‘32000 साल पहले’ महायुग उपन्यास त्रयी-1. नाम से ही विदित है कि यह कथा अति प्राचीन युग से सम्बंधित है। यह मानव प्रजाति के उस हिमयुगीन इतिहास से जुड़ी है, जहाँ अब तक इतिहासकारों, वैज्ञानिकों की नजर भी ठीक से नहीं गई है। ऐसे में एक साहित्यकार ने इस पर कलम चलाई है, तो अवश्य ही इसमें कुछ रोमांचक तथ्य और तर्क भी मिलेंगें, जो एक नए युग के रहस्य खोलेगा।
उपन्यास पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे 32000 साल पहले के महायुगीन काल को आज की युवा पीढ़ी और भविष्य की पीढ़ी से कनेक्ट किया गया है। भारतीय युवा वर्ग साहित्य की घिसी-पिटी घोर यथार्थवादी कहानियों से ऊब चुके हैं। कठिनाई यह है कि लेखक अपने समय से पहले के यथार्थ को अपनी कहानियों में परोसते हैं, जबकि युवा पीढ़ी भविष्य के सपनों के साथ अपनी जिंदगी को आगे बढ़ा रही है। उनके और साहित्य के बीच रत्नेश्वर अपने विभिन्न उपन्यासों से उस खाई को पाटते नजर आते हैं। रत्नेश्वर के लेखन में विज्ञान है, पर्यावरण है, इतिहास है, वर्तमान की चिन्ता है और सबसे महत्त्वपूर्ण भविष्य के सपने हैं। लेखक रत्नेश्वर की अंगुली युवाओं की नब्ज पर है। वे लगातार भारतीय साहित्य में अनछुए विषयों पर नवीन और गहन शोध के साथ कहानी या उपन्यास लिख रहे हैं।
गल्फ ऑफ खंभात की गहराईयों में पुरातत्ववेत्ताओं को एक नगर होने के संकेत मिले हैं। ‘32000 साल पहले’ उसी खोए हुए नगर की कहानी है।यह उपन्यास एक ऐतिहासिक गाथा है। इसे पढ़ते हुए हम अपने इतिहास के उन जड़ों तक पहुंचते हैं, जहाँ मानव-संस्कृति और उसकी सभ्यता बननी शुरू हुई थी। गीत गाना, नृत्य करना, बांसुरी बजाना आदि अनेक नए-नए किस्सों से रोमांच परवान चढ़ता है। सबसे शानदार और मनोरम उत्कर्ष यह कि संसार का पहला ओंठ-चुम्बन करने वाला वह प्रेमी युगल कौन था, इसका रहस्य खुलता है।
अब सवाल यह कि रत्नेश्वर के इस उपन्यास को कोरी कल्पना क्यों न माना जाए! इससे उबरने के लिए उपन्यासकार ने विज्ञान के रोचक तथ्यों का इस्तेमाल किया है।जीरो पॉइंट फिल्ड में संगृहीत ऊर्जा रूपी ध्वनि को रिसीव करना, आधुनिक यंत्र सोनार (साउंड नेविगेशन एंड रैगिंग) के जरिए एवं ध्वनि तरंगों के अत्याधुनिक यंत्रों के माध्यम से उस युग की ध्वनियों को डिकोड करना और उन्हें सुन कर उस प्राचीन सभ्यता व संस्कृतियों को इंडस अल्ट्रा कंप्यूटर पर चित्रित करना लेखक के गहन अध्ययन और उसकी रचनात्मक उड़ान को प्रतिस्थापित करता है।
इस कथा में उपन्यास की नायिका महा और नायक युग ने हिमयुग की पीढ़ी का ही प्रतिनिधित्व नहीं किया है बल्कि वे सम्पूर्ण मानव जाति के इतिहास के महानायक बन कर उभरे हैं। इस उपन्यास की एक खास विशेषता यह भी है कि इसकी भाषा-शैली काफी रोचक है, साथ ही पात्रों के दो अक्षरों वाले नाम तो अद्भुत हैं। उपन्यास में महा-युग अगर हिमयुग प्राणी हैं, तो गणी, मिथ और चिंतक आधुनिक वैज्ञानिक हैं। इसके साथ ही अन्य पात्रों के नाम भी अद्वितीय हैं। वैद्य धनवन, सुधि, बोध, परा, ओखा, इति, दामा, कांता, इली, गज, असा जैसे अनेकों नाम उपन्यास को अधिक रोचकता प्रदान करते हैं।सनातनी सभ्यता के निर्माण-बीज में आदित्य होना, सिंहाल का उभरना और ओखा के मृत शरीर को हिमाद न करके अगन-साध करना स्वयं में एक युगांतरकारी घटना कही जा सकती है।
रत्नेश्वर की लेखनी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उनके नारी-चरित्रों का सशक्त होना है।वे जीवन के सभी क्षेत्रों में अगुआई करती नजर आती हैं।यह महायुगीन उपन्यास एक नए युग की शुरुआत की तरह है। भारतीय साहित्य में इस तरह का लेखन एक ऐतिहासिक घटना ही मानी जाएगी।
सीमा संगसार
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