कोरिया की लोकप्रिय लेखिका सुन मी ह्वांग ने एक नावेल लिखा है, ‘द डॉग हू डेअर्ड टू ड्रीम।’ हाल में ही इसका हिंदी अनुवाद ‘कुत्ता जिसने सपने देखने की हिम्मत की’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
इसमें इंसान और कुत्ते के बीच अनोखी और मन को छू लेने वाली कहानी कही गई है। यह कहानी मुख्य रूप से एक गरीब बूढ़े, उसकी पत्नी और उसके घर पलने वाली एक मादा कुत्ते के बच्चों की है। आठ बच्चों में से एक काली मादा कुत्ता स्क्रग्ली से बूड़े व्यक्ति को ख़ास लगाव हो जाता है। हालाँकि उसका एक बीटा चानू उसकी बहू और उसका नाती डोंगी भी हैं लेकिन वे बूढ़े से दूर शहर में रहते हैं और कभी-कभी मिलने आते हैं। स्क्रीचर नाम के इस बूढ़े की साईकिल रिपेयर की छोटी सी दुकान है और उसकी पत्नी मछलियाँ बेचती है। कहानी में और भी पात्र हैं, लेकिन कहानी के केंद्र में दद्दा और स्क्रग्ली ही हैं।
कहानी की एक खासियत यह भी है कि लेखिका ने इसमें मौजूद जानवरों को अपनी भावनाएं प्रकट करने के लिए इंसानों से बातचीत करते दर्शाया है। इससे जाहिर होता है कि जिस तरह हम इंसान जीवन के छोटे-छोटे सुख-दुःख से प्रभावित होते हैं, उसी तरह जानवर भी महसूस करते हैं लेकिन अपनी भावनाएं इंसानों की तरह व्यक्त नहीं कर पाते। इंसानों की तरह जानवरों को बोलने की कल्पना से उपजी यह कहानी इसीलिए रोचक और मार्मिक भी बन सकी है।
काले रंग की मादा कुत्ता स्क्रग्ली के बचपन से लेकर उसके मां बनने, फिर अपने मालिक दद्दा के देहांत के साथ ही उसके दुनिया छोड़ने की कहानी वास्तव में गहराई तक मन को छूती है। इस पूरी यात्रा में अनेक पड़ाव आते हैं। कभी दद्दा हताश हो जाते हैं तो कभी स्क्रग्ली निराश हो जाती है।
गरीबी की वजह से दद्दा को पहले स्क्रग्ली के भाई बहनों को बेचना पड़ता है फिर उसके एक बच्चे कोरी को छोड़कर बाकी बच्चों को भी बेचना पड़ता है। दद्दा की तरह ही स्क्रग्ली के जीवन में भी कई बार संकट की घड़ियां आती हैं लेकिन हर बार हिम्मत से उनका सामना करते हुए स्क्रग्ली उन मुसीबतों से बाहर आ जाती है। इस काल्पनिक कहानी में हम सबके लिए जीवन से जुड़े कई जरूरी पाठ छिपे हुए हैं जिन्हें प्रतीक रूप में बताया गया है। इस कहानी के संवादों में इंसानी रिश्तों की बुनावट को भी उकेरने की कोशिश की गई है।
पुस्तक- कुत्ता जिसने सपने देखने की हिम्मत की
लेखक- सुन मी ह्वांग
अनुवाद – प्रगति सक्सेना
मूल्य – 225 रुपये
प्रकाशक – राजपाल एंड संस