने" के लिए आवश्यक था। जाहिर है कि अगले 8-9 महीनों के भीतर राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाह रही है।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा त्रिपुरा में बिगड़ते स्थिति को लेकर केंद्रीय नेतृत्व को बार-बार पत्र भेजे जा रहे थे। हालाँकि, जो वास्तव में पार्टी को झटका दे रहा था, वह त्रिपुरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन या टीआईपीआरए मोथा का राज्य में अचानक से हुआ उदय है। यह गठबंधन त्रिपुरा के स्वदेशी लोगों के लिए एक अलग आदिवासी राज्य की मांग कर रहा है।
पार्टी ने पिछले साल अप्रैल में हुए त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के चुनावों में जीत हासिल की, जिसमें सत्तारूढ़ बीजेपी-आईपीएफटी गठबंधन के साथ सीधे मुकाबले में 'ग्रेटर टिपरालैंड' की मांग पर 28 में से 18 सीटें जीतीं। वहीं, माना जा रहा है कि नई राज्य की मांग कई विधानसभा सीटों के परिणामों को प्रभावित कर सकती है, जहां आदिवासियों का चुनावी दबदबा काफी है।
टीआईपीआरए मोथा ने अलग आदिवासी राज्य की मांग उठाकर राज्य की राजनीति का पूरी तरह से ध्रुवीकृत कर दिया है और राज्य के कुछ मिश्रित इलाकों में तनाव पैदा कर दिया है, जहां आदिवासियों की आबादी एक तिहाई है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाजपा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में टीआईपीआरए मोथा के उदय का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। इसके अलावा, आदिवासी पार्टी ने कुल चालीस सामान्य सीटों में से कम से कम 25 सामान्य सीटों पर उम्मीदवार उतारने की धमकी दी है।
साफ छवि के डॉ. माणिक साहा को त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बनाया जाना आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए 'ट्रम्प कार्ड' साबित हो सकता है। फिर भी यह समय ही बताएगा कि क्या मिलनसार साहा अपने पूर्ववर्ती द्वारा छोड़े गए विविध मुद्दों से निपटने में सक्षम होंगे और भाजपा को स्पष्ट जीत की ओर ले जाएंगे या वामपंथ एक बार फिर से अपने पुराने गढ़ पर काबिज हो जाएगा।