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ऐसे बंधे राष्ट्र के सूत्र

आखिरकार मेरा काम पूरा हुआ। पांच साल पहले मैंने अपने परदादा वी.पी. मेनन के जीवन पर किताब लिखना शुरू किया...
ऐसे बंधे राष्ट्र के सूत्र

आखिरकार मेरा काम पूरा हुआ। पांच साल पहले मैंने अपने परदादा वी.पी. मेनन के जीवन पर किताब लिखना शुरू किया था, जो अब बाजार में आ गई है। फिर भी करीब 400 पन्नों की इस किताब में मैं सभी बातों को समाहित न कर सकी। खासकर आजादी के बाद के वर्षों के वर्णन को छोटा करना पड़ा। यह काफी मुश्किल था, क्योंकि रियासतों वाले देश भारत की हर रियासत की कहानी बताने लायक है। भारत में इन रियासतों के विलय के बारे में लिखना मेरा प्रिय विषय रहा है। इसमें राजनीति है तो रजवाड़े भी, कमजोरी है तो अज्ञानता भी, इसमें उन रजवाड़ों के दीवान की धूर्तता भी है और कल्पनातीत संपत्ति भी। घटनाकाल लंबा है। आजादी के बाद तीन साल तक यह सब चला, फिर भी ऐसा लगता है कि सब कुछ एक साथ घटित हो रहा था। हम शुरुआत करते हैं ठीक 73 साल पहले इसी मानसून के मौसम से।

अगस्त 1947

हैदराबाद विद्रोह की तैयारी कर रहा है, लेकिन कोई नहीं जानता कि यह कब और कैसे होगा। कृष्ण मेनन के अनेक जासूस यूरोप और ब्रिटेन में हैं। चर्चा है कि ‘क्राल’ नाम से मशहूर एक चेक एजेंट करोड़ों पाउंड के हथियार हैदराबाद भेज रहा है। बेल्जियम और इटली के एजेंट भी इस काम में लगे हैं। लेकिन संदेश के सिवाय मेनन के पास इन बातों का कोई सबूत नहीं है। वे नेहरू से यह जानकारी गोपनीय रखने का आग्रह करते हैं। लेकिन अगर वे इसकी सूचना किसी को देना ही चाहते हैं तो कम से कम वीपी मेनन को न दें। मेनन आंतरिक (गृह) मंत्रालय के तेजतर्रार सचिव हैं। कृष्ण मेनन उन्हें यह जानकारी न देने की कोई वजह नहीं बताते।

एक तरफ हैदराबाद में उबाल है, तो बड़ौदा में कुछ अलग तरह की नारी-सुलभ समस्या है। गायकवाड़ की दुलारी और रौबदार दूसरी पत्नी सीता देवी इस बात पर अड़ी हैं कि नए पासपोर्ट में उनके नाम के साथ ‘महारानी’ लिखा जाए। तब तक बड़ौदा एक पत्नी वाला राज्य था, इसलिए उनकी इस मांग पर काफी नाराजगी थी। बड़ौदा रियासत के दीवान सर बी.एल. मित्तर ने नैतिकता दिखाते हुए सरदार पटेल से कहा कि अगर भारत सरकार सीता देवी की नई मांगों को मान लेती है तो इसका मतलब होगा कि “आप ऐसी महिला को ऊंचा मान दे रहे हैं जिसने एक सुखी परिवार को तोड़ा है।”

सच तो यह है कि समस्याग्रस्त जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर रियासतों से जुड़ी चिंताओं के साथ सीता देवी का पासपोर्ट बड़ौदा और आंतरिक मंत्रालय के बीच सबसे अधिक विवाद का विषय बना।

सितंबर 1947

मध्य भारत में लग रहा है कि सरीला के राजा भी समस्या खड़ी कर सकते हैं। उनका मानना है कि सरीला और सह-रियासत चरखरी, दोनों एक दिन स्वतंत्र हो जाएंगे जिन पर उनके बेटे राज करेंगे। बल्कि उन्होंने तो चरखरी के राजा के तौर पर अपने बड़े बेटे का राज्याभिषेक समारोह भी आयोजित कर दिया। तभी दिल्ली से उनके पास एक तार पहुंचता है, जिसमें पूछा जाता है कि राजा ने आदेश की अवहेलना क्यों की। राजा उस तार का जवाब नहीं देते। वे सरदार पटेल से मिलते हैं और यह समझाने की कोशिश करते हैं कि यह अवहेलना नहीं, बल्कि उनके लिए अस्तित्व का सवाल है। लेकिन सरदार उनकी बात सुनने के मूड में नहीं हैं। तब वीपी मेनन हस्तक्षेप करते हैं। वीपी कहते हैं कि “ऐसी हालत में भी उन्हें हमसे संपर्क करना चाहिए था, उन्हें एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी थी।” राजा माफी मांगते हैं, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी है। सरदार  वार्ता कक्ष से बाहर निकल जाते हैं।

नवंबर 1947

पेरिस के जॉर्ज पंचम होटल में एक सम्मेलन की खबर आती है। हैदराबाद के अस्थिर विचारों वाले निजाम मीर उस्मान अली खान के सबसे छोटे और अय्याश बेटे प्रिंस निक्की हथियारों के एक सौदागर से बात करते हैं। ऑस्ट्रेलियाई मूल के उस व्यक्ति का नाम सिडनी कॉटन है। कराची के रास्ते हथियार हैदराबाद पहुंचते हैं। अगर भारत ने जल्दी कार्रवाई नहीं की तो हैदराबाद हाथ से निकल सकता है।

दिसंबर 1947

वीपी मेनन और सरदार सच्चे अर्थों में देश के एकीकरण की योजना बना रहे हैं। उनका कटक का दौरा होने वाला है। लेकिन देश के उत्तर में कश्मीर जल रहा है। हैदराबाद के साथ बातचीत बेनतीजा रही और यह रियासत भी हिंसा से उबल रहा है। इन सबके बीच बड़ौदा के प्रताप सिंह गायकवाड़ अपनी पत्नी सीता देवी के पासपोर्ट को लेकर तीखी शिकायत करते हैं, “मुझे उस भारत सरकार से उम्मीद रखने का अधिकार है जिसकी तरफ से मुझे मान-सम्मान दिए जाने को मैंने स्वीकार किया है। अभी तक सरकार का रवैया काफी तुच्छ रहा है। मैं इसे व्यक्तिगत अपमान समझता हूं...”

जून 1948

भारत की आजादी के एक साल बाद तक हैदराबाद उबलता रहता है। 1948 की गर्मियों में नेहरू काफी चिंतित हो जाते हैं। हैदराबाद के निजाम अब खुलकर कह रहे हैं कि वे अपनी रियासत स्वतंत्र रखने के लिए दृढ़ हैं। नई खुफिया रिपोर्टों से नेहरू को पता चलता है कि हैदराबाद ने लड़ाकू विमानों के स्क्वॉड्रन तैयार रखे हैं। “हमारी सूचना यह है कि कुछ बमवर्षक विमान पूर्वी बंगाल में, कुछ पश्चिमी पाकिस्तान में, एक स्क्वॉड्रन बसरा में और एक फारस में है। इनके पायलट पोलैंड और चेक मूल के हैं।”

1947 से 1949

कोल्हापुर बेचैन है। जातिगत और सांप्रदायिक तनाव से भरा होने के कारण उससे निपटना कभी आसान नहीं रहा। इसका एकदम से विलय करना नादानी होगी। संभवतः आंतरिक मंत्रालय भी ऐसा ही मानता है, खासकर यह देखते हुए कि महाराजा (जिसे बी.एल. मित्तर ने ईडियट कहकर संबोधित किया है) फिलहाल किसी भी सूरत में ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर दस्तखत करने को तैयार नहीं हैं। मित्तर तो यह भी मानते हैं- जैसा उन्होंने आजादी से कुछ हफ्ते पहले जुलाई 1947 में सरदार पटेल को लिखा- कि महाराजा को यह तक नहीं मालूम कि ‘एक्सेशन’ का क्या मतलब है। खुफिया स्रोतों से वीपी और सरदार को पता चलता है कि महाराजा विलय के खिलाफ गोपनीय बैठकें कर रहे हैं और सरकार विरोधी प्रोपेगैंडा को हवा दे रहे हैं। सिर्फ महाराजा के कदम ने ही वीपी और सरदार को आगे बढ़ने से नहीं रोका, बल्कि कोल्हापुर में भी सांप्रदायिक हिंसा शुरू हो गई है। इसके बाद 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद परिस्थितियां और बिगड़ जाती हैं।

बड़ौदा से आ रही खबरें भी आश्वस्त करने वाली नहीं हैं। पटेल और वीपी वहां स्थायी सरकार बनाने की कोशिश करते हैं,  लेकिन प्रताप सिंह गायकवाड़  हालात को मुश्किल बनाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं।  सरदार के बुलावे का  वे कोई जवाब नहीं देते और चुपचाप यूरोप चले जाते हैं। सीता देवी आंतरिक मंत्रालय को परेशान करना जारी रखती हैं। वे बड़ौदा की कुछ सबसे बेशकीमती ज्वैलरी फ्रांस या अमेरिका भेज देती हैं। वैन क्लीफ एंड आर्पेल्स (फ्रांसीसी लक्जरी ज्वैलरी) ने उन्हें ‘मिसेज ब्राउन’ उपाधि दी है। यूरोपियन सोसायटी की बड़ी पार्टियों में बड़ौदा के मशहूर माणिक और मोतियों को पहनकर तस्वीरें खिंचवाना उन्हें बेहद पसंद है। मोनाको में वे राजसी ठाठ के साथ रहती हैं। वे खासतौर से बनवाई गई रोल्स रॉयस कार में बड़ौदा राज्य के प्रतीक चिन्ह के साथ घूमती हैं। 1949 में आंतरिक मंत्रालय को पता चलता है कि बड़ौदा के खजाने से करीब छह करोड़ रुपये, 300 भारी ज्वेलरी सेट और दो बेशकीमती मोतियों के कारपेट निकाले गए हैं।

1949 से 1950

हैदराबाद अब भारत को परेशान नहीं करेगा। एक मात्र सवाल जिसका समाधान बाकी है, वह यह कि निजाम की अकूत संपत्ति का क्या होगा। 1949 में इस पर चर्चा शुरू होती है। हैदराबाद के सैन्य गवर्नर जे.एन. चौधरी निजाम को आश्वस्त करते हैं कि अगर वे भारत सरकार को अपनी संपत्ति की सूची दें तो कानूनन हमेशा उस संपत्ति की रक्षा की जाएगी। एक साल बाद जनवरी 1950 में भारत सरकार की तरफ से  संधि पर दस्तखत करने के लिए वीपी मेनन हैदराबाद पहुंचते हैं। संधि काफी व्यापक है और इसमें स्पष्ट लिखा है कि अब भारत का संविधान हैदराबाद में भी लागू होगा।

इसके अलावा वीपी यह भी तय करते हैं कि स्वतंत्र भारत में निजाम को क्या विशेषाधिकार (गद्दी और प्रिवी पर्स) और उपाधियां दी जाएंगी। वे निजाम को हैदराबाद के कानूनों के मुताबिक उत्तराधिकार व्यवस्था लागू करने की भी गारंटी देते हैं। वीपी के दस्तखत वाले संधि के पूरे दस्तावेज एन. गोपालस्वामी आयंगर के निजी कागजात के साथ नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी में अब भी रखे हैं।

(लेखिका इतिहासकार, विदेश नीति विश्लेषक और वप्पाला पानगुन्नी मेनन की पड़पोती हैं)

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