सत्ता को परेशान करने वाले और मुख्यधारा के मीडिया से तकरीबन गायब रहने वाले मुद्दों पर साहसिक ढंग से लिखने वाली दो महिला पत्रकारों-प्रियंका काकोदकर और रक्षा कुमार को आज चमेली देवी पुरस्कार से नवाजा गया। टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई में काम करने वाली प्रियंका काकोदकर ने महाराष्ट्र के मराणवाढ़ा इलाके में भीषण सूखे और किसानों की आत्महत्या पर लगातार खबरें लिखा, जबकि रक्षा कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और जमीन अधिग्रहण तथा सेज के तहत हो रही ज्यादातियों को अपनी लेखनी से उजागर किया। उन्हें यह पुरस्कार पूर्व पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश ने दिया। इस पुरस्कार की ज्यूरी में अपूर्वानजंर और स्मिता ु्गुप्ता थी।
इसी अवसर पर जयराम रमेश ने बीजी वर्गीज स्मृति व्याख्यान भी दिया। इसका विषय था, भारत के पर्यावरण के लिए माहौल। इस विषय पर व्याख्यान देते हुए जयराम रमेश ने मौजूदा सरकार के खिलाफ कोई भी सीधी टिप्पणी करने से बचते हुए अपनी बातचीत को मूलतः पांच बिंदुओं पर केंद्रीत किया, जिससे पर्यावरण का सीधा रिश्ता है। उन्होंने सबसे पहले जनसांख्यिंकीय वातावरण पर बात की और बताया कि किस तरह से भारत की तेजी से बढ़ रही आबादी पर्यावरण पर सोच को प्रभावित कर रही है। बड़ी तादाद में आवास और रोजगार आदि की जरूरतें हैं जिन्हें पूरा करना आवश्यक है। दूसरा बिंदू है, राजनीतिक वातावरण, जिसके तहत कानूनों की बात होती है और विनयम की बात होती है। यहां दिक्कत यह होती है कि कानून बेशक कुछ भी हों, लेकिन इसे लागू करने की कोई मंशा नहीं होती है। कानूनों का क्रियान्वयन नहीं होता है। तीसरा बिंदू है आर्थिक वातावरण, यहां विकास को पर्यावरण के विरोधी के तौर पर देखा जाता है। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के बिना कोई देश विकास नहीं कर सकता। इसके बात जयराम रमेश ने बात की सामाजिक वातावरण की। जयराम का मानना है कि आज का तारीख में पर्यावरण जनस्वास्थ्य का मुद्दा बनता जा रहा है। बड़ी तादाद में लोग बीमार पड़ रहे हैं और यह उनपर अतिक्त आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। इसके बाद जयराम रमेश ने आखिरी बिंदू के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय वातावरण को रखा। उन्होंने कहा कि आज सभी देशों को जलवायू परिवर्तनों के प्रति सजग पहलकदमी उठानी होगी। कोई भी देश यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता कि वह इतना उत्सर्जन करने का दोषी नहीं है।
इसके बाद हुए एक परिचर्चा में बहार दत्ता, शिमानी घोष और दारियल डोमेंटो ने इस मुद्दे पर सघन चर्चा की और मौजूदा सरकार की पर्यावरण नीतियों की कड़ी आलोचना की। इसी क्रम में बहार दत्त ने जब जयराम रमेश से पूछा कि अगर वह मंत्री होते तो क्या यमुना तट आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम को मंजूरी देते, तो उन्होंने कहा कि यह सरासर तमाम कानूनों का उल्लंघन है, सरासर गलत है। राष्ट्रीय हरित पंचाट की पूरी तरह से विफलता की बानगी है।