वह नई कविता में शहरी और ग्रामीण जीवन के दोनों परिवेशों को लेकर लिखने वाले कवि हैं। पवन चौहान की कविताओं को पढ़ना सुखद एहसास है। उनकी कविताओं की विशेषताओं को कम शब्दों में नहीं बांधा जा सकता, क्योंकि वह मात्र भावनाओं और संवेदनाओं तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि उनमें जीवन के गंभीर मुद्दे, सामाजिक सरोकार भी समाए हैं।
पवन चौहान कविता को पूरी तरह जीते हैं। सुंदर अंदाज में कही गई बातें दिल पर सीधे असर करती हैं। पाठक उनसे एकात्म हो उनका ही हो जाता है। पवन के शब्द-संयोजन का भावों और संवेदनाओं के अनुरूप होने से सटीक शब्दों के लिबास में कविता स्वत: ही जानदार और शानदार हो जाती है।
‘किनारे की चट्टान’ काव्य संग्रह को एहसासों का अमृत कलश कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। इनकी कविता के शब्द कागजों पर न होकर हमारे समक्ष विभिन्न भावों को समेटे चहलकदमी करते हैं। इस पुस्तक की लगभग सभी कविताएं हृदय स्पर्शी और विचारों का नया आयाम देने की क्षमता रखती हैं । इनकी कविता बाड़, हो या किनारे की चट्टान या फिर जाने कैसे हमें सजीवता का आभास कराती हैं । जहां एक ओर अक्षर की व्यथा लेखक की निजी इच्छा को बताने की कोशिश करती हैं तो वहीं दूसरी ओर खांसते पिता के माध्यम से बुजुर्गों के प्रति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को बहुत मार्मिक रूप से पेश किया गया है। शहर और मैं कविता में जहां आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और शहरी जीवन को झकझोरने की पूर्ण कोशिश की है तो वहीं दूसरी ओर चिम्मु, काफल, कटारडु, छछोड नामक कविताओं से शब्द ज्ञान और लुप्त हो रही ईश्वर प्रदत्त उपहारों को पुनः जीवंत करने का प्रयास किया गया है। एक अन्य कविता सेब का पेड़ एक मां की पीड़ा से न सिर्फ झकझोरती है बल्कि उन त्रासदियों की ओर भी ध्यान खींचती है जो बुढ़ापे में अधिकांश मांओं के हिस्से आती है। कई कविताएं एक के बाद एक इंसानी रिश्तों की भावनात्मक पड़ताल करती हैं।
पुस्तक – किनारे की चट्टान
लेखक – पवन चौहान
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन